इस बार देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह जो दोनों एक ही दिन होते हैं इसका मान 14 और 15 दोनों दिन है।चूंकि 14 को सूर्योदय से एकादशी तिथि 14 ताऱीख को नहीं थी इसलिए तुलसी विवाह 15 नवंबर को भी मनाया जा रहा है। पुराणों के अनुरूप चार माह शयन के बाद विष्णु जी आज ही के दिन योग निद्रा से उठते हैं और इसलिए इसे देवउठनी एकाजशी भी कहते हैं। इसी दिन से विवाह एवं मांगलिक कार्यक्रम भी शुरु हो जाते हैं।तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।
आइए आपको बताते हैं तुलसी विवाह का सही समय और पूजन विधि क्या है। दरअसल सोमवार को दोपहर एक बजकर 2 मिनट से 2 बज कर 44 मिनट तक तुलसी विवाह का मुहूर्त है। इसके अलावा शाम को 5:17 से 5 बज कर 41 मिनट तक पूजन का मुहूर्त है। आप इन दोनों मुहूर्तों में पूजन कर सकते हैं।
अब आपको बताते हैं कि तुलसी विवाह के पूजन विधि क्या हो। जिससे भगवान विष्णु और मां तुलसी का आशीर्वाद आप सबको मिले। सबसे पहले चौकी पर तुलसी का पौधा स्थापित करें और दूसरी और उसी चौकी पर शालिग्राम रखें। इनके बगल में एक जल भरा कलश रखें। घी का दीपक जलाएं तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल छिड़के। रोली ,चंदन का टीका लगाएं। तुलसी के गमले में गन्ने का मंडप जरूर बनाएं। अब तुलसी मां को सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी, चूड़ी आदि चढ़ाएं। कुछ लोग श्रृंगार का पूरा सामान तुलसी जी को अर्पित करते हैं। इसके बाद शालिग्राम को हाथ में लेकर परिक्रमा करें और इसके बाद आरती करें। तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें। कहते हैं कि तुलसी विवाह करने का फल कन्यादान करने के बराबर प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन की परेशानियां और कष्ट दूर होते हैं साथ ही वैवाहिक जीवन भी अच्छा रहता है।
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