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पश्चिम बंगाल के लिए भाजपा ने बनाई ये रणनीति
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 28 Nov 2025 03:28 PM IST
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बिहार चुनाव में मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंच से साफ संकेत दिया था कि अब भाजपा का अगला बड़ा राजनीतिक लक्ष्य पश्चिम बंगाल है। इसी घोषणा के बाद पार्टी ने तेजी से बंगाल में संगठनात्मक फेरबदल और रणनीतिक गतिविधियां शुरू कर दी हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने पूरे राज्य को छह हिस्सों में बांटकर हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारियां सौंप दी हैं, ताकि स्थानीय मुद्दों पर आधारित, अधिक प्रभावी और सटीक चुनावी रणनीति तैयार की जा सके।
पार्टी ने इस बार पिछली गलतियों से सबक लेकर पूरी योजना को जमीनी स्तर से जोड़ने का फैसला किया है। जहां 2021 के चुनाव में भाजपा आक्रामक प्रचार के बावजूद सिर्फ 77 सीटों पर सिमट गई थी, वहीं इस बार निर्णय लिया गया है कि प्रचार नहीं, जमीनी मुद्दे चुनाव का केंद्र होंगे। दिल्ली भाजपा के संगठन मंत्री पवन राणा और हिमाचल के संगठन मंत्री सिद्धार्थन सहित कई रणनीतिक पदाधिकारी अलग-अलग जाने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इन जाने में जनसरोकार, स्थानीय शिकायतें, क्षेत्रीय अस्मिता और सामाजिक समीकरणों के आधार पर मुद्दों की पहचान की जा रही है।
भाजपा की रिसर्च टीमें राज्य के गांवों और शहरी इलाकों में सर्वेक्षण कर रही हैं। खास बात यह है कि सर्वे गैर-राजनीतिक व्यक्तियों के जरिए करवाए जा रहे हैं, ताकि जनता अपनी राय बिना दबाव के रख सके।
राज्य में एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) प्रक्रिया शुरू होने के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों के वापस लौटने की रिपोर्टों ने एक नया राजनीतिक माहौल तैयार कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां एसआईआर को मुसलमानों और बंगालियों के खिलाफ कार्रवाई बताते हुए इसका विरोध कर रही हैं, वहीं भाजपा का दावा है कि इस विरोध से बंगाल का “मूल समुदाय” और अधिक एकजुट हो रहा है।
भाजपा नेताओं का कहना है कि आम बंगाली समुदाय में यह धारणा बनी है कि बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिये उनके संसाधनों, नौकरियों और अधिकारों को प्रभावित कर रहे हैं और राज्य सरकार इस पर चुप्पी साधकर उनका संरक्षण कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि यह मुद्दा चुनावी माहौल में तेजी से असर दिखा सकता है।
ममता बनर्जी लगातार तीन बार से सत्ता में हैं। भाजपा का मानना है कि इतने लम्बे शासन के बाद एक बड़ा वर्ग सरकार से नाराज है चाहे वह बेरोजगारी हो, आर्थिक मुद्दे हों या कानून-व्यवस्था को लेकर शिकायतें।
भाजपा के अनुसार, राज्य में एक बड़ा जनसमूह अब बदलाव की तलाश में है। पार्टी इसी भावना को “अस्मिता”, “रोज़गार” और “नया बंगाल” जैसे नारों के साथ जोड़ने की तैयारी कर रही है। दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित पश्चिम बंगाल यात्रा को इसी अभियान की शुरुआत माना जा रहा है।
हाल ही में टीएमसी नेता हुमायूं कबीर द्वारा विवादित बाबरी ढांचे के निर्माण को लेकर दिए गए बयान ने नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। भाजपा का आकलन है कि टीएमसी द्वारा 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को रिझाने की कोशिश से हिन्दू और अन्य समुदायों में एक अलग भावना पैदा हो सकती है।
पार्टी का मानना है कि “अत्यधिक अल्पसंख्यक केंद्रित” राजनीति से बाकी मतदाता वर्गों का एकजुट होना संभव है जो उसके पक्ष में माहौल बना सकता है।
छह हिस्सों में बंटी रणनीति, रिसर्च-आधारित मुद्दे, एंटी-इनकंबेंसी की हवा, ध्रुवीकरण की संभावित स्थिति और प्रधानमंत्री की सक्रियता इन सभी को भाजपा अपनी “बंगाल मिशन” की रीढ़ मान रही है।
हालांकि, राजनीति के जानकार मानते हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी की पकड़ बेहद मजबूत है और भाजपा के लिए राह आसान नहीं। लेकिन यह भी साफ है कि इस बार भाजपा पहले से कहीं अधिक संगठित, अध्ययनशील और संसाधनों से लैस होकर मैदान में उतर रही है।
आने वाले महीनों में बंगाल की राजनीति पूरी तरह चुनावी मोड में दिखाई देगी और भाजपा की यह नई रणनीति उसके अभियान को नई दिशा दे सकती है।
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