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Saharanpur News: पितरों का हो रहा तर्पण, वृद्धाश्रम में घर के बुजुर्ग
संवाद न्यूज एजेंसी, सहारनपुर
Updated Fri, 12 Sep 2025 01:04 AM IST
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सहारनपुर। पितृपक्ष चल रहा है। ऐसे में लोग पितरों का तर्पण कर रहे हैं। माना जाता है कि इससे परलोक में पितरों को शांति मिलती है, लेकिन एक तस्वीर इससे उलट भी है। जिन जीवित पितरों के चरण छूकर उनकी देखभाल करनी चाहिए। वह वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं।
महानगर के मानव मंदिर वृद्धाश्रम में इस समय 60 से अधिक बुजुर्ग रह रहे हैं। इनमें से 14 महिलाएं भी है। किसी ने बच्चों के तानों से तंग आकर यहां शरण ली, तो किसी को अपने ही बच्चों ने बेबस कर आश्रम पहुंचा दिया। अनुभवों से भरे सफेद बालों और झुर्रियों में सिमटी कहानियां सुनकर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी। यहां पर हर बुजुर्ग की अपनी अलग कहानी है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर आकर जब व्यक्ति को अपनों के साथ की आवश्यकता होती है, तब बाकी बचा जीवन अकेले और तन्हा बीता देना आसान नहीं है। वृद्धाश्रम में रह रहे लोगों ने अब इसे ही अपनी दुनिया बना लिया हैं। अपने साथ रहने वाले उनके साथी सुख और दुख के हमदम बन गए हैं।
-- -बोले निवासी
- मूलरूप से रायबरेली निवासी नरेंद्र कुमार ने तानों और अन्य बातों से परेशान होकर छह वर्ष पहले घर छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि उन्होंने 40 वर्षों तक हलवाई का कार्य किया है। अब न तो बच्चों से बात होती है और न ही पत्नी से। उन्होंने बताया कि अब यहां के साथी ही उनका परिवार हैं। इन्हीं के साथ हंसना और जिंदगी का लुत्फ उठाना हैं।
- सुरेंद्र कुमार ने बताया कि वह पिछले करीब चार वर्षों से यहां रह रहे हैं। परिवार से संबंध नहीं रहा। वृद्धाश्रम में रह रहे साथियों से हौसला मिलता है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर अब साथियों का ही सहारा है।
- मानव मंदिर में पिछले करीब छह वर्षों से रह रहे मदन मोहन शर्मा बताते हैं कि उनका एक बेटा था, जिसकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद से उनके जीवन से मानों रंग ही चले गए। वह प्राइवेट नौकरी करते थे। उनका दिन पूजा-पाठ में ही गुजरता है।

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महानगर के मानव मंदिर वृद्धाश्रम में इस समय 60 से अधिक बुजुर्ग रह रहे हैं। इनमें से 14 महिलाएं भी है। किसी ने बच्चों के तानों से तंग आकर यहां शरण ली, तो किसी को अपने ही बच्चों ने बेबस कर आश्रम पहुंचा दिया। अनुभवों से भरे सफेद बालों और झुर्रियों में सिमटी कहानियां सुनकर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी। यहां पर हर बुजुर्ग की अपनी अलग कहानी है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर आकर जब व्यक्ति को अपनों के साथ की आवश्यकता होती है, तब बाकी बचा जीवन अकेले और तन्हा बीता देना आसान नहीं है। वृद्धाश्रम में रह रहे लोगों ने अब इसे ही अपनी दुनिया बना लिया हैं। अपने साथ रहने वाले उनके साथी सुख और दुख के हमदम बन गए हैं।
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- मूलरूप से रायबरेली निवासी नरेंद्र कुमार ने तानों और अन्य बातों से परेशान होकर छह वर्ष पहले घर छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि उन्होंने 40 वर्षों तक हलवाई का कार्य किया है। अब न तो बच्चों से बात होती है और न ही पत्नी से। उन्होंने बताया कि अब यहां के साथी ही उनका परिवार हैं। इन्हीं के साथ हंसना और जिंदगी का लुत्फ उठाना हैं।
- सुरेंद्र कुमार ने बताया कि वह पिछले करीब चार वर्षों से यहां रह रहे हैं। परिवार से संबंध नहीं रहा। वृद्धाश्रम में रह रहे साथियों से हौसला मिलता है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर अब साथियों का ही सहारा है।
- मानव मंदिर में पिछले करीब छह वर्षों से रह रहे मदन मोहन शर्मा बताते हैं कि उनका एक बेटा था, जिसकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद से उनके जीवन से मानों रंग ही चले गए। वह प्राइवेट नौकरी करते थे। उनका दिन पूजा-पाठ में ही गुजरता है।