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Rupee Vs Dollar: रूस ने परमाणु हमला किया तो चरमरा जाएगी अर्थव्यवस्था, मंदी की आहट के बीच कितना सुरक्षित है देश

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Wed, 28 Sep 2022 11:19 PM IST
सार
Rupee Vs Dollar: आर्थिक मामलों के जानकार प्रो. अरुण कुमार ने अमर उजाला से कहा कि रुपये के गिरने से भारत का आयात महंगा हो जाएगा। इससे देश को पेट्रोल, डीजल, गैस, खाद्यान्न तेल और तकनीकी सामानों के आयात पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इससे तेल कंपनियों पर भी भार बढ़ेगा और वे तेल कीमतों की बढ़ोतरी करने पर मजबूर होंगी...
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Rupee Vs Dollar: Rupee reaches 82 against the dollar with the biggest fall ever
Rupee Vs Dollar - फोटो : pixabay

विस्तार
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डॉलर के मुकाबले दुनिया की सभी करेंसी में गिरावट का दौर जारी है। यूरो, स्टर्लिंग, येन और पौंड तक इसकी मार से नहीं बच सके हैं। रुपया भी अब तक की सबसे बड़ी गिरावट के साथ 82 रुपये तक पहुंच चुका है। दुनिया की करेंसियों में गिरावट का यह दौर और कितना लंबा खिंचेगा, और रुपये में अभी कितनी अधिक गिरावट आएगी, कहा नहीं जा सकता। रूस-यूक्रेन युद्ध की अनिश्चितता ने बाज़ार में घबराहट का दौर पैदा किया है, जिससे निवेशक डॉलर में निवेश कर रहे हैं, जिसके चलते दूसरी करेंसियां टूट रही हैं, बाज़ार टूट रहे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यूक्रेन में पिछड़ रहे रूस ने यदि अपनी साख बचाने के लिए परमाणु हमला किया, जैसी कि वह धमकी लगातार दे रहा है, तो दुनिया को ऐसे महासंकट से सामना करना पड़ सकता है, जिससे निपटना मुश्किल होगा।



आर्थिक मामलों के जानकार प्रो. अरुण कुमार ने अमर उजाला से कहा कि रुपये के गिरने से भारत का आयात महंगा हो जाएगा। इससे देश को पेट्रोल, डीजल, गैस, खाद्यान्न तेल और तकनीकी सामानों के आयात पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इससे तेल कंपनियों पर भी भार बढ़ेगा और वे तेल कीमतों की बढ़ोतरी करने पर मजबूर होंगी। यदि इस मार से लोगों को न बचाया गया तो खुदरा महंगाई दर एक बार फिर बेलगाम हो जायेगी जो पहले ही उच्च स्तर पर है।


इस मार से बचाने के लिए सरकार के पास पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम करने का विकल्प मौजूद है। यह विकल्प दूसरे देशों के पास उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपने यहां इन वस्तुओं पर इतना ज्यादा टैक्स नहीं लगा रखा है। खाद्यान्न तेल और दालों की महंगाई से लोगों को बचाने के लिए इन्हें उचित दर की दुकानों या पीडीएस सिस्टम से इसे लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।

प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि रुपये की यह गिरावट कहां जाकर थमेगी, इसकी कभी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन यदि रूस-युक्रेन युद्ध की स्थिति ज्यादा विकट होती है, तो इससे परिस्थितियां बेकाबू हो सकती हैं। दुनिया के ज्यादातर देशों के सेंट्रल बैंक ब्याज दरों को बढ़ाकर महंगाई और करेंसी के गिरते मूल्य को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ बेहतर कदम उठाये जाएं तो करेंसियों में गिरावट का यह सिलसिला थम भी सकता है।    

मंदी से निपटने की चुनौती

बेलगाम महंगाई के कारण दुनिया में मंदी आने का खतरा बढ़ गया है। ज्यादातर अमेरिकी-यूरोपीय देश नकारात्मक वृद्धि दर से गुजर रहे हैं। वित्त वर्ष 2022-23 में कई देशों की जीडीपी में शून्य से 1.5 फीसदी तक की नाम मात्र की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है। करेंसी के गिरते मूल्य से यह समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है। इससे इन बाज़ारों में मांग कमजोर हो जायेगी, जिससे भारत से इन देशों को होने वाला निर्यात भी कमजोर हो जाएगा। इससे भारत के भी मंदी की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है।


चूंकि, भारत की अर्थव्यस्था सबसे ज्यादा आंतरिक व्यापार पर आधारित है, यही कारण है कि मंदी के दौर में भी भारत कुछ मजबूत स्थिति में बना रह सकता है। यही कारण है कि इस संकट के बाद भी भारत की जीडीपी में 7.3 फीसदी के आसपास की वृद्धि होने का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन निर्यात ठहरने से भारत की कंपनियों में वृद्धि ठहर सकती है। इससे नई नौकरियां सृजित न होने का खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि इस दौर में निवेशक नये प्रोजेक्ट में पैसा लगाने से बच सकते हैं।    

आंकड़ों की कहानी

रुपये की इस गिरावट को आंकड़ों में समझना चाहें, तो कहा जा सकता है कि पिछले 12 महीनों में रुपये के मूल्य में 12 फीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। रुपये को संभालने की कोशिश में रिजर्व बैंक ने डॉलर को जमकर खर्च किया है। इसका परिणाम हुआ है कि विदेश करेंसी रिजर्व एक साल में 642 बिलियन डालर से गिर कर 545.5 बिलियन डालर पर आ गया है। एक साल पहले सितंबर 2021 में एक डालर का मूल्य 73 रुपये था जो अब 82 रुपये के करीब पहुंच गया है।

रुपये को संभालने की कोशिश न करे आरबीआई

आर्थिक मामलों के जानकार पूर्व सचिव अजय शंकर ने अमर उजाला से कहा कि पूरी दुनिया की करेंसी के गिरावट के दौर में रुपये का गिरना बहुत स्वाभाविक था। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इस गिरावट को कम करने के लिए कई उपाय किये हैं। इसके लिए उसने भारी मात्रा में डॉलर खर्च किया है, लेकिन उनका मानना है कि आरबीआई को रुपये को टूटने से बचाने का कृत्रिम प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि इन प्रयासों की सीमा बहुत कम होती है और इस तरीके से रुपये को गिरने से एक सीमा से ज्यादा नहीं रोका जा सकता।

दूसरी बात, इस समय दुनिया के ज्यादातर पश्चिमी देश कड़ी महंगाई का सामना कर रहे हैं। उनकी अर्थव्यवस्थाएं लगभग ठहराव की स्थिति में आ गई है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए अपना निर्यात बनाये रखने की कठिन चुनौती होगी। उनका मानना है कि यदि करेंसी टूटती है, तो इससे हमारे उत्पाद अन्य देशों के मुकाबले सस्ते होंगे और निर्यात दर बनाये रखने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि चीन और जापान जैसे देशों ने अपनी करेंसी को कृत्रिम तरीके से गिराकर ही निर्यात में बढ़ोतरी हासिल की थी, भारत को भी अब इस अवसर का लाभ उसी तरीके से उठाना चाहिए।  

विपक्ष ने लगाया आरोप

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार गिरते रुपये को संभालने में असफल साबित हुई है। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान भी एक बार रुपये के मूल्य में कमी आई थी, लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने जल्द ही रुपये की साख लौटाने में सफलता हासिल की थी, जबकि वर्तमान केंद्र सरकार इस तरह का कोई कदम उठाने में असफल साबित हुई है।

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