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How did PM Modi's waving of a towel in Bihar elections prove costly for Tejashwi?
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बिहार चुनाव में पीएम मोदी का गमछा लहराना तेजस्वी पर कैसे पड़ा भारी?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 21 Nov 2025 05:00 PM IST
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पटना के गांधी मैदान में हुए शपथ ग्रहण समारोह ने इस बार सिर्फ राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीकों की नई परिभाषा भी गढ़ दी। जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से बिहार की पहचान माने जाने वाले लाल-पीले गमछे को हवा में लहराया, मैदान में मौजूद लाखों लोगों की भीड़ अचानक ऊर्जा से भर उठी। जय बिहार, हर-हर महादेव और नीतीश कुमार जिंदाबाद के नारों से पूरा मैदान गूंजने लगा। यह दृश्य सिर्फ उत्साह नहीं, बल्कि उस भावनात्मक कड़ी को दिखाता है जो सांस्कृतिक संकेतों और राजनीतिक संदेशों के मेल से बनती है।
पिछले तीन महीनों से पीएम मोदी लगातार अपने बड़े मंचों पर गमछे को अपने राजनीतिक संवाद का हिस्सा बना रहे हैं। बेगूसराय की चुनावी रैली हो या वहां नए पुल का उद्घाटन, हर मौके पर वे मंच से गमछा लहराते नजर आए। बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद 14 नवंबर की शाम उन्होंने दिल्ली से राष्ट्र को संबोधित करते हुए भी गमछा हवा में घुमाकर बिहार की जनता का आभार जताया था। हर बार भीड़ की प्रतिक्रिया ने साफ कर दिया कि यह प्रतीक अब सिर्फ परिधान नहीं रहा, यह राजनीतिक भावनाओं का वाहक बन चुका है।
गमछा पॉलिटिक्स असरदार क्यों?
बिहार में गमछा हमेशा से सम्मान, पहचान और संस्कृति का प्रतीक रहा है। खेतों में काम करने वाले किसान से लेकर शहर के युवा तक, हर वर्ग के लोग इसे अपनी दिनचर्या और परंपरा में शामिल रखते हैं। इसकी सादगी और सहजता इसे बिहार की जीवनशैली का ऐसा हिस्सा बनाती है, जो किसी भी सामाजिक-राजनीतिक संदेश को गहराई से लोगों तक पहुंचा देती है।
राजनीति में जब कोई नेता इस सांस्कृतिक प्रतीक को धारण करता है, तो यह संदेश देता है कि वह जनता की भाषा, भावना और सांस्कृतिक पहचान को समझता है। मोदी ने इसी भावनात्मक संपर्क को अपने संपर्क और कनेक्ट पॉलिटिक्स का मुख्य आधार बनाया। लगातार बड़े मंचों पर गमछे को दोहराने से यह प्रतीक धीरे-धीरे एक राजनीतिक हथियार में बदल गया, जो बिना बोले भी जनता से संवाद कर लेता है।
शपथ ग्रहण में सांस्कृतिक संदेश की शक्ति
शपथ ग्रहण समारोह में यह दृश्य महज एक राजनीतिक शो नहीं था। यह संदेश था कि सत्ता का नया समीकरण जनता की संस्कृति और पहचान के साथ तालमेल बनाकर चलना चाहता है। मोदी के हाथ में लहराता गमछा इस बात का संकेत बन गया कि राजनीति सिर्फ घोषणाओं और वादों से नहीं बल्कि भावनाओं और जुड़ाव से भी चलती है।
नीतीश कुमार की दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ के दौरान गमछे की यह सांस्कृतिक उपस्थिति एक तरह से बिहार की सामूहिक चेतना को सलाम करने जैसा था। भीड़ की प्रतिक्रिया भी बताती है कि जब नेता जनता की संस्कृति को सम्मान देते हैं, तो जनता भी उन्हें दिल से स्वीकार करती है।
इस तरह, शपथ ग्रहण समारोह ने यह साबित कर दिया कि भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक प्रतीक अब सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि जनभावनाओं को साधने का सबसे प्रभावी माध्यम बन चुके हैं।
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