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दिलों में आशा के दीप जलाएं: शब्द सच्चे प्रकाश का स्रोत, दिवाली का असली प्रकाश बाहर नहीं; भीतर ज्ञान का दीपक..
माता अमृतानंदमयी (आध्यात्मिक गुरु)
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Mon, 20 Oct 2025 07:42 AM IST
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सार
जब हम अपने शब्दों में जागरूकता लाते हैं, तो वे सच्चे प्रकाश का स्रोत बन जाते हैं। दिवाली का असली प्रकाश बाहर नहीं, बल्कि भीतर है। हमें अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाना होगा।

दीपावली
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
हरेक इन्सान के भीतर ज्ञान (सत्य) को प्राप्त करने की क्षमता होती है, जो अज्ञान को दूर कर सकता है। सच्ची शक्ति और साहस, उस सर्वव्यापी आत्मा-परमात्मा को पाने की खोज पर ध्यान केंद्रित करने से ही उत्पन्न होता है। अग्नि ज्ञान का प्रतीक है। अग्नि पहले अपना ईंधन जलाती है और फिर स्वयं बुझ जाती है। इसी प्रकार, ज्ञान अज्ञान को जला देता है और फिर लुप्त हो जाता है।

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अग्नि को वाक् (वाणी) और शुद्ध चेतना (बोधम) भी माना जाता है। जब हम मोमबत्ती जलाते हैं, तो उसकी लौ हमेशा ऊपर की ओर जाती है, चाहे आप उसे किसी भी तरह पकड़ें। बोधम ऐसा ही है, यह हमें ऊपर ले जाता है। लेकिन हमारा मन एक नली में भरे पानी की तरह है। भले ही हम इसे ऊपर की ओर करें, पानी नीचे की ओर बहता है। हमें लौ की तरह बनना चाहिए।
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गर्मी से आप पानी को भाप में बदल सकते हैं। हमारे शब्द भीगे हुए केले के तने जैसे होते हैं, जो गर्मी और धुआं तो पैदा करते हैं, लेकिन रोशनी नहीं। इसके बजाय, हमारे शब्द कपूर जैसे होने चाहिए, जो दूसरों की सेवा में विलीन होते हुए भी रोशनी और गर्मी देते रहें। जब हम अपने शब्दों में जागरूकता लाते हैं, तो वे सच्चे प्रकाश का स्रोत बन जाते हैं। दिवाली का असली प्रकाश बाहर नहीं, बल्कि भीतर है। हमें अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाना होगा। हृदय का दरवाजा भीतर से खुलता है, उसकी चाबी भीतर ही है। जब यह बोधम (आत्म-जागरूकता) जागृत होता है, तो व्यक्ति एक कंपास की तरह हो जाता है, जो हमेशा उत्तर दिशा की ओर इशारा करता है, यानी हमेशा परमात्मा की ओर निर्देशित रहता है।
जब मन एकाग्र और केंद्रित होता है, तो आध्यात्मिक यात्रा एक एक्सप्रेसवे की तरह तेज हो जाती है, न कि कंटीले रास्तों से होकर गुजरती है। हमें निराशा के आगे बगैर झुके, अपने दिलों को आशा के दीप से रोशन करना चाहिए। हर नया साल समय के प्रवाह की याद दिलाता है। मृत्यु एक साये की तरह हम सबके पीछे मंडरा रही है। हमें किसी भी क्षण अपने शरीर रूपी इस किराये के घर को खाली करना पड़ सकता है। इससे पहले कि मृत्यु हमें अपने आगोश में ले ले, हमें कई कर्तव्य पूरे करने हैं। इस वक्त से, अपने अतीत पर नजर डालते हुए, हमें खुद का जायजा लेना चाहिए। और, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, हमें सकारात्मक कार्यों में लग जाना चाहिए। यही समय है ऐसे दृढ़ संकल्प लेने का।