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Bangladesh Violence: Saints came out in protest against the atrocities on Hindus in Bangladesh, made this appe
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Bangladesh Violence: बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में उतरे संत, सरकार से की ये अपील!
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: भास्कर तिवारी Updated Sat, 27 Dec 2025 04:30 AM IST
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भारत और बांग्लादेश दोनों ही जगहों पर संतों और धार्मिक गुरुओं ने कड़ा मोर्चा खोल दिया है। दिसंबर 2025 में मयमनीसिंह जिले में दीपू चंद्र दास नामक हिंदू युवक की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की घटना के बाद यह आक्रोश चरम पर पहुंच गया है।
दिल्ली, हरिद्वार, रामपुर और मुंबई जैसे शहरों में साधु-संतों ने बड़े स्तर पर विरोध रैलियां निकाली हैं। दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल के बैनर तले संतों ने बांग्लादेश उच्चायोग के घेराव की कोशिश की। हरिद्वार के संतों और अखाड़ों ने इस हिंसा को "मानवता के खिलाफ अपराध" बताते हुए भारत सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। बाबा रामदेव और कई अन्य आध्यात्मिक गुरुओं ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाने की अपील की है।
बांग्लादेश के भीतर ही चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी (इस्कॉन से जुड़े रहे) और अन्य संतों ने "आमार माटी, आमार मां" (मेरा देश, मेरी मां) के नारे के साथ हिंदुओं को एकजुट किया। उन्होंने चटगाँव और ढाका में विशाल जनसभाएं कीं, जिनमें हिंदुओं के लिए विशेष सुरक्षा कानून और अल्पसंख्यकों के लिए पृथक मंत्रालय जैसी 8-सूत्रीय मांगें रखी गईं।
प्रदर्शनकारी संतों की प्रमुख मांग है कि बांग्लादेश में इस्कॉन (ISKCON) जैसी संस्थाओं पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए, मंदिरों पर हमलों को रोका जाए और हिंदुओं की संपत्ति पर अवैध कब्जों को खत्म किया जाए। संतों ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि वहां की अंतरिम सरकार हिंदुओं को सुरक्षा देने में विफल रहती है, तो वे सीमा पर बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
उत्तर प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न जिलों में संतों के नेतृत्व में बांग्लादेशी प्रशासन के पुतले जलाए गए और राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर मांग की गई कि बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या और कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम कसी जाए। संतों का स्पष्ट संदेश है कि हिंदू समाज अब मूकदर्शक बनकर अपने भाइयों पर अत्याचार नहीं सहेगा और इस मुद्दे पर वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं।
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