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Has Prashant Kishor made a dent in the NDA-Grand Alliance vote bank?
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प्रशांत किशोर ने NDA-महागठबंधन के वोट बैंक में मारी सेंध?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 10 Oct 2025 11:19 AM IST
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच सियासी समीकरणों में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। प्रशांत किशोर (PK) की जनसुराज पार्टी ने बृहस्पतिवार को 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। इस सूची ने न केवल सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बल्कि विपक्षी महागठबंधन दोनों के खेमों में हलचल मचा दी है।
सूची में जातीय और सामाजिक समीकरणों का ऐसा मिश्रण दिखता है, जो प्रशांत किशोर की रणनीतिक समझ और राजनीतिक मंशा दोनों को साफ करता है। उन्होंने न सिर्फ राजद के मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर चोट की है, बल्कि भाजपा-जदयू के ईबीसी और अगड़ा वर्ग के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश की है।
प्रशांत किशोर ने पहली सूची में छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर स्पष्ट संकेत दिया है कि वे केवल सीमांचल तक सीमित नहीं रहेंगे। उन्होंने सिकटी, अमौर, बैसी (सीमांचल) के साथ-साथ महिषी (कोसी), बेनीपट्टी और दरभंगा (मिथिलांचल) जैसी सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
इनमें से सिकटी, अमौर और बैसी में मुसलमान मतदाता बहुसंख्यक हैं, जबकि बेनीपट्टी, महिषी और दरभंगा में इनकी आबादी 16 से 22 फीसदी के बीच है।
इस रणनीति का असर सीधा विपक्षी महागठबंधन, खासकर राजद पर पड़ने वाला है, जो अब तक मुस्लिम मतों का सबसे बड़ा दावेदार रहा है।
पिछले चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल में राजद के वोट बैंक में सेंध लगाई थी, इस बार जनसुराज और एआईएमआईएम दोनों का मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर उतरना, महागठबंधन के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है।
जनसुराज ने अपने 51 उम्मीदवारों में से 25 टिकट अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और अगड़ा वर्ग को दिए हैं। बिहार की राजनीति में यह वर्ग बेहद निर्णायक माना जाता है।
करीब 33% ईबीसी वोटर राज्य की राजनीति की दिशा तय करते हैं। पिछले दो दशकों में इस वर्ग का झुकाव NDA की ओर रहा है, खासकर भाजपा और जदयू के साथ रहने पर।
ऐसे में जनसुराज का यह जातीय संतुलन भाजपा-जदयू गठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक को कमजोर कर सकता है।
इसके अलावा, पिछड़ा वर्ग (OBC) को 11 और अनुसूचित जाति (SC) को 7 टिकट दिए गए हैं। यह सामाजिक संतुलन प्रशांत किशोर के “सबका प्रतिनिधित्व, बिना बंटवारे की राजनीति” वाले संदेश के अनुरूप दिखता है।
पहली सूची में प्रशांत किशोर ने कई चौंकाने वाले नाम शामिल किए हैं। इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और नीतीश कुमार के करीबी रहे आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह, तथा किन्नर समाज की प्रीति किन्नर शामिल हैं।
इतना ही नहीं, जनसुराज ने पांच नामचीन डॉक्टरों और एक कुलपति को भी टिकट दिया है। इस कदम से प्रशांत किशोर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी केवल जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि शिक्षित और सामाजिक रूप से प्रभावशाली उम्मीदवारों को भी प्राथमिकता दे रही है।
जिस करगहर सीट से खुद प्रशांत किशोर के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, वहां से पार्टी ने भोजपुरी गायक रितेश पांडे को मैदान में उतारा है। यह फैसला कई मायनों में रणनीतिक माना जा रहा है। रितेश पांडे का पूर्वांचल और भोजपुर बेल्ट में बड़ा फैनबेस है, जो पार्टी के लिए जनसंपर्क और प्रचार में ताकत साबित हो सकता है।
वहीं, दरभंगा सीट से पूर्व होमगार्ड डीजी आर.के. मिश्र को टिकट दिया गया है। यानी पीके ने प्रशासनिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक हर वर्ग के चेहरे को शामिल किया है।
प्रशांत किशोर ने इस सूची के जरिये स्पष्ट राजनीतिक संदेश दिया है कि जनसुराज न तो NDA के साथ है, न ही महागठबंधन के। उनका लक्ष्य “तीसरा विकल्प” बनाना है, जो बिहार की जातीय राजनीति से आगे निकलने की कोशिश करेगा।
विश्लेषकों के मुताबिक, यह सूची दोनों गठबंधनों के कोर वोट बैंक को अस्थिर कर सकती है। एक ओर भाजपा-जदयू का ईबीसी और अगड़ा वोटर दुविधा में पड़ सकता है, वहीं दूसरी ओर राजद का मुस्लिम आधार भी खिसक सकता है।
बिहार की राजनीति जातीय आंकड़ों और रणनीतिक गठजोड़ों की रही है, लेकिन प्रशांत किशोर की यह चाल एक नए प्रयोग की ओर इशारा करती है।
उनकी पहली सूची से साफ है कि जनसुराज ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश कर रही है जहां प्रतिनिधित्व और चेहरे, दोनों जातीय सीमाओं से आगे बढ़कर चुने गए हैं।
अब देखना यह होगा कि यह “जनसुराज प्रयोग” बिहार की जनता के बीच विकल्प बन पाता है या नहीं, लेकिन इतना तय है कि इस सूची ने राजग और महागठबंधन दोनों के समीकरण हिला दिए हैं।
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