राजस्थान के बारां जिले में इन दिनों ‘498 ए टी कैफे’ काफी चर्चाओं का विषय बना हुआ है। जहां पर एक शख्स हाथों में हथकड़ी लगाकर चाय बना रहा है और ग्राहकों को चाय पीला रहा है। ‘मैं तुम्हें सबक सिखा दूंगी’, अब जेल की हवा खाओगे’... ऐसे डायलॉग आमतौर पर फिल्मी लाइफ में सुनने को ही मिलते हैं। लेकिन अगर यही शब्ज इंसान की असल जिंदगी में सुनने को मिल जाए तो जिंदगी बरबादी के कगार पर आ जाती है। इन्हीं शब्दों के बीच एक व्यक्ति की जिंदगी फंसकर रह गई है।
दरअसल, मध्य प्रदेश के नीमच जिले के अठाना कस्बे का रहने वाले कृष्ण कुमार धाकड़ को अपनी यूपीएससी की तैयारी छोड़ कर राजस्थान के बारां जिले के अंता में एक चाय की दुकान लगानी पड़ रही है। यह दुकान महज चाय बेचने या कमाई करने का उद्देश्य नहीं, बल्कि इसके पीछे युवक के जीवन में घटित पूरी कहानी छिपी है। दुकान में लगे इन होर्डिंग और बैनर तक ही कहानी खत्म नहीं होती केके धाकड़ ने अपनी प्रताड़ना को जग जाहिर करने के लिए चाय की दुकान पर वरमाला और एक दूल्हे का सेहरा भी सजा रखा है। साथ ही हाथों में हथकड़ी पहनकर चाय बना रहा हैं, जिसमें वह कहीं न कहीं पत्नी की प्रताड़ना और दहेज के झूठे प्रकरण में न्याय मांगते दिख रहा हैं।
युवक कृष्ण कुमार धाकड़ का विवाह 6 जुलाई 2018 में राजस्थान के बारां जिले के अंता की रहने वाली युवती मीनाक्षी धाकड़ से हुआ था। साल 2019 में केके धाकड़ ने पत्नी संग अंता से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली। पति-पत्नी ने अठाना क्षेत्र से ही मधुमक्खी पालन का कार्य शुरू किया था, जिसके बाद धीरे-धीरे कारोबार बढ़ने लगा और कई बेरोजगार महिलाओं को भी केके धाकड़ और उनकी पत्नी ने रोजगार देना आरंभ किया। केके धाकड़ की जिंदगी में साल 2022 में एक ऐसा मोड़ आया जहां से उनकी बर्बादी शुरू होने लगी। अक्टूबर 2022 में केके धाकड़ की पत्नि अचानक रूठकर अपने मायके अंता चली गई और तभी से शहद का कारोबार ठप हो गया। कुछ माह बाद केके की पत्नि ने घरेलू हिंसा और देहज प्रताड़ना को लेकर आईपीसी की धारा 498ए और भरण पोषण की धारा 125 के तहत न्यायालय में प्रकरण दर्ज करवा दिया।
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केके धाकड़ ने बताया कि वो पिछले 3 सालों से झूठे केस में फंसकर राजस्थान के अंता जिले में न्याय के लिए दर-दर भटक रहे है। मेरी एक बूढ़ी मां है, जिसका मैं एक मात्र सहारा हूं. सब कुछ बर्बाद होने के बाद टीन शेड में जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। महिला संबंधित प्रकरण एक ऐसा प्रकरण है, जहां मुझे मानसिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक प्रताड़ना भी झेलने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में कई बार सोचा कि आत्महत्या कर लूं, मगर मां का ख्याल आ जाता है. बूढ़ी मां का मैं इकलौता सहारा हूं. पिता का पहले ही देहांत हो चुका है. मेरे पास मात्र दो बीघा पुश्तैनी जमीन है। इसी प्रताड़ना से तंग आकर केके धाकड़ ने फैसला लिया है कि अब जहां कानून का दुरुपयोग कर मुझे फंसाने की साजिश रची गई है, उसी क्षेत्र में ‘498ए टी कैफे’ के नाम से चाय बेचकर कानून के साथ निष्पक्ष लड़ाई लड़ता रहुंगा, और इसलिए मैंने यह भी स्लोगन लिखा है कि ‘जब तक नहीं मिलता न्याय, तब तक उबलती रहेगी चाय’।