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America surrounded in UNSC after attack on Iran, who turned against Trump?
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ईरान पर हमले के बाद UNSC में घिरा अमेरिका, कौन हुआ ट्रंप के खिलाफ?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Mon, 23 Jun 2025 11:14 AM IST
एक तरफ दुनिया शांति की उम्मीद लिए बैठी थी, दूसरी तरफ पश्चिम एशिया के आसमान में बमों की बारिश हो रही थी। अमेरिकी सेना के ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ ने जैसे पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। इस ऑपरेशन में ईरान के कई प्रमुख परमाणु ठिकानों को निशाना बनाए जाने का दावा किया गया है। अमेरिका का कहना है कि उसने ईरान की “परमाणु संवर्धन क्षमता” को नष्ट कर दिया है, वहीं ईरान ने पलटवार में कहा है कि “खेल अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अब असली खेल शुरू होगा।”
इस अभूतपूर्व सैन्य कार्रवाई के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में आपात बैठक बुलाई गई, जहां दुनिया की पांच बड़ी शक्तियां आमने-सामने थीं।
अमेरिका की राजदूत डोरोथी शीया ने कहा – “हमने यह हमला अपने नागरिकों और सहयोगियों की रक्षा के लिए किया। अगर ईरान अब कोई जवाबी कार्रवाई करता है, तो उसका परिणाम विनाशकारी होगा।”
वहीं, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई के सलाहकार अली शमखानी ने कहा – “हमारे पास समृद्ध यूरेनियम, स्वदेशी ज्ञान और राजनीतिक इच्छाशक्ति अब भी है। परमाणु ठिकाने भले नष्ट हो जाएं, लेकिन आत्मा जिंदा है।”
ईरान की संसद ने ‘होर्मुज जलडमरूमध्य’ को बंद करने संबंधी प्रस्ताव पारित कर दिया है। यह जलमार्ग वैश्विक तेल आपूर्ति का मुख्य रास्ता है और इसके बंद होने से दुनिया भर में ऊर्जा संकट गहराने की आशंका है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह कदम अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकता है।
चीन के राजदूत फू कांग ने UNSC में कहा – “ईरानी परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों की हम कड़ी निंदा करते हैं। चीन तत्काल युद्धविराम की मांग करता है।”
रूस के राजदूत वसीली नेबेन्ज़्या ने अमेरिका पर तीखा हमला बोलते हुए कहा – “यह हमला पेंडोरा बॉक्स खोलने जैसा है। अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवता की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है।”
यूके की राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने कहा – “हम ईरान से संयम बरतने की अपील करते हैं। केवल सैन्य कार्रवाई से परमाणु मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं हो सकता।”
पाकिस्तान के प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने कहा – “ईरान के साथ हम खड़े हैं। इस्राइल और अमेरिका की आक्रामकता क्षेत्र को बर्बादी की तरफ ले जा रही है।”
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत अली बहरीनी ने कहा कि अमेरिका और इस्राइल का हमला ‘अचानक नहीं’ था, बल्कि एक ‘राजनीति से प्रेरित साजिश’ थी।
“हमसे कहा गया कि कूटनीति का रास्ता अपनाएं, लेकिन हमला वार्ता से ठीक पहले हुआ। इसका मतलब है कि असली मंशा बातचीत नहीं, दबाव बनाना था।”
हमले के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि परमाणु स्थलों पर रेडिएशन फैल सकता है, लेकिन ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल किसी भी तरह के रेडियोधर्मी रिसाव के संकेत नहीं मिले हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद अमेरिकी और इजरायली खुफिया एजेंसियों ने आशंका जताई है कि ईरान सीधा या अपने सहयोगी गुटों के जरिए जवाबी हमला कर सकता है। अमेरिकी सैन्य ठिकानों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह टकराव अब एक “पूरे क्षेत्रीय युद्ध” में बदल सकता है। होर्मुज जलडमरूमध्य का बंद होना, वैश्विक ऊर्जा संकट को जन्म दे सकता है। अमेरिका और इस्राइल की कार्रवाइयों ने जिस प्रकार से ईरान को घेरा है, उसके जवाब में जो कुछ भी होगा, उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
अब सबकी नजरें फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अगली बैठकों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर टिकी हैं। दुनिया की बड़ी शक्तियां चाहती हैं कि ये आग जल्द से जल्द बुझ जाए, लेकिन सवाल ये है कि जब दोनों तरफ की तलवारें म्यान से बाहर निकल चुकी हैं, तो क्या सिर्फ शब्दों से जंग रोकी जा सकती है?
‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ ने न सिर्फ़ ईरानी परमाणु स्थलों को प्रभावित किया है, बल्कि वैश्विक राजनीति को नए सिरे से परिभाषित करने की शुरुआत कर दी है।
अब यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच नहीं रहा, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्थिरता, ऊर्जा आपूर्ति, और कूटनीति की साख का बड़ा इम्तिहान बन गया है।
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