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Navratri 2025 : दुर्गाबाड़ी में बांग्ला रीति-रिवाजों से होती है मां की विशेष आराधना, जानें विरासत की दास्तान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला,पूर्णिया
Published by: तरुणेंद्र चतुर्वेदी
Updated Mon, 29 Sep 2025 12:04 PM IST
सार
Purnia News : नवरात्रि के पावन पर्व पर पूर्णिया में 110 साल पुरानी भट्टा दुर्गाबाड़ी में भक्तों की भीड़ जुटी हुई है। आस्थावान लोग मां की साधना में रत हैं। चलिए इस दुर्गा पंडाल और मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहें हैं...।
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पंडाल पर विराजमान मां।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पूर्णिया में 110 साल पुरानी भट्टा दुर्गाबाड़ी सिर्फ एक पूजा पंडाल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र है। इस दुर्गाबाड़ी की प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी यहां आकर मां दुर्गा का आशीर्वाद ले चुके हैं। इस वर्ष यह प्रतिष्ठित स्थल बांग्ला वर्ण लिपि की थीम पर बने भव्य पंडाल और अपनी सदियों पुरानी बंगाली परंपरा के साथ एक बार फिर चर्चा में है।
भक्तों ने मां दुर्गा के भव्य रूप के दर्शन किए
षष्ठी की रात बांग्ला मंडप में मां दुर्गा के पट भक्तों के लिए खोल दिए गए। 1916 में स्थापित इस स्थल पर यह 110वां वर्ष है, जब बांग्ला रीति-रिवाजों के अनुसार बोधन पूजा की गई और मां को जगाया गया। पट खुलते ही ढाक के तेज स्वर से पंडाल गूंज उठा और विशेष पूजा-अर्चना के बीच भक्तों ने मां दुर्गा के भव्य रूप के दर्शन किए। भट्टा दुर्गाबाड़ी पूजा समिति के अध्यक्ष डॉ. अमित भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी परंपरा की सबसे बड़ी पहचान यहां का शुद्ध वैदिक और बंगाली रीति से पूजा करना है। पंडाल का भव्य निर्माण और मूर्तियों की कारीगरी में आज भी बंगाल की सांस्कृतिक छाप साफ देखी जा सकती है।
20 कारीगरों ने इस पंडाल को एक महीने में तैयार किया
इस वर्ष दुर्गाबाड़ी ने अपनी थीम में बांग्ला वर्ण लिपि को केंद्रीय स्थान दिया है। यह पंडाल शहर के सबसे महंगे पंडालों में से एक है, जिस पर करीब 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। बंगाल से आए 20 कारीगरों ने इस पंडाल को एक महीने में तैयार किया है, ताकि श्रद्धालु पूर्णिया में ही कोलकाता की दुर्गा पूजा का अनुभव कर सकें। सचिव सुचित्रा घोष ने बताया कि मां की प्रतिमा का साजो-श्रृंगार सोने के आभूषणों से किया गया है। पंडाल की भव्य बनावट इतनी मोहक है कि दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ सेल्फी और फोटोग्राफी से खुद को रोक नहीं पा रही है।
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56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं
समिति की उपाध्यक्ष सोनाली चक्रवर्ती के अनुसार, इस दुर्गाबाड़ी की परंपराएं बहुत विशिष्ट हैं। सप्तमी को अधिवास पूजा के बाद, अष्टमी के दिन मां के नौ रूपों की विशेष पूजा होती है और उन्हें 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। इन भोगों को माता प्रसाद के रूप में मिलाकर, नवमी के दिन नारायण सेवा के माध्यम से लाखों श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है। यही कारण है कि अष्टमी और नवमी पर यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है।
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भक्तों ने मां दुर्गा के भव्य रूप के दर्शन किए
षष्ठी की रात बांग्ला मंडप में मां दुर्गा के पट भक्तों के लिए खोल दिए गए। 1916 में स्थापित इस स्थल पर यह 110वां वर्ष है, जब बांग्ला रीति-रिवाजों के अनुसार बोधन पूजा की गई और मां को जगाया गया। पट खुलते ही ढाक के तेज स्वर से पंडाल गूंज उठा और विशेष पूजा-अर्चना के बीच भक्तों ने मां दुर्गा के भव्य रूप के दर्शन किए। भट्टा दुर्गाबाड़ी पूजा समिति के अध्यक्ष डॉ. अमित भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी परंपरा की सबसे बड़ी पहचान यहां का शुद्ध वैदिक और बंगाली रीति से पूजा करना है। पंडाल का भव्य निर्माण और मूर्तियों की कारीगरी में आज भी बंगाल की सांस्कृतिक छाप साफ देखी जा सकती है।
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20 कारीगरों ने इस पंडाल को एक महीने में तैयार किया
इस वर्ष दुर्गाबाड़ी ने अपनी थीम में बांग्ला वर्ण लिपि को केंद्रीय स्थान दिया है। यह पंडाल शहर के सबसे महंगे पंडालों में से एक है, जिस पर करीब 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। बंगाल से आए 20 कारीगरों ने इस पंडाल को एक महीने में तैयार किया है, ताकि श्रद्धालु पूर्णिया में ही कोलकाता की दुर्गा पूजा का अनुभव कर सकें। सचिव सुचित्रा घोष ने बताया कि मां की प्रतिमा का साजो-श्रृंगार सोने के आभूषणों से किया गया है। पंडाल की भव्य बनावट इतनी मोहक है कि दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ सेल्फी और फोटोग्राफी से खुद को रोक नहीं पा रही है।
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56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं
समिति की उपाध्यक्ष सोनाली चक्रवर्ती के अनुसार, इस दुर्गाबाड़ी की परंपराएं बहुत विशिष्ट हैं। सप्तमी को अधिवास पूजा के बाद, अष्टमी के दिन मां के नौ रूपों की विशेष पूजा होती है और उन्हें 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। इन भोगों को माता प्रसाद के रूप में मिलाकर, नवमी के दिन नारायण सेवा के माध्यम से लाखों श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है। यही कारण है कि अष्टमी और नवमी पर यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है।
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