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उम्र तो एक फूल की तरह है: जीवन पछतावे का नहीं, स्वीकार का नाम
जेम्स मैथ्यू बैरी
Published by: लव गौर
Updated Fri, 26 Dec 2025 07:51 AM IST
सार
मनुष्य उस फूल की तरह है, जो कली के वक्त मुस्कुराता है, फूल बनने पर अपनी खुशबू से संसार को भर देता है और जब झड़ता है, तो मिट्टी को उपजाऊ बना देता है, ताकि नई कलियां जन्म ले सकें। अगर एक फूल न मुरझाए, तो नया बगीचा कैसे खिले?
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प्रतीकात्मक तस्वीर
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
एक दिन हर किसी को यह पता चल ही जाता है कि उसे बड़ा होना है। वेंडी को यह एहसास एक बहुत साधारण, पर जादुई पल में हुआ। वह बगीचे में खेल रही थी, फूल तोड़ती हुई, और जब उसने एक और फूल उठाकर अपनी मां को दिया, तो उसकी मासूम मुस्कान जैसे सुबह की ओस में चमक रही थी। उसकी मां ने अपना हाथ दिल पर रखा और आंसुओं में मुस्कुराते हुए कहा ‘ओह, तुम हमेशा ऐसी क्यों नहीं रह सकती?’ बात इतनी-सी थी, पर वेंडी के भीतर कुछ बदल गया। उस क्षण उसे समझ आ गया कि समय ठहरता नहीं, और उसे भी एक दिन अपनी बाल्य दुनिया से निकलकर आगे बढ़ना होगा। लेकिन यह समझ डराने वाली नहीं थी, यह जीवन को देखने की पहली चाबी थी।
हम अक्सर सोचते हैं कि उम्र बढ़ना मानो मासूमियत, सुंदरता या खुशी को खो देना है, पर सच तो यह है कि उम्र बढ़ना कुछ खोना नहीं, बल्कि खिलना है। मनुष्य उस फूल की तरह है, जो कली के वक्त मुस्कुराता है, फूल बनने पर अपनी खुशबू से संसार को भर देता है, और जब झड़ता है, तो मिट्टी को उपजाऊ बना देता है, ताकि नई कलियां जन्म ले सकें। अगर एक फूल न मुरझाए, तो नया बगीचा कैसे खिले?
जीवन पछतावे का नहीं, स्वीकार का नाम है। बड़ा होना गलती नहीं, एक अनुभव है-हर साल अपने साथ एक नई कहानी लाता है, जिसमें धैर्य, प्रेम और समझ की परतें जुड़ती जाती हैं।
बुजुर्ग होना कमजोर होना नहीं है, बल्कि यह उस वृक्ष का रूप लेना है, जिसकी जड़ें गहराई में हैं, जिसने अनगिनत ऋतुएं देखी हैं, आंधियां झेली हैं, फिर भी जो दृढ़ता से खड़ा है। वही वृक्ष छाया देता है, राह दिखाता है, फल देता है। उसके नीचे बच्चे खेलते हैं, नई पीढ़ियां उससे सबक लेती हैं। जीवन की असली सुंदरता इसी क्रम में है।
जब एक पीढ़ी अपने अनुभवों की खुशबू हवा में मिला देती है, तो अगली पीढ़ी उन खुशबुओं से रास्ता पहचानती है। यही तो जीवन का अद्भुत संतुलन है। समय बहता है, पर जीवन अपने अर्थ में सदा खिला रहता है।
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हम अक्सर सोचते हैं कि उम्र बढ़ना मानो मासूमियत, सुंदरता या खुशी को खो देना है, पर सच तो यह है कि उम्र बढ़ना कुछ खोना नहीं, बल्कि खिलना है। मनुष्य उस फूल की तरह है, जो कली के वक्त मुस्कुराता है, फूल बनने पर अपनी खुशबू से संसार को भर देता है, और जब झड़ता है, तो मिट्टी को उपजाऊ बना देता है, ताकि नई कलियां जन्म ले सकें। अगर एक फूल न मुरझाए, तो नया बगीचा कैसे खिले?
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जीवन पछतावे का नहीं, स्वीकार का नाम है। बड़ा होना गलती नहीं, एक अनुभव है-हर साल अपने साथ एक नई कहानी लाता है, जिसमें धैर्य, प्रेम और समझ की परतें जुड़ती जाती हैं।
बुजुर्ग होना कमजोर होना नहीं है, बल्कि यह उस वृक्ष का रूप लेना है, जिसकी जड़ें गहराई में हैं, जिसने अनगिनत ऋतुएं देखी हैं, आंधियां झेली हैं, फिर भी जो दृढ़ता से खड़ा है। वही वृक्ष छाया देता है, राह दिखाता है, फल देता है। उसके नीचे बच्चे खेलते हैं, नई पीढ़ियां उससे सबक लेती हैं। जीवन की असली सुंदरता इसी क्रम में है।
जब एक पीढ़ी अपने अनुभवों की खुशबू हवा में मिला देती है, तो अगली पीढ़ी उन खुशबुओं से रास्ता पहचानती है। यही तो जीवन का अद्भुत संतुलन है। समय बहता है, पर जीवन अपने अर्थ में सदा खिला रहता है।