बर्डोद कस्बे के समीप अरावली पर्वतमाला के शिखर पर स्थित सैकड़ों वर्ष पुराना ऐतिहासिक किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। कभी सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टि से क्षेत्र की शान रहा यह किला अब संबंधित विभागों की अनदेखी के कारण धीरे-धीरे मिट्टी में मिल रहा है। देखरेख के अभाव में किले का बड़ा हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है, जबकि कई दीवारें और बुर्ज पूरी तरह जमींदोज हो चुके हैं।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह किला केवल एक इमारत नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की ऐतिहासिक पहचान रहा है। अरावली की ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यह किला दूर-दूर से दिखाई देता था और पुराने समय में सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जाता था। लेकिन आज स्थिति यह है कि किले की दीवारों में गहरी दरारें पड़ चुकी हैं, पत्थर नीचे गिर रहे हैं और बारिश के मौसम में इसका ढांचा और भी कमजोर हो जाता है।
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ग्रामीणों ने बताया कि किले तक पहुंचने वाले रास्ते भी जर्जर हालत में हैं। खराब सड़कों और सुविधाओं के अभाव में पर्यटक यहां आने से कतराने लगे हैं। इसका सीधा असर क्षेत्र की पर्यटन संभावनाओं पर पड़ रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते संरक्षण और मरम्मत का काम शुरू नहीं किया गया, तो आने वाले कुछ वर्षों में यह ऐतिहासिक किला पूरी तरह समाप्त हो सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि पुरातत्व विभाग अगर गंभीरता दिखाए, तो किले का जीर्णोद्धार कर न सिर्फ इस धरोहर को बचाया जा सकता है, बल्कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल सकता है।
अब बड़ा सवाल यह है कि संबंधित विभाग कब जागेगा। अगर जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो अरावली की गोद में बसा यह ऐतिहासिक किला केवल इतिहास की किताबों और यादों तक ही सीमित रह जाएगा।