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Shamli News: वन विभाग के नोटिस पर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन
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कलक्ट्रेट में धरने पर बोलते पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान । संवाद
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शामली। वन विभाग की ओर से ऊन और कैराना तहसील क्षेत्र के 33 गांवों के करीब 70 लोगों को वन भूमि खाली करने के नोटिस जारी कर दिए गए हैं। इसके विरोध में ग्रामीणों ने कलक्ट्रेट पहुंचकर धरना-प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि वे कई दशक से कृषि भूमि पर काबिज हैं लेकिन अब वन विभाग उस भूमि को अपना बता रहा है। ग्रामीणों ने डीएम से नोटिस को निरस्त कराने की मांग की।
कलक्ट्रेट में बृहस्पतिवार को पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान के नेतृत्व में गांव पठेड़, बसेड़ा, असरफपुर, बल्हेड़ा, सहपत, रामड़ा व नंगलाराई आदि गांवों के ग्रामीण पहुंचे। उन्होंने वन विभाग के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए धरना दिया। ग्रामीणों ने वन विभाग पर जबरन उनकी भूमि कब्जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वन विभाग की भूमि बताकर नोटिस जारी किए गए, जबकि रकबा चकबंदी के अंतर्गत कास्त की भूमि है, जिस पर किसान पिछले लगभग 70 वर्षों से वे खेती करते आ रहे हैं। अभी तक भूमि पर वन विभाग का कोई हस्तक्षेप अथवा विवाद नहीं रहा है। आरोप लगाया कि वन विभाग वर्ष 1955 के आंकड़ों का हवाला देते हुए इसे वन भूमि बताकर राजस्व विभाग से अपने अधीन कराने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि संबंधित किसानों के पास भूमि से जुड़े सभी वैध राजस्व अभिलेख एवं दस्तावेज हैं। ग्रामीणों ने डीएम अरविंद कुमार चौहान से वन विभाग द्वारा जारी किए गए नोटिस को खारिज कराए जाने की मांग की ताकि किसानों की वर्षों पुरानी खेती और आजीविका सुरक्षित रह सके। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान ने डीएम से वार्ता की। मनीष चौहान ने कहा कि वन विभाग ने न्यायालय में वाद दायर कर दिया था, जिसकी ग्रामीणों को जानकारी नहीं लगी। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि ग्रामीणों की आवासीय भूमि को खाली न कराया जाए। अगर जबरन खाली कराया जाता है तो उसका वे विरोध करेंगे। इस अवसर पर राजेश, सुमित, यासीन, युसूफ, वकील जंग, मुस्तकीम मल्लाह, पूर्व प्रधान हुकुम सिंह, विक्रम सिंह, रामकिशन, संदीप कुमार, जितेंद्र, राकेश व अंकित कुमार आदि मौजूद रहे।
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वन विभाग की भूमि पर अवैध कब्जा कर खेती कर रहे ग्रामीण
डीएफओ जगदेव सिंह ने बताया कि 1955 में राज्यपाल द्वारा गजट जारी किया गया है, लेकिन राजस्व विभाग ने भूमि का अमल दरामद नहीं किया और वन विभाग की भूमि पर कुछ लोगों को पट्टे आवंटित कर दिए। इस मामले में एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट में वाद चल रहा था। न्यायालय से वन विभाग के पक्ष में फैसला आने के बाद करीब 70 लोगों को वन भूमि खाली करने के नोटिस जारी किए। उन्होंने बताया कि जिले में लगभग 4600 हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें अधिकांश पर वन विभाग काबिज है, जबकि कुछ भूमि पर ग्रामीण अवैध कब्जा कर खेती कर रहे हैं।
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कलक्ट्रेट में बृहस्पतिवार को पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान के नेतृत्व में गांव पठेड़, बसेड़ा, असरफपुर, बल्हेड़ा, सहपत, रामड़ा व नंगलाराई आदि गांवों के ग्रामीण पहुंचे। उन्होंने वन विभाग के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए धरना दिया। ग्रामीणों ने वन विभाग पर जबरन उनकी भूमि कब्जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वन विभाग की भूमि बताकर नोटिस जारी किए गए, जबकि रकबा चकबंदी के अंतर्गत कास्त की भूमि है, जिस पर किसान पिछले लगभग 70 वर्षों से वे खेती करते आ रहे हैं। अभी तक भूमि पर वन विभाग का कोई हस्तक्षेप अथवा विवाद नहीं रहा है। आरोप लगाया कि वन विभाग वर्ष 1955 के आंकड़ों का हवाला देते हुए इसे वन भूमि बताकर राजस्व विभाग से अपने अधीन कराने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि संबंधित किसानों के पास भूमि से जुड़े सभी वैध राजस्व अभिलेख एवं दस्तावेज हैं। ग्रामीणों ने डीएम अरविंद कुमार चौहान से वन विभाग द्वारा जारी किए गए नोटिस को खारिज कराए जाने की मांग की ताकि किसानों की वर्षों पुरानी खेती और आजीविका सुरक्षित रह सके। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान ने डीएम से वार्ता की। मनीष चौहान ने कहा कि वन विभाग ने न्यायालय में वाद दायर कर दिया था, जिसकी ग्रामीणों को जानकारी नहीं लगी। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि ग्रामीणों की आवासीय भूमि को खाली न कराया जाए। अगर जबरन खाली कराया जाता है तो उसका वे विरोध करेंगे। इस अवसर पर राजेश, सुमित, यासीन, युसूफ, वकील जंग, मुस्तकीम मल्लाह, पूर्व प्रधान हुकुम सिंह, विक्रम सिंह, रामकिशन, संदीप कुमार, जितेंद्र, राकेश व अंकित कुमार आदि मौजूद रहे।
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वन विभाग की भूमि पर अवैध कब्जा कर खेती कर रहे ग्रामीण
डीएफओ जगदेव सिंह ने बताया कि 1955 में राज्यपाल द्वारा गजट जारी किया गया है, लेकिन राजस्व विभाग ने भूमि का अमल दरामद नहीं किया और वन विभाग की भूमि पर कुछ लोगों को पट्टे आवंटित कर दिए। इस मामले में एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट में वाद चल रहा था। न्यायालय से वन विभाग के पक्ष में फैसला आने के बाद करीब 70 लोगों को वन भूमि खाली करने के नोटिस जारी किए। उन्होंने बताया कि जिले में लगभग 4600 हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें अधिकांश पर वन विभाग काबिज है, जबकि कुछ भूमि पर ग्रामीण अवैध कब्जा कर खेती कर रहे हैं।
