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Upendra Kushwaha Party Split: टूटने वाली है उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 25 Dec 2025 09:02 PM IST
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के बाद राज्य में भले ही एनडीए की सरकार बन गई हो, लेकिन सियासी स्थिरता अभी दूर नजर आ रही है। सत्ता के भीतर ही खींचतान और असंतोष के संकेत मिलने लगे हैं। एक ओर जहां जीतन राम मांझी राज्यसभा जाने को लेकर एनडीए नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) गंभीर संकट में घिरती दिख रही है। हालात ऐसे हैं कि पार्टी में बिखराव की आशंका तेज हो गई है।
बुधवार की रात उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में अपने आवास पर ‘लिट्टी-चोखा पार्टी’ का आयोजन किया। इसे चुनाव के बाद शक्ति प्रदर्शन और पार्टी एकजुटता के संदेश के तौर पर देखा जा रहा था। पार्टी में कई नेता और कार्यकर्ता पहुंचे, लेकिन सबसे अहम बात यह रही कि आरएलएम के चार विधायकों में से तीन विधायक इस दावत से नदारद रहे। यही गैरमौजूदगी बिहार की सियासत में चर्चा का बड़ा विषय बन गई।
जिन तीन विधायकों ने दूरी बनाई, उनमें माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह शामिल हैं। हैरानी की बात यह है कि ये तीनों विधायक उस वक्त पटना में ही मौजूद थे, इसके बावजूद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष की दावत में शिरकत नहीं की। इससे पहले यही तीनों विधायक दिल्ली गए थे, जहां उन्होंने भाजपा के नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन से मुलाकात कर उन्हें बधाई दी थी। इस मुलाकात के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में कयासों का दौर शुरू हो गया।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह सिर्फ शिष्टाचार भेंट नहीं थी। 2025 का चुनाव राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा था, लेकिन चुनाव के बाद मंत्रिमंडल विस्तार, सत्ता में हिस्सेदारी और संगठनात्मक फैसलों को लेकर विधायकों में असंतोष पनपने की चर्चा है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व से विधायकों की बढ़ती नजदीकी को उपेंद्र कुशवाहा के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार की राजनीति में यह नया ट्रेंड है, जहां छोटे सहयोगी दलों के विधायक सीधे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से संपर्क बढ़ा रहे हैं। इससे न सिर्फ जदयू बल्कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा जैसे दलों की स्वायत्तता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आरएलएम के विधायकों की यह सक्रियता पार्टी नेतृत्व के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही है।
कुशवाहा की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ जाती हैं क्योंकि उनकी पार्टी के पास कुल चार विधायक ही हैं। यदि इनमें से तीन विधायक अलग रुख अपनाते हैं, तो तकनीकी रूप से दल-बदल कानून के तहत पार्टी के विलय या अलग गुट बनाने की स्थिति बन सकती है। ऐसी सूरत में राष्ट्रीय लोक मोर्चा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।
फिलहाल उपेंद्र कुशवाहा की ओर से इस पूरे घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन जिस तरह उनकी डिनर पार्टी में कुर्सियां खाली रहीं, उसने बहुत कुछ इशारों में कह दिया है। बिहार की राजनीति में अब सवाल यही है कि क्या उपेंद्र कुशवाहा अपने विधायकों को साध पाएंगे या उनकी पार्टी एनडीए के भीतर ही टूट की कहानी लिखने जा रही है।
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