जिले के माउंट आबू के अचलगढ़ क्षेत्र में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां पर शिवलिंग की नहीं बल्कि, भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पहाड़ को जिस पर माउंट आबू बसा है, उसे स्वयं भगवान शिव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी इस मंदिर का विवरण मिलता है।
माउंट आबू बस स्टैंड से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर शहर के दर्शनीय स्थलों में से एक है। यह अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्थित है। इसका इतिहास भी काफी पुराना है। इस महादेव मंदिर परिसर में ही द्वारिकाधीश का भी मंदिर है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं।
ये भी पढ़ें: Banswara News: आठ दिनों के सन्नाटे के बाद जमकर बरसे बदरा, घाटोल में हाईवे बना तालाब; आवागमन प्रभावित
यह है पौराणिक कथा
इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल खाई थी। इस खाई में ऋषि वशिष्ठ की गायें गिर जाती थीं। इससे परेशान ऋषियों ने देवताओं से खाई को बंद करने की गुहार लगाई, ताकि आश्रमों में पल रहीं गायों का जीवन बच सके। ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदीवर्धन को उस खाई को बंद करने का आदेश दिया, जिसे अर्बुद नामक एक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचाया था। अर्बुद सांप को इस बात का अहंकार हो गया कि उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर रखा है। इससे अर्बुद सांप हिलने-डुलने लगा था। इस वजह से पर्वत पर कंपन होने लगा। इससे घबराए भक्तों की पुकार सुन महादेव ने अपने अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर अर्बुद सांप का घमंड तोड़ दिया था। मंदिर में शिव के दाहिने पैर का वही अंगूठा है, जिससे शिवजी ने काशी से बैठे हुए इस पर्वत को थामा था। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में शिवजी के अंगूठे की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव के अंगूठे ने पूरे माउंट आबू पहाड़ को थाम रखा है। जिस दिन अंगूठे का निशान गायब हो जाएगा, उस दिन माउंट आबू खत्म हो जाएगा।
शिवलिंग दिन में 3 बार बदलता है रंग
यह विश्व का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान शिव के अंगूठेनुमा गोल भूरे पत्थर की पूजा होती है। यह गोल पत्थर गर्भगृह के एक कुंड से निकलता है। गर्भगृह की जिस गोल खाई से पत्थर निकला है, उसका कोई अंत नहीं है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यहां स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। शिवलिंग देखने में एकदम सामान्य लगेगा, लेकिन इसके बदलते हुए रंग आपको हैरान कर देंगे। शिवलिंग का रंग सुबह लाल, दोपहर में केसरिया और रात में काला हो जाता है। मंदिर में पंचधातुओं से बनी चार टन वजनी नंदी की मूर्ति भी है। मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर की बाईं ओर दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे न्याय की शपथ लेते थे।