'ताउते' और भारत: समुद्री तूफानों का केंद्र बनता देश
आजकल अरब सागर से उठे 'तौकाते' समुद्री तूफान की भारत में चर्चा है। पिछले कुछ वर्षों से अरब सागर से उठने वाले तूफानों की आवृति (बार-बार होना) बढ़ गई है और केरल, कर्नाटका, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात के तटीय इलाकों पर इन तूफानों के खतरे बढ़ गए हैं। यह सब मौसम में हो रहें बदलावों के परिणाम हैं। मौसम में अचानक होते बदलाव के सूत्र कहीं न कहीं मानव द्वारा किए जा रहे पर्यावरण के विध्वंस से भी जुड़े हैं। आइए बंगाल और अरब सागर से उठते हुए समुद्री तूफानों की पृष्ठभूमि को थोड़ा गहराई से जानने की कोशिश करते हैं।
बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है और यह हिन्द महासागर के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। यह आकार में त्रिकोणाकार है। इसके पश्चिमी भाग में भारतवर्ष एवं श्रीलंका आता हैं, उत्तर भाग में बांग्लादेश एवं पूर्व में म्यांमार और अंडमान निकोबार द्वीप स्थित हैं। बंगाल की खाड़ी का कुल क्षेत्रफल 21,72,000 वर्ग किमी है। इसे प्राचीन काल में ‘महोदधि’ नाम से भी जाना जाता था।
बंगाल की खाड़ी में मुख्यतः गंगा, पद्मा, हुगली, ब्रहमपुत्र, जमुना, मेघना, इरावती, गोदावरी, महानदी, कृष्ण, कावेरी आदि नदियां मिलती है। बंगाल की खाड़ी सबसे अधिक चक्रवाती तूफानों के लिए जानी जाती है। इतिहास के 35 सबसे बड़े और घटक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में से 26 चक्रवात केवल बंगाल की खाड़ी में ही आए है। इसके ऊपर इसके त्रिकोण आकार के कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवात बड़ी तेजी से बनता है। जिसमें हवाएं 74 मील अर्थात 119 किमी प्रति घंटा की गति से चलती है, इसकी इसी गति से चक्रवात बनते है। मूलतः यह एक तरह से ‘वायुमंडलीय परिघटना’ है जो तापमान में परिवर्तन और हवाओं की गति के स्थानांतरण के कारण उत्पन्न होती है।
पृथ्वी एक विरल गैसीय आवरण से आच्छादित होती है, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से जुड़ा होता है। पृथ्वी के घूमने के साथ-साथ यह आवरण भी घूमता रहता है। इसी क्रम में जब तापमान में परिवर्तन आता है, तो जलवाष्प की मात्रा अचानक बढ़ जाती है और विभिन्न क्षेत्रों पर वायु का दवाब कम होने लगता है। जैसे ही वायु का दवाब कम होने लगता है, चारों ओर की हवा उस रिक्त स्थान को भरने के लिए केंद्र की ओर तेजी से बढ़ती है। इस पूरी प्रक्रिया के कारण और दौरान ही चक्रवाती तूफान उठते है। बंगाल की खाड़ी में अधिकतर ऐसे चक्रवाती तूफान इसलिए आते हैं, क्योंकि यहां तापमान अधिक होता है और ‘सायक्लोजेनेसि’ क्षेत्र अन्य पश्चिमी तटों के मुकाबले 5 गुना अधिक है।
62 किमी प्रति घंटे की गति वाले तूफान को ‘उष्ण कटिबंधीय तूफान’ कहते है। यदि इसकी गति 89 से 118 किमी प्रति घंटे बढ़ जाती है, तो यह ‘तीव्र तूफान’ में परिवर्तित हो जाता है। 119 से 221 की गति से आने वाले तूफान ‘सुपर उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’ कहलाते हैं। प्रति वर्ष अप्रैल-मई एवं अगस्त–अक्तूबर के बीच बंगाल की खाड़ी से ऐसे कई तूफान या चक्रवात उठते हैं, जो भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार जैसे देशों में भारी तबाही लेकर आते हैं।
65 फीसदी तूफान इसी समय आते हैं। इस समय पश्चिम से पूरब तक शक्तिशाली मौसमी हलचल उत्पन्न होती है। विश्व में ऐसा कोई भी मौसमी वैज्ञानिक फार्मूला कामयाब नहीं हुआ, जो चक्रवात या समुद्री तूफान की तीव्रता की सटीक जानकारी या पूर्वानुमान उपलब्ध करा सकें। तूफान कब और कहां आएगा इसकी जानकारी, तो मौसमी उपग्रहों और वार्निंग सिस्टम से मिल जाती है। लेकिन यह तूफान कितना विध्वंसकारी होगा इसकी जानकारी देने में अब भी असमर्थ है। बीसवीं सदीं से लेकर अब तक आए तूफानों ने अरबों-खरबों रुपयों की संपत्ति का विनाश कर दिया और साथ ही जन और धन की भी भारी हानी हुई।
वर्ष 1891-2002 तक केवल ओड़ीशा राज्य में ही इन तूफानों ने 98 बार प्रलय किया। ‘नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट’ के अनुसार, 1891 से 2000 के बीच भारत के पूर्वी तट पर 308 तूफान आए, जबकि पश्चिमी तट पर केवल 48 तूफानों ने दस्तक दी। कुछ वर्ष पहले आए चक्रवाती तूफान ‘फानी’ ने बांग्लादेश और भारतवर्ष के ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अपना प्रलय दिखाया। पुरी में तो 245 किमी की गति से हवाएं चली और तटों पर भूस्खलन होने लगा।
इतनी तेज बारिश और तेज हवाओं से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। पिछले वर्ष अम्फन तूफान ने बंगाल में कहर ढाया, लेकिन नौसेना, तटरक्षक बल एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के सहायता कार्य ने तूफान की विनाशलीला की तीव्रता और हानि को बहुत सीमा तक कम कर दिया। कई लोगों को बहुत पहले ही सुरक्षित क्षेत्रों में पहुंचा दिया गया था। इससे जन-धन की भारी हानि होने से बच गई, इसकी प्रशंसा आज संयुक्त राष्ट्र तक हो रही है। ‘अम्फन’ तूफान के तुरंत बाद वर्ष 2020 में अरब सागर से उठे ‘निसर्ग’ तूफान ने भी गोवा और महाराष्ट्र में काफी विनाश किया था।
अब 2021 में मई महीने में अरब सागर से उठे तूफान 'तौकाते' ने भी काफी विनाश किया है। इसका नाम म्यांमार की तरफ से 'तौकाते' रखा है, जिसका अर्थ होता है, अत्यधिक आवाज करने वाली छिपकली। हालांकि, भारत के लिए पूर्वी तट के चक्रवात कोई नए नहीं हैं। लेकिन अब अरब सागर से उठने वाले तूफानों की आवृति भी तेजी से बढ़ रही है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है पश्चिमी तट पर आ रहे तूफानों की गति अब अचानक से बढ़ने लगी है और ये कुछ ही घंटों में विकराल से अतिविकराल तूफान में परिवर्तित हो जाते हैं।
इस बात की पुष्टि पहले नहीं हो पा रही है और यह वैज्ञानिकों के लिए परेशानी का कारण बन गई है। इसका एक मुख्य कारण अरब सागर में समुद्र के तापमान का 1 से 2 डिग्री का बढ़ जाना है, जो की ग्लोबल वार्मिंग का एक दुष्परिणाम है। पश्चिमी तट पर 150-200 किलोमीटर गति के तूफान वैज्ञानिकों को भी हैरान कर रहे हैं।
1953 से अमेरिका के मायामी स्थित नेशनल हरीकेन सेंटर एवं वर्ल्ड मेटीरियोलोजिकल ओर्गेनाइजेशन (डब्लूएमओ) द्वारा इन चक्रवाती तूफानों का नामकरण किया जाता था। लेकिन हिन्द महासागर से उठने वाले तूफानों का नाम उनके द्वारा इसलिए नहीं दिया जाता था, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके दिए हुए नामों से कहीं देशों की सांस्कृतिक भावनाएं आहत ना हो जाएं। 2004 में यह अंतरराष्ट्रीय पैनल भंग हो गया।
इसके पश्चात इन तूफानों से संबन्धित देश अपने-अपने देशों के तूफानों का नामकरण स्वयं ही करें ऐसा इस पैनल ने सूचित किया। इस तरह भारत के साथ बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान, थायलैंड ने एक अपना पैनल बनाया। वर्ष 2018 में इस पैनल में कतार, ईरान, सऊदी अरब, यमन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भी जोड़ दिए गए। इस प्रकार 13 देशों ने 169 तूफानों के नाम अल्फाबेटिकली चुन लिए।
यहां एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि पिछले कुछ वर्षों से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले तूफानी की संख्या में काफी वृद्धि हुई है साथ ही उनकी विनाशलीला भी बढ़ी है। हालांकि, भारत ने तूफानों का सामना करने के लिए एन डी आर ऍफ जैसी एक बेहतरीन संस्था का गठन किया हुआ है, लेकिन फिर भी हम सब प्रकृति की विनाशलीला के सामने काफी हद तक मजबूर हो जाते हैं।
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