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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का सर सैयद डिनर; दूरदर्शी संस्थापक को सम्मान देने के असली तरीके पर कुछ विचार
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AMU
- फोटो : आधिकारिक वेबसाइट (@amu.ac.in.)
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हर वर्ष जब कैलेंडर की तारीख 17 अक्तूबर पर ठहरती है, तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और उसकी वैश्विक बिरादरी में एक प्रकार का रस्मी उत्साह फैल जाता है। पूर्व छात्र, वर्तमान विद्यार्थी और समर्थक अपने सबसे अच्छे वस्त्र पहनते हैं। पुरानी यादें ताजा करते हैं, और एक ऐसे आयोजन में भाग लेते हैं, जिसे सर सैयद डे का उत्सव कहते हैं।

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यह दिन सर सैयद अहमद खान की याद में मनाया जाता है। ऐसे दूरदर्शी संस्थापक, जिन्होंने औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के उत्थान के लिए शिक्षा को मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इस श्रद्धा की चमक के पीछे आत्मचिंतन और सुधार की अहमियत भी महसूस होती है। एक संभावना के लिए एक विनती है, जो अभी भी बची है।
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इस दिवस की कहानी
1947 के विभाजन से पहले एएमयू का स्थापना दिवस गरिमा और उद्देश्य के साथ मनाया जाता था। उस समय समारोहों में व्याख्यान, संगोष्ठियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, जो सर सैयद के उस आदर्श को प्रतिध्वनित करते थे कि ज्ञान ही सच्चा प्रकाश है। न वहां कोई दिखावटी भोज होता था, न छात्रों पर कोई अनिवार्य शुल्क लगाया जाता था।
डॉ. जाकिर हुसैन के कार्यकाल में बदलाव आए। वे 1948 से 1956 तक एएमयू के कुलपति रहे। बाद में राष्ट्रपति बने। नेक इरादों के साथ उन्होंने विभाजन के बाद बिखरे हुए समुदाय को जोड़ने के लिए सर सैयद डिनर की शुरुआत की। शायद उन्होंने इसे एकजुटता और उपचार का प्रतीक समझा, लेकिन कभी-कभी अच्छे इरादे भी कुछ ऐसी परंपराओं की नींव रख देते हैं, जिस पर प्रश्न उठते हैं। जो आयोजन कभी साधारण सामूहिक भोजन था, उसका स्वरूप बदल चुका है।
आज की हकीकत
अधिकांश छात्र श्रमिक वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग या आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आते हैं। मेरे छात्रकाल में इस डिनर का शुल्क ₹250 प्रति छात्र था। बाद में यह ₹500 हो गया। अब 2025 में यह ₹700 तक पहुंच गया है। एएमयू में लगभग 35,000 छात्र हैं। यानी लगभग ₹2.5 करोड़ रुपये। सवाल यह उठता है कि क्या शिक्षक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारी इस भोज के लिए शुल्क देते हैं? यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि जिस व्यक्ति के नाम पर यह डिनर होता है, उन्होंने अज्ञानता और असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
नैतिक नींव की चिंता
क्या यह आत्मसंतोष और सुविधा का संस्कार एएमयू की नैतिक नींव को बदल रहा है? समस्या केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक भी है। हजारों छात्रों के लिए सर सैयद डिनर किसी विरासत के उत्सव जैसा बना रहना चाहिए।
सर सैयद की भावना का पुनर्निर्माण
इस तरह के शुल्क को कुछ और अच्छे कामों में लगाया जा सकता है, जैसे- छात्रवृत्तियां, स्टार्ट-अप इनक्यूबेटर या सामुदायिक विद्यालयों की स्थापना। यह राशि विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में खर्च की जा सकती है, जहां मुस्लिम समुदाय, खासकर पसमान्दा मुसलमान, दशकों से हाशिए पर हैं।
ऐसी पहल न केवल सर सैयद की सच्ची विरासत को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और सरकारी सहयोग भी प्राप्त करेगी। एएमयू का विश्वव्यापी पूर्व छात्र नेटवर्क विभिन्न देशों में फैला है। यह अपनी विशेषज्ञता, समय और संसाधन देकर इस प्रभाव को कई गुना बढ़ा सकता है। कुछ वर्षों में इसका प्रभाव हजारों जिंदगियों को बदल सकता है। यही है किसी दूरदर्शी को सम्मान देने का असली तरीका।
एक नई परंपरा की ओर
अब समय आ गया है कि एएमयू अपनी रस्मपरस्ती की नींद से जागे। इस साल तो यह दिवस मनाया जा चुका है, लेकिन उम्मीद है कि अगली बार इस रस्म को निभाए जाने के तरीके में कुछ नयापन आए। इसके लिए कुछ सुझाव भी हैं। जैसे- अनिवार्य डिनर शुल्क समाप्त किया जाए, कर्मचारियों की भागीदारी के लिए जवाबदेही तय की जाए, इन धनराशियों को शिक्षा, अनुसंधान और सामाजिक कार्यों में लगाया जाए।
सर सैयद की विरासत हमसे साहस की मांग करती है। वह साहस, जो सवाल उठाए। सुधार करे और अंधी परंपराओं से ऊपर उठे। वह विश्वविद्यालय, जिसने कभी एक समुदाय की चेतना जगाई थी, अब अपने नैतिक पथ को पुनः प्राप्त करे।
(लेखक ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं।)
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