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What did Muttaki say about the flag seen in the press conference of the Foreign Minister of Afghanistan?
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अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की प्रेस वार्ता में दिखा दिखे झंडे पर क्या बोले मुत्ताकी?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Mon, 13 Oct 2025 01:25 PM IST
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दिल्ली में रविवार को अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तालिबान का झंडा एक बार फिर विवाद में आ गया। दरअसल, मुत्ताकी के भारत दौरे पर आने के बाद अफगान दूतावास में तालिबानी झंडा न लगाने को लेकर उन्होंने नाराज़गी जताई थी। शनिवार को जब वे पहली बार प्रेस से मिले, तो दूतावास के बाहर तालिबान का झंडा नहीं था, जिससे मुत्ताकी और वहां के कर्मचारियों के बीच तीखी बहस हो गई थी।
इसके बाद रविवार को जब मुत्ताकी ने दूसरी बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तो उनके पीछे दीवार पर सफेद रंग का बड़ा तालिबानी झंडा लहराता दिखा। इतना ही नहीं, मेज पर भी छोटे आकार का सफेद झंडा रखा गया था। इस दौरान जब पत्रकारों ने उनसे इस झंडे को लेकर सवाल पूछा, तो मुत्ताकी ने साफ कहा, “हमने इसी झंडे के नीचे जंग लड़ी थी और जीत हासिल की। यह हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है, हमारी पहचान है।”
भारत में तालिबानी झंडे को लेकर विवाद इसलिए भी बढ़ गया क्योंकि दिल्ली में स्थित अफगान दूतावास अभी तक आधिकारिक रूप से तालिबान सरकार के अधीन नहीं है। दूतावास के पुराने स्टाफ़ अब भी पूर्व अशरफ गनी सरकार से जुड़े हुए हैं, जबकि तालिबान चाहता है कि अब उसका झंडा और प्रतिनिधित्व पूरी तरह से मान्यता पाए।
जब मुत्ताकी दूतावास पहुंचे तो उन्होंने वहां झंडा न देखकर नाराज़गी जताई। सूत्रों के मुताबिक, मुत्ताकी ने दूतावास कर्मियों से कहा कि “अगर यहां अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व हो रहा है, तो तालिबान का झंडा क्यों नहीं?” बाद में उन्होंने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबानी झंडा लगवाया।
तालिबान का झंडा पूरी तरह सफेद रंग का होता है, जिस पर काले अक्षरों में इस्लामी शहादा (धार्मिक उद्घोषणा) लिखी होती है-
“ला इलाह इला अल्लाह, मुहम्मद रसूल अल्लाह।” इसका अर्थ है “अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और पैग़ंबर मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।”
सफेद रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है, जबकि उस पर लिखा संदेश इस्लामी निष्ठा और तालिबानी शासन की विचारधारा को दर्शाता है। यह झंडा तालिबान की पहचान बन चुका है, खासकर 2021 में अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद।
अफगानिस्तान का इतिहास झंडों के बदलाव से भरा हुआ है। साल 1901 से 2021 तक 18 बार झंडा बदला गया। सबसे पहले शासक हबीबुल्लाह खान ने अपने पिता के काले झंडे में मस्जिद और तलवारों की मुहर जोड़कर बदलाव किया। उसके बाद हर दौर राजशाही, सोवियत प्रभाव, इस्लामी गणराज्य और तालिबान शासन ने झंडे का अपना संस्करण लाया।
1994 में जब तालिबान उभरा, तो उसने सफेद झंडे को अपनी पहचान बनाया। 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और अफगानिस्तान को “इस्लामी अमीरात” घोषित करते हुए यही झंडा लहराया।
बाद में हामिद करजई और अशरफ गनी की सरकारों ने पारंपरिक तिरंगे झंडे को अपनाया, लेकिन 2021 में तालिबान की वापसी के साथ फिर से सफेद झंडा फहराया गया।
साल 2021 में अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान ने तेजी से पूरे देश पर कब्जा करना शुरू किया। कुछ ही हफ्तों में कंधार, हेरात और मजार-ए-शरीफ जैसे बड़े शहर उसके नियंत्रण में आ गए।
15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए। उसी दिन राजधानी में तालिबान का सफेद झंडा फहराया गया और यही अब अफगानिस्तान का “राष्ट्रीय झंडा” कहलाता है।
मुत्ताकी का भारत दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब भारत और तालिबान के रिश्ते औपचारिक रूप से सीमित हैं। भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। बावजूद इसके, दोनों देशों के बीच मानवीय सहायता और आर्थिक संपर्क के ज़रिए संवाद जारी है। हालांकि, दूतावास में तालिबानी झंडे का दिखना नई बहस को जन्म दे रहा है क्या यह भारत की नीति में बदलाव का संकेत है या सिर्फ मुत्ताकी का प्रतीकात्मक प्रदर्शन?
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