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APJ Abdul Kalam: एपीजे अब्दुल कलाम की जिंदगी के अनसुने किस्से, जानिए उन्हें क्यों कहा जाता था जनता का राष्ट्रपति

फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सोनू शर्मा Updated Mon, 27 Jul 2020 03:32 PM IST
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APJ Abdul Kalam Death Anniversary News in Hindi: Untold stories of former president of india
एपीजे अब्दुल कलाम पुण्यतिथि - फोटो : amar ujala

अपनी सरकार के गिरने से पहले बीजेपी के तानों से तंग आ कर कि वो एक 'कमजोर' प्रधानमंत्री हैं, इंदर कुमार गुजराल ने तय किया कि वो भारतवासियों और दुनिया वालों को बताएंगे कि वो भारतीय सुरक्षा को कितनी ज्यादा तरजीह देते हैं। उन्होंने 'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला लिया। इससे पहले 1952 में सी. वी. रमण को छोड़कर किसी वैज्ञानिक को इस पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया था। 

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एक मार्च, 1998 को राष्ट्रपति भवन में भारत रत्न के पुरस्कार वितरण समारोह में कलाम नर्वस थे और अपनी नीली धारी की टाई को बार-बार छू कर देख रहे थे। कलाम को इस तरह के औपचारिक मौकों से चिढ़ थी, जहां उन्हें उस तरह के कपड़े पहनने पड़ते थे जिसमें वो अपनेआप को कभी सहज नहीं पाते थे। सूट पहनना उन्हें कभी रास नहीं आया। यहां तक कि वो चमड़े के जूतों की जगह हमेशा स्पोर्ट्स शू पहनना ही पसंद करते थे। 

भारत रत्न का सम्मान ग्रहण करने के बाद उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में से एक थे अटल बिहारी वाजपेई। वाजपेई की कलाम से पहली मुलाकात अगस्त, 1980 में हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें और प्रोफेसर सतीश धवन को एसएलवी 3 के सफलतापूर्ण प्रक्षेपण के बाद प्रमुख सांसदों से मिलने के लिए बुलवाया था। 

कलाम को जब इस आमंत्रण की भनक मिली तो वो घबरा गए और धवन से बोले, सर मेरे पास न तो सूट है और न ही जूते। मेरे पास ले दे के मेरी चेर्पू है (चप्पल के लिए तमिल शब्द )। तब सतीश धवन ने मुस्कराते हुए उनसे कहा था, 'कलाम तुम पहले से ही सफलता का सूट पहने हुए हो। इसलिए हर हालत में वहां पहुंचो।'

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अटल बिहारी वाजपेई और अब्दुल कलाम बात करते हुए (फाइल फोटो) - फोटो : Social media

वाजपेई ने दिया था कलाम को मंत्री बनने का न्योता

मशहूर पत्रकार राज चेंगप्पा अपनी किताब 'वेपेंस ऑफ पीस' में लिखते हैं, 'उस बैठक में जब इंदिरा गांधी ने कलाम का अटल बिहारी वाजपेई से परिचय कराया तो उन्होंने कलाम से हाथ मिलाने की बजाए उन्हें गले लगा लिया। ये देखते ही इंदिरा गांधी शरारती ढंग से मुस्कराईं और उन्होंने वाजपेई की चुटकी लेते हुए कहा, 'अटल जी लेकिन कलाम मुसलमान हैं।' तब वाजपेई ने जवाब दिया, 'जी हां, लेकिन वो भारतीय पहले हैं और एक महान वैज्ञानिक हैं।'


18 दिन बाद जब वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कलाम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया। अगर कलाम इसके लिए राजू हो जाते तो वाजपेई को न सिर्फ एक काबिल मंत्री मिलता बल्कि पूरे भारत के मुसलमानों को ये संदेश जाता कि उनकी बीजेपी की सरकार में अनदेखी नहीं की जाएगी। 

कलाम ने इस प्रस्ताव पर पूरे एक दिन विचार किया। अगले दिन उन्होंने वाजपेई से मिल कर बहुत विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि 'रक्षा शोध और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है। वो अपनी वर्तमान जिम्मेदारियों को निभा कर देश की बेहतर सेवा कर सकते हैं।' दो महीने बाद पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद ये स्पष्ट हो गया कि कलाम ने वो पद क्यों नहीं स्वीकार किया था। 

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अटल बिहारी वाजपेई और अब्दुल कलाम बात करते हुए (फाइल फोटो) - फोटो : Social media

वाजपेई ने ही कलाम को चुना राष्ट्रपति पद के लिए 

10 जून, 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम को अन्ना विश्वविद्यलय के कुलपति डॉक्टर कलानिधि का संदेश मिला कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आप तुरंत कुलपति के दफ्तर चले आइए ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात हो सके। जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से कनेक्ट किया गया, वाजपेई फोन पर आए और बोले, 'कलाम साहब देश को राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है।' कलाम ने वाजपेई को धन्यवाद दिया और कहा कि इस पेशकश पर विचार करने के लिए मुझे एक घंटे का समय चाहिए। वाजपेई ने कहा, 'आप समय जरूर ले लीजिए, लेकिन मुझे आपसे हां चाहिए, ना नहीं।'

शाम तक एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नान्डिस, संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर कलाम की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया। जब डॉक्टर कलाम दिल्ली पहुंचे तो हवाईअड्डे पर रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नान्डिस ने उनका स्वागत किया। 

कलाम ने एशियाड विलेज में डीआरडीओ गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया। 18 जून, 2002 को कलाम ने अटल बिहारी वाजपेई और उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों की उपस्थिति में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। पर्चा भरते समय वाजपेई ने उनके साथ मजाक किया कि 'आप भी मेरी तरह कुंवारे हैं' तो कलाम ने ठहाकों के बीच जवाब दिया, 'प्रधानमंत्री महोदय मैं न सिर्फ कुंवारा हूं बल्कि ब्रह्मचारी भी हूं।'

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पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम - फोटो : amar ujala

कलाम सूट बनने की कहानी

कलाम के राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे बड़ी समस्या ये आई कि वो पहनेंगे क्या? बरसों से नीली कमीज और स्पोर्ट्स शू पहन रहे कलाम राष्ट्रपति के रूप में तो वो सब पहन नहीं सकते थे। राष्ट्रपति भवन का एक दर्जी था जिसने पिछले कई राष्ट्रपतियों के सूट सिले थे। एक दिन आ कर उसने डॉक्टर कलाम की भी नाप ले डाली। 

कलाम के जीवनीकार और सहयोगी अरुण तिवारी अपनी किताब 'एपीजे अब्दुल कलाम अ लाइफ' में लिखते हैं, 'कुछ दिनों बाद दर्जी कलाम के लिए चार नए बंदगले के सूट सिल कर ले आया। कुछ ही मिनटों में हमेशा लापरवाही से कपड़े पहनने वाले कलाम की काया ही बदल गई, लेकिन कलाम इससे खुद खुश नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा, 'मैं तो इसमें सांस ही नहीं ले सकता। क्या इसके कट में कोई परिवर्तन किया जा सकता है?' 

परेशान दर्जी सोचते रहे कि क्या किया जाए। कलाम ने खुद ही सलाह दी कि इसे आप गर्दन के पास से थोड़ा काट दीजिए। इसके बाद से कलाम के इस कट के सूट को 'कलाम सूट' कहा जाने लगा। नए राष्ट्रपति को टाई पहनने से भी नफरत थी। बंद गले के सूट की तरह टाई से भी उनका दम घुटता था। एक बार मैंने उन्हें अपनी टाई से अपना चश्मा साफ करते हुए देखा। मैंने उनसे कहा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। उनका जवाब था, टाई पूरी तरह से उद्देश्यहीन वस्त्र है। कम से कम मैं इसका कुछ तो इस्तेमाल कर रहा हूं।'

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अब्दुल कलाम - फोटो : Social media

नियम से सुबह की नमाज पढ़ते थे कलाम 

बहुत व्यस्त राष्ट्रपति होने के बावजूद कलाम अपने लिए कुछ समय निकाल ही लेते थे। उनको रुद्र वीणा बजाने का बहुत शौक था। डॉक्टर कलाम के प्रेस सचिव रहे एस. एम. खां ने मुझे बताया था, 'वो वॉक करना भी पसंद करते थे, वो भी सुबह दस बजे या दोपहर चार बजे। वो अपना नाश्ता सुबह साढ़े दस बजे लेते थे, इसलिए उनके लंच में देरी हो जाती थी। उनका लंच दोपहर साढ़े चार बजे होता था और डिनर अक्सर रात 12 बजे के बाद। डॉक्टर कलाम धार्मिक मुसलमान थे और हर दिन सुबह यानि फज्र की नमाज पढ़ा करते थे। मैंने अक्सर उन्हें कुरान और गीता पढ़ते हुए भी देखा था। वो स्वामी थिरुवल्लुवर के उपदेशों की किताब 'थिरुक्कुरल' तमिल में पढ़ा करते थे। वो पक्के शाकाहारी थे और शराब से उनका दूर-दूर का वास्ता नहीं था। पूरे देश में निर्देश भेज दिए गए थे कि वो जहां भी ठहरें उन्हें सादा शाकाहारी खाना ही परोसा जाए। उनको महामहिम या 'हिज एक्सलेंसी' कहलाना भी कतई पसंद नहीं था।' 

लेकिन कुछ हल्कों में ये शिकायत अक्सर सुनी गई कि केसरिया खेमे के प्रति उनका 'सॉफ्ट कॉर्नर' था। उस खेमे से ये संदेश देने की भी कोशिश की गई कि भारत के हर मुसलमान को उनकी तरह ही होना चाहिए और जो इस मापदंड पर खरा नहीं उतरता उसके आचरण को सवालों के घेरे में लाया जा सकता है। 

कलाम द्वारा बीजेपी की समान नागरिक संहिता की मांग का समर्थन करने पर भी कुछ भौंहें उठीं। वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को कलाम का सत्य साईं बाबा से मिलने पुट्टपार्थी जाना भी अखरा। उनकी शिकायत थी कि वैज्ञानिक सोच की वकालत करने वाला शख्स ऐसा कर लोगों के सामने गलत उदाहरण पेश कर रहा है। 

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