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झटका: बाइडन की घरेलू नाकामियों का असर विदेश में उनके रसूख पर पड़ेगा
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, रोम
Published by: Amit Mandal
Updated Sat, 30 Oct 2021 03:49 PM IST
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सार
विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी कांग्रेस में अभी जो संघर्ष देखने को मिल रहा है, वह वहां लगातार ध्रुवीकृत होती गई राजनीति का परिणाम है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन
- फोटो : पीटीआई
विस्तार
इटली की राजधानी रोम में जी-20 देशों की शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रवाना होने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पूरा जोर लगाया कि हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव उनके उस हार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर बिल को पारित कर दे, जिसे सीनेट में दोनों पार्टियों की सहमति से पास किया जा चुका है। लेकिन उनकी ही डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रोग्रेसिव धड़े ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। इसके पहले पार्टी के मध्यमार्गी सांसदों को संतुष्ट करने के लिए बाइडन ने अपने सॉफ्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज (बिल्ड बैक बेटर) का आकार आधा घटा दिया। लेकिन ये बिल भी पार्टी के अंदर मतभेदों के कारण अधर में है।
बाइडन प्रशसन घरेलू एजेंडा गहरी मुसीबत में
अब अनुमान लगाए जा रहा है कि बाइडन की इस नाकामी का असर उनके अंतरराष्ट्रीय रसूख पर पड़ेगा। पूर्व जॉर्ज डब्लू बुश प्रशासन में पदाधिकारी रह चुके हीदर कॉनली ने वेबसाइट पॉलिटिको.कॉम से कहा- राष्ट्रपति का हनीमून पीरियड खत्म हो गया है। हमारे सहयोगी देश अब इस बारे में अपने निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि बाइडन जो कहते हैं, क्या वे उसे अमली जामा पहनाने की स्थिति में हैं। उनकी राय में बाइडन प्रशासन का घरेलू एजेंडा गहरी मुसीबत में फंसा हुआ है। साथ ही उन्हें लगता है कि अमेरिका की अंदरूनी प्रक्रियाओं में कमियों से उनकी सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
कुछ सहयोगी देशों की शिकायत है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर अमेरिका की महत्वाकांक्षा घटती जा रही है। अमेरिका में फ्रांस के पूर्व राजदूत जेरार्ड औरॉ के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोप के साथ ‘क्रूर व्यवहार’ किया था। बाइडन का स्वभाव उनसे अलग है। फिर भी ये धारणा कायम है कि अमेरिका अब अंतर्मुखी होता जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर अपने देश में अटका मामला
बाइडन अपनी मौजूदा यूरोप यात्रा के दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद स्कॉटलैंड के ग्लासगो में शुरू हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जाएंगे। लेकिन अपने देश में वे जलवायु परिवर्तन रोकने की योजना पर खर्च बढ़ाने से संबंधित प्रस्ताव को कांग्रेस (संसद) में पारित करवाने में नाकाम रहे। उनकी ही पार्टी के कुछ सांसदों ने ऐसा नहीं होने दिया। उधर रिपब्लिकन पार्टी खुल कर ग्लोबल मिनिमम टैक्स योजना का विरोध कर रही है। 100 बड़ी कंपनियों पर 15 फीसदी की दर से पूरी दुनिया में न्यूनतम टैक्स लगाने का ये प्रस्ताव बाइडन ने ही रखा था। इस पर लगभग 140 देश सहमत हो गए। लेकिन इसे अब खुद अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की मंजूरी मिलना मुश्किल लग रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी कांग्रेस में अभी जो संघर्ष देखने को मिल रहा है, वह वहां लगातार ध्रुवीकृत होती गई राजनीति का परिणाम है। इसके बीच किसी बड़े एजेंडे को आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया है। बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने वेबसाइट पॉलिटिको से कहा कि राष्ट्रपति पुरानी सोच को चुनौती दे रहे हैं। वे कुछ बड़े लक्ष्य पाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं इससे इनकार नहीं करता कि इसमें हमें कुछ बिंदुओं पर लड़खड़ाना पड़ा है। लेकिन उनकी टीम बुनियादी रणनीतिक बदलाव लाने की कोशिश कर रही है, जिसका लाभ लंबी अवधि में मिलेगा।
जबकि विश्लेषकों का कहना है कि चुनौतियां अभी सामने खड़ी हैं। भविष्य में क्या लाभ होगा, दुनिया की नजर में यह असल मुद्दा नहीं है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। जलवायु परिवर्तन को रोकने जैसे उद्देश्य बिना उसकी सक्रिय भागीदारी के हासिल नहीं हो सकते। इसलिए घरेलू एजेंडे में बाइडन प्रशासन की नाकामियों से अमेरिका के सहयोगी देशों में मायूसी है। आशंका यह है कि इसका असर बाइडन रसूख पर पड़ेगा।
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अब अनुमान लगाए जा रहा है कि बाइडन की इस नाकामी का असर उनके अंतरराष्ट्रीय रसूख पर पड़ेगा। पूर्व जॉर्ज डब्लू बुश प्रशासन में पदाधिकारी रह चुके हीदर कॉनली ने वेबसाइट पॉलिटिको.कॉम से कहा- राष्ट्रपति का हनीमून पीरियड खत्म हो गया है। हमारे सहयोगी देश अब इस बारे में अपने निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि बाइडन जो कहते हैं, क्या वे उसे अमली जामा पहनाने की स्थिति में हैं। उनकी राय में बाइडन प्रशासन का घरेलू एजेंडा गहरी मुसीबत में फंसा हुआ है। साथ ही उन्हें लगता है कि अमेरिका की अंदरूनी प्रक्रियाओं में कमियों से उनकी सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
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कुछ सहयोगी देशों की शिकायत है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर अमेरिका की महत्वाकांक्षा घटती जा रही है। अमेरिका में फ्रांस के पूर्व राजदूत जेरार्ड औरॉ के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोप के साथ ‘क्रूर व्यवहार’ किया था। बाइडन का स्वभाव उनसे अलग है। फिर भी ये धारणा कायम है कि अमेरिका अब अंतर्मुखी होता जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर अपने देश में अटका मामला
बाइडन अपनी मौजूदा यूरोप यात्रा के दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद स्कॉटलैंड के ग्लासगो में शुरू हो रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जाएंगे। लेकिन अपने देश में वे जलवायु परिवर्तन रोकने की योजना पर खर्च बढ़ाने से संबंधित प्रस्ताव को कांग्रेस (संसद) में पारित करवाने में नाकाम रहे। उनकी ही पार्टी के कुछ सांसदों ने ऐसा नहीं होने दिया। उधर रिपब्लिकन पार्टी खुल कर ग्लोबल मिनिमम टैक्स योजना का विरोध कर रही है। 100 बड़ी कंपनियों पर 15 फीसदी की दर से पूरी दुनिया में न्यूनतम टैक्स लगाने का ये प्रस्ताव बाइडन ने ही रखा था। इस पर लगभग 140 देश सहमत हो गए। लेकिन इसे अब खुद अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की मंजूरी मिलना मुश्किल लग रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी कांग्रेस में अभी जो संघर्ष देखने को मिल रहा है, वह वहां लगातार ध्रुवीकृत होती गई राजनीति का परिणाम है। इसके बीच किसी बड़े एजेंडे को आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया है। बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने वेबसाइट पॉलिटिको से कहा कि राष्ट्रपति पुरानी सोच को चुनौती दे रहे हैं। वे कुछ बड़े लक्ष्य पाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं इससे इनकार नहीं करता कि इसमें हमें कुछ बिंदुओं पर लड़खड़ाना पड़ा है। लेकिन उनकी टीम बुनियादी रणनीतिक बदलाव लाने की कोशिश कर रही है, जिसका लाभ लंबी अवधि में मिलेगा।
जबकि विश्लेषकों का कहना है कि चुनौतियां अभी सामने खड़ी हैं। भविष्य में क्या लाभ होगा, दुनिया की नजर में यह असल मुद्दा नहीं है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है। जलवायु परिवर्तन को रोकने जैसे उद्देश्य बिना उसकी सक्रिय भागीदारी के हासिल नहीं हो सकते। इसलिए घरेलू एजेंडे में बाइडन प्रशासन की नाकामियों से अमेरिका के सहयोगी देशों में मायूसी है। आशंका यह है कि इसका असर बाइडन रसूख पर पड़ेगा।