सद के मौजूदा सत्र में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जोरदार बहस देखने को मिली। इस अभियान के तहत भारतीय सेना ने म्यांमार सीमा पर बड़ी कार्रवाई करते हुए मणिपुर में सैन्य काफिले पर हुए हमले का बदला लिया। लेकिन जैसे ही इस ऑपरेशन की घोषणा हुई, राजनीतिक गलियारों में इसके मकसद, समय और सरकार की नीयत पर सवाल उठने लगे।विपक्ष ने संसद में सरकार से तीखे सवाल पूछे—क्या यह ऑपरेशन वास्तव में ज़रूरी था? क्या इसमें म्यांमार की संप्रभुता का उल्लंघन हुआ? क्या इस पूरे अभियान की घोषणा करने से कूटनीतिक रिश्तों पर असर नहीं पड़ा?
विपक्ष की मांग थी कि सरकार पारदर्शिता के साथ ऑपरेशन की योजना, इंटेलिजेंस इनपुट और म्यांमार सरकार के साथ तालमेल की स्थिति को सामने लाए। कुछ नेताओं ने इसे चुनावी माहौल में ‘नेरेटिव सेट’ करने की कोशिश तक करार दिया।वहीं सत्ता पक्ष ने बेहद संतुलित और सधे हुए अंदाज़ में जवाब दिया। रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत की संप्रभुता और सुरक्षा सर्वोपरि है और सेना ने यह कार्रवाई आत्मरक्षा और आतंकवाद के सफाए के लिए की। उन्होंने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करता है और ऑपरेशन पूरी तरह म्यांमार सरकार के संज्ञान में था।
हालांकि सरकार के जवाब के बावजूद विपक्ष पूरी तरह संतुष्ट नज़र नहीं आया। जनता के मन में भी अब तक कई सवाल हैं—क्या यह सैन्य कार्रवाई रणनीतिक रूप से ज़रूरी थी या सियासी मकसद से प्रेरित कुल मिलाकर, ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई बहस ने जहां देश की सुरक्षा नीति पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं यह भी दिखा दिया कि जब बात राजनीतिक जवाबदेही की हो, तो सवाल-जवाब का यह सिलसिला थमता नहीं।
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