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Varanasi News: तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे सुन... मालिनी अवस्थी के गायन ने मोहा जनमन
अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी
Published by: अमन विश्वकर्मा
Updated Mon, 27 May 2024 10:42 PM IST
सार
Varanasi News: शहर में एक तरफ राजनीतिक तुमुल कोलाहल था तो वहीं दूसरी ओर संगीत के जरिए साहित्य की बात सुनी गई। इसके साथ ही सभा ने अपनी दुर्लभ पुस्तकों का एक विक्रय केंद्र आम पाठकों के लिए खोल दिया।
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कार्यक्रम के दौरान मालिनी अवस्थी।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे सुन... महाकवि जयशंकर प्रसाद की यह कविता हिंदी के गढ़ में जीवंत हो उठी। ढाई दशक के बाद 131 साल पुरानी संस्था नागरी प्रचारिणी सभा के नवीन सत्र की संंगीतमयी शुरुआत हुई।
नागरी प्रचारिणी सभा के सत्रारंभ के पहले दिन मालिनी अवस्थी के सुरों में साहित्य के हृदय की बात को संजोया गया। मालिनी अवस्थी के मंगल स्वरों की बरसात में पिछले दशकों की सारी धूल साफ हो गई। मालिनी अवस्थी ने कबीर, कीनाराम, महाकवि जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र और महादेवी वर्मा की छंदबद्ध कृतियों का गायन किया।
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नागरी प्रचारिणी सभा के सत्रारंभ के अवसर पर विदुषी मालिनी अवस्थी ने अपने गायन की शुरुआत राग मधुवंती में निबद्ध बंदिश से की। इसके बाद जयशंकर प्रसाद की कृति बीती विभावरी जाग रही, खगकुल कूल कूल सा बोल रहा, इस लय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई मधुमुकुल नवल रस गागरी... सुनाकर साहित्य से संगीत की यात्रा के उत्कर्ष का अहसास कराया।
इसके बाद महादेवी वर्मा की रचना बीन भी हूं मैं तुम्हारी भी रागिनी भी हूं... को स्वरबद्ध किया। कबीर की रचना मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे अंदर...सुनाया। समापन उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र की राग भैरवी में निबद्ध रचना से किया। उनके साथ संवादिनी पर पंडित धर्मनाथ मिश्र और तबले पर पुणे से पधारे अरविंद आजाद ने संगत की।
स्वागत करते हुए सभा के प्रधानमंत्री व्याेमेश शुक्ल ने कहा कि जब साहित्य अनंत अंधेरे से घबराकर गहरी नींद सो जाता है तब संगीत ही सुबह का राग सुनाकर उसे जगाता है। नागरी प्रचारिणी सभा का यह जागरण काल है। सत्रारंभ के अवसर पर पद्मश्री राजेश्वर आचार्य, संकटमोचन के महंत विश्वंभर नाथ मिश्र, अशोक कपूर, पंडित पूरन महाराज आदि मौजूद थे। संचालन सौरभ चक्रवर्ती ने किया। डॉ. अनुराधा बनर्जी की नाटकों की पुस्तक ये मशाल सुभाष की का लोकार्पण हुआ।
अब मिलेंगी दुर्लभ पुस्तकें
नागरी प्रचारिणी सभा ने अपनी दुर्लभ पुस्तकों का एक विक्रय केंद्र आम पाठकों के लिए खोला। यहां हिंदी शब्द सागर, कबीर ग्रंथावली, जायसी ग्रंथावली, केशव कोष, रामानंद की हिन्दी रचनाएं, खुसरो की हिन्दी कविता, मुगल दरबार के सरदार, मानस अनुशीलन, गुलेरी गरिमा ग्रंथ, बैताल पचीस और रानी केतकी की कहानी सहित करीब डेढ़ सौ पुस्तकें बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।