छतरपुर जिले में खजुराहो के पास बसे छोटे से गांव जटकारा के 28 वर्षीय धर्मेंद्र पटेल का सपना आम नहीं, बल्कि एक जुनून है देश के लिए दौड़ना, ओलंपिक में मेडल जीतना और भारत का नाम रोशन करना। लेकिन इस सपने तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं रहा। बिना किसी आधुनिक सुविधा और संसाधनों के केवल आत्मविश्वास और मेहनत के दम पर धर्मेंद्र वो कर रहे हैं, जो शायद ही कोई सोच सके। उन्हें लोग बुंदेली टार्जन और धर्मेंद्र लाइजर के नाम से जानते हैं, और ये नाम उनकी जबरदस्त फिटनेस और स्टैमिना को पूरी तरह बयां भी करते हैं।
धर्मेंद्र का सफर एक छोटे से सपने से शुरू हुआ था आर्मी में भर्ती होना। उन्होंने छठी कक्षा से ही इसके लिए तैयारी शुरू कर दी थी और पूरी शिद्दत से मेहनत की। तीन बार आर्मी भर्ती में शामिल हुए, हर बार दौड़ में अव्वल रहे, लेकिन सिर्फ 1 इंच हाइट कम होने की वजह से बाहर कर दिए गए। इस असफलता ने उन्हें तोड़ा जरूर, लेकिन झुकाया नहीं। उन्होंने ठान लिया कि अगर सेना में जगह नहीं मिली, तो देश का नाम रोशन करने के लिए एथलीट बनेंगे। इंटरनेट और यूट्यूब से सीखा कि दुनिया के दिग्गज धावक कैसे ट्रेनिंग करते हैं, और खुद को उसी राह पर झोंक दिया।
गांव की मिट्टी से तैयार हो रहा एथलीट
बड़े शहरों में जहां धावकों के लिए अत्याधुनिक ट्रैक, ट्रेनर और खान-पान की सुविधाएं होती हैं, वहीं धर्मेंद्र के पास कुछ नहीं था। लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बनाया। गांव की मिट्टी ही उनका स्टेडियम बनी, खुले खेत ही उनका ट्रैक, और मेहनत ही उनका कोच। धीरे-धीरे उनकी दौड़ का समय सुधरता गया, और आज वह 100 मीटर सिर्फ 10 सेकंड में और 200 मीटर 22 सेकंड में पूरी कर लेते हैं, जो किसी प्रोफेशनल एथलीट से कम नहीं।
जब ट्रैक्टर खींचकर दौड़े धर्मेंद्र
धर्मेंद्र की ट्रेनिंग किसी भी आम धावक से अलग है। जहां बाकी खिलाड़ी वज़न और मशीनों के साथ ट्रेनिंग करते हैं, वहीं उन्होंने 70 किलो का ट्रैक्टर टायर बांधकर दौड़ने का अनोखा तरीका अपनाया। यह सिर्फ उनकी शारीरिक क्षमता ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता को भी दिखाता है। उनका मानना है कि जब ट्रैक्टर खींच सकता हूं, तो अपने सपनों को भी खींच सकता हूं।
साधारण खान-पान, मगर असाधारण स्टेमिना
धर्मेंद्र का डाइट प्लान भी उनकी संघर्ष भरी ज़िंदगी की तरह ही सादा है। महंगे प्रोटीन सप्लीमेंट्स की जगह वह मूंगफली (गरीबों का काजू), महुआ, चना, दूध, दही, मठा और हरी सब्जियां खाते हैं। उनका मानना है कि शरीर को ताकत पैसों से नहीं, मेहनत से मिलती है।
28 रेस में 26 जीत, अब देश के लिए दौड़ने की बारी
धर्मेंद्र अब तक 28 स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं, जिनमें से 26 में उन्होंने जीत दर्ज की है। वह कुश्ती (दंगल) में भी हाथ आजमा चुके हैं, लेकिन उनका असली सपना सिर्फ दौड़ना है। अब वह चाहते हैं कि सरकार और प्रशासन उनकी मदद करें, ताकि उन्हें सही प्रशिक्षण और अवसर मिल सकें।
हुसैन बोल्ट को मानते हैं भगवान, मिल्खा सिंह की सीख रखते हैं याद
धर्मेंद्र को आज भी मिल्खा सिंह की वह बात याद है, 25 से 30 साल बाद कोई ऐसा धावक आएगा, जो भारत को फिर से दौड़ में गौरवान्वित करेगा। वे खुद को उसी जगह खड़ा देखना चाहते हैं। धर्मेंद्र का कहना है, मैं किसी का रिकॉर्ड तोड़ने का दावा नहीं करता, लेकिन अगर सरकार मेरी मदद करे, तो मैं जरूर देश के लिए दौड़ सकता हूं।
आखिरी उम्मीद: क्या मिलेगा सरकार का साथ
धर्मेंद्र ने स्थानीय सांसद, विधायक से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से गुहार लगाई है कि उन्हें सही प्लेटफॉर्म दिया जाए। अगर उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग और सही संसाधन मिल जाएं, तो वह भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए तैयार हैं। अब सवाल यही है कि क्या सरकार और खेल प्रशासन इस होनहार धावक की मेहनत को पहचानेगा या फिर एक और सपना सिर्फ संघर्ष की कहानियों में ही रह जाएगा?
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