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ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी की 95वीं जयंती: 2 साल तक घर छोड़ ठुमरी को तराशा, दुनिया में दिलाई पहचान
अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी
Published by: अमन विश्वकर्मा
Updated Wed, 08 May 2024 04:31 PM IST
सार
Varanasi News: गिरजा देवी की श्रेष्ठ शिष्या मालिनी अवस्थी के संयोजन में 10 मई को 6:30 बजे से अप्पा जी के सामने पार्क में उनकी स्मृति मतें संगीत संध्या का आयोजन होगा। उनके शिष्य और शिष्याएं संगीतांजलि देंगे।
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देश-विदेश को ठुमरी गायिकी से परिचित कराने वाली गिरिजा देवी।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
देश-विदेश को ठुमरी गायिकी से परिचित कराने वाली गिरिजा देवी बनारस घराने की हस्ताक्षर संगीतज्ञों में शुमार हैं। वह घर छोड़कर दो साल तक संगीत की शिक्षा गुरुओं के शरण में लीं। यही वजह है कि वह शास्त्रीय के साथ उपशास्त्रीय संगीत पर भी उनकी गहरी पकड़ थी। उन्होंने पूर्वी अंग की गायिकी दुनिया में शिखर पर पहुंचाई। अपनी सधी गायिकी की छाप लोक के बीच छोड़ कर चली गईं। उनको सभी पद्म सम्मान मिले थे।
ठुमरी साम्राज्ञी और प्यार अप्पा जी के नाम से पुकारी जाने वाली गिरिजा देवी की 95वीं जयंती बुधवार को मनाई गई। उनकी संजय गांधी नगर आवास पर उनके शिष्य और परिजन श्रद्धांजलि देंगे। उनके शिष्य राहुल-रोहित मिश्र ने बताया कि अप्पा जी की गायिकी में बतौर फनकार हमेशा चिरयौवन था। उनकी खासियत थी कि हर विधा के शब्दों को अपनी गायकी से अमर कर देना।
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ठुमरी ही नहीं, ख्याल, टप्पा, तराना, सदरा, कालकर, बाना, धारूगीत, माठा आदि भी उनकी आवाज में संजीवनी संगीत बन जाते थे। उनकी श्रेष्ठ शिष्याओं में एक सुनंदा शर्मा ने बताया कि अप्पा जी जब गायिकी के क्षेत्र में आईं तो उस समय औरतों के लिए चुनौती भरा था। मगर उन्होंने तमाम मुश्किलों को झेलते हुए आगे बढ़ती रहीं और हार नहीं मानी। आगे चलकर उन्होंने औरतों के लिए गरिमामयी मंच तैयार किया। अपने को एक विदुषी के रूप में स्थापित किया।
संगीत सोचकर करो निर्थक नहीं
गिरिजा देवी कहती थीं कि संगीत सोचकर करो निर्थक नहीं। संगीत को सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। इसे जितना सहजता और प्रेम से तरासेंगे उतना ही निखरता है। सुनंदा ने बताया कि संगीत प्रकृति की साधना है। उसी के अनुकूल ही हमें जीना होता है। तभी सुर और लय भी ऊंचाई को छूएगा।
मुश्किलों से न घबराएं
अप्पा जी कहती थीं कि रोज अलग करें, तभी किसी के दिल का छू पाएंगे। सुनंदा ने बताया कि उनका व्यक्तित्व भी वैसा ही था। क्योंकि वह रोज कुछ अलग करती थीं। सहज जीवन जीने की प्रेरणा देती थीं। जितना भी कष्ट आए सहने के लिए तैयार रहो और ईश्वर पर भरोसा रखो, सफलता मिलती है।
जन्म- 8 मई 1929 (सकलडीहा, चंदौली)
मृत्यु- 24 अक्तूबर 2017