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अखिलेश पर तंज, सीएम योगी की तारीफ, क्या है मायावती की चाल?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 10 Oct 2025 03:17 PM IST
लखनऊ में गुरुवार को कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की विशाल रैली ने सूबे की सियासत में नई हलचल मचा दी। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने इस रैली के ज़रिए दो निशाने साधे मुसलमानों को भरोसे में लेने की कोशिश और दलित वोट बैंक को एकजुट रखने का संदेश।
रैली में मायावती ने कहा कि “देश में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों का न तो विकास हो रहा है और न ही उनकी जान-माल सुरक्षित है। ऐसे में उन्हें बसपा ही सही दिशा दे सकती है।” इस बयान से उन्होंने विपक्षी दलों, खासकर समाजवादी पार्टी (सपा), के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति साफ कर दी।
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले से चोट खाई बसपा ने अब अल्पसंख्यक मतदाताओं की ओर रुख किया है। मायावती ने अपने संबोधन में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि “अल्पसंख्यकों को झूठे वादों और नफरत की राजनीति से दूर रहना चाहिए। बसपा ही उनके सम्मान और सुरक्षा की गारंटी है।”
राजधानी लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर तीन लाख से अधिक लोगों की मौजूदगी ने यह संकेत दिया कि बसपा ने 2027 विधानसभा चुनाव के लिए अपनी जमीन मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम रख दिया है।
अपने पूरे भाषण में मायावती ने भाजपा पर सीधा हमला नहीं बोला, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से सपा को निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि “दलित महापुरुषों की उपेक्षा सपा ने सबसे ज्यादा की है। जातिवादी दल संविधान को बदलकर फिर से पुरानी व्यवस्था लागू करना चाहते हैं।”
लेकिन सबसे चौंकाने वाला पल तब आया जब मायावती ने सीएम योगी आदित्यनाथ की अप्रत्यक्ष तारीफ की। उन्होंने कहा कि “योगी सरकार ने कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर कुछ सख्त कदम उठाए हैं, यह सकारात्मक है।” इस बयान ने राजनीतिक हलकों में नई बहस को जन्म दे दिया है।
बसपा सुप्रीमो ने रैली में अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद को सबसे पहले बोलने का मौका देकर संकेत दे दिया कि अब पार्टी की बागडोर धीरे-धीरे उनके हाथों में सौंपी जा रही है।
मायावती ने कहा, “आकाश अब पूरी तरह मूवमेंट से जुड़ चुके हैं, मेहनत कर रहे हैं। जिस तरह आपने कांशीराम के बाद मेरा साथ दिया, अब उसी तरह आकाश का भी देना है।”
इस घोषणा से यह स्पष्ट है कि बसपा 2027 के विधानसभा चुनाव को केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पीढ़ीगत नेतृत्व परिवर्तन के मंच के रूप में भी इस्तेमाल करने जा रही है।
हाल ही में यह चर्चा जोरों पर थी कि सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां बसपा में शामिल हो सकते हैं। मायावती ने इन अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा, “मैं किसी से छिपकर नहीं मिलती। दूसरे दलों के लोग अफवाहें फैला रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि “2017 में भी ऐसी बातें फैलाई गई थीं, लेकिन हमारे कार्यकर्ता भ्रमित नहीं हुए थे। इस बार भी नहीं होंगे।”
मायावती ने ईवीएम पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि “बसपा को रोकने के लिए कई दलों ने अपने वोट ट्रांसफर किए और मशीनों से धांधली कराई। लेकिन यह सिस्टम हमेशा नहीं चलेगा।”
साथ ही उन्होंने बिना नाम लिए आजाद समाज पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि “दलित वोट बैंक को तोड़ने के लिए कुछ स्वार्थी लोग बिकाऊ संगठन बनाकर प्रत्याशी खड़े करते हैं। ऐसे में अपने वोट को रिश्ते या दोस्ती में बर्बाद न करें।”
मायावती ने रैली के अंत में पार्टी कार्यकर्ताओं से भावनात्मक अपील करते हुए कहा-
“2027 में हमें अपना 15 साल का वनवास खत्म करना है। सरकार बनानी है ताकि बाबा साहब और कांशीराम के सपनों को पूरा किया जा सके।”
उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले और अमेरिकी टैरिफ मुद्दे पर केंद्र सरकार को सतर्क रहने की सलाह भी दी। कहा कि “देश को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद केवल हवा-हवाई नहीं होनी चाहिए।”
यह रैली सिर्फ श्रद्धांजलि सभा नहीं थी यह बसपा की वापसी का राजनीतिक शंखनाद था। मायावती ने दलित-मुस्लिम समीकरण को फिर से जीवित करने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि 2027 की राह में यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है।
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