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Digvijaya Singh Post: What did Digvijaya Singh say on the ideology of PM Modi-RSS that he had to give clarific
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Digvijaya Singh Post: PM मोदी- RSS की विचारधारा पर ऐसा क्या बोले दिग्विजय सिंह? देनी पड़ी सफाई!
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Sun, 28 Dec 2025 02:27 AM IST
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दिग्विजय सिंह, भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा चेहरों में से हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा के सबसे मुखर और निरंतर आलोचक रहे हैं। उनकी दृष्टि में RSS केवल एक सांस्कृतिक संगठन नहीं, बल्कि एक ऐसा वैचारिक ढांचा है जो भारत के संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए चुनौती पेश करता है।
दिग्विजय सिंह अक्सर यह तर्क देते हैं कि RSS की विचारधारा का मूल आधार विनायक दामोदर सावरकर और एम.एस. गोलवलकर की शिक्षाएं हैं। वे गोलवलकर की पुस्तक 'बंच ऑफ थॉट्स' (Bunch of Thoughts) का बार-बार उल्लेख करते हैं। सिंह का आरोप है कि इस विचारधारा में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को 'आंतरिक शत्रु' के रूप में देखा गया है। वे मानते हैं कि यह सोच समावेशी भारत के विचार के विपरीत है।
सिंह अपनी दलीलों में एक स्पष्ट लकीर खींचते हैं: उनके लिए हिंदू धर्म सहिष्णुता और उदारता का प्रतीक है, जबकि हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है जिसे RSS सत्ता प्राप्त करने और समाज को बांटने के लिए इस्तेमाल करता है। वे अक्सर कहते हैं कि "मैं खुद एक सनातनी हिंदू हूँ, लेकिन मैं उस 'हिंदुत्व' के खिलाफ हूँ जो नफरत फैलाता है।"
RSS जहाँ 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' की बात करता है, वहीं दिग्विजय सिंह इसे धार्मिक बहुसंख्यकवाद (Majoritarianism) का नाम देते हैं। उनका मानना है कि संघ की विचारधारा एक 'हिंदू राष्ट्र' की स्थापना करना चाहती है, जहाँ अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा जा सकता है। वे इसे डॉ. अंबेडकर द्वारा रचित भारत के संविधान की मूल आत्मा (समानता और बंधुत्व) पर प्रहार मानते हैं।
दिग्विजय सिंह ने कई बार विवादित रूप से संघ की तुलना चरमपंथी संगठनों से की है। उनका तर्क है कि संघ की शाखाओं में दिया जाने वाला प्रशिक्षण प्रेम का नहीं, बल्कि 'दूसरे' के प्रति घृणा का होता है। वे बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर हालिया सांप्रदायिक तनावों तक, हर बड़ी घटना के पीछे संघ की 'विभाजनकारी' विचारधारा को जिम्मेदार ठहराते हैं।
उनका एक बड़ा आरोप यह भी है कि संघ अपनी विचारधारा को देश की शिक्षा पद्धति, न्यायपालिका और प्रशासनिक ढांचे में चुपचाप 'इन्फिल्ट्रेट' (पैठ बनाना) कर रहा है। वे इसे 'नागपुर से चलने वाली समानांतर सरकार' की संज्ञा देते हैं, जो उनके अनुसार लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वायत्तता को खत्म कर रही है।
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