पश्चिम बंगाल चुनाव: तृणमूल कांग्रेस के सबसे मजबूत वोट बैंक में सेंध लगाएगी भाजपा?
- भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ कई दौर की बैठक के बाद तैयार ताजा रणनीति के तहत भगवा पार्टी राज्य की हर सीट पर अल्पसंख्यक वोटों का हिसाब लगा रही है।
- पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भले अभी 6-7 महीनों की देरी है, सत्ता के दावेदारों ने अपनी चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
विस्तार
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भले अभी 6-7 महीनों की देरी है, सत्ता के दावेदारों ने अपनी चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। राज्य में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण का फार्मूला फेल होने के बाद भाजपा ने अब तृणमूल कांग्रेस के सबसे मजबूत अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति तैयार की है।
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ कई दौर की बैठक के बाद तैयार अपनी ताजा रणनीति के तहत भगवा पार्टी राज्य की हर सीट पर अल्पसंख्यक वोटों का हिसाब लगा रही है। उसके बाद इसमें सेंधमारी के लिए वह उन तमाम सीटों पर बिना किसी चुनाव चिन्ह के ऐसे अल्पसंख्यक चेहरों को मैदान में उतारने की योजना बना रही है जो टिकट नहीं मिलने के कारण असंतुष्ट या बागी हैं।
तृणमूल कांग्रेस को बेदखल करने की तैयारी
भाजपा के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि अगले चुनाव में बंगाल की सत्ता से तृणमूल कांग्रेस को बेदखल करने के लिए बहुस्तरीय रणनीति तैयार की गई है। इसके तहत राज्य भर में अपने संगठन को मजबूत करने के साथ ही तृणमूल कांग्रेस के सबसे मजबूत वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद भी शामिल है।
राज्य के युवा वोटरों को अपने पाले में खींचने के लिए पार्टी ने पूरे राज्य में फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने की भी योजना बनाई है। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि चुनाव से पहले वामपंथी दलों के असंतुष्ट और उपेक्षित छात्र नेताओं से संपर्क साध कर उनको पार्टी में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़ी तादाद में वाम के वोट राम की झोली में गए थे। उसी वजह से पार्टी दो से बढ़कर 18 सीटों तक पहुंच गई थी।
अब अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंधमारी की रणनीति के तहत भाजपा इस बात का हिसाब लगाने में जुटी है कि बीते विधानसभा चुनाव में कौन-कौन सी सीटें ऐसी थी जहां उसकी हार का अंतर पांच से दस हजार के बीच था और वहां अल्पसंख्यक वोटरों की तादाद कितनी है।
अल्पसंख्यक वोटरों पर खास ध्यान
भाजपा नेताओं का कहना है कि छह अक्तूबर को लक्ष्मी पूजा के बाद ही तमाम कार्यकर्ता इस कवायद में जुट जाएंगे। फिलहाल दक्षिण बंगाल की कुछ सीटों पर इस रणनीति के तहत काम चल रहा है।
इसके तहत पार्टी उन सीटों पर खास ध्यान दे रही है जहां अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। वह जानती है कि यह तबका उसका कभी समर्थन नहीं करेगा। उसकी रणनीति इस तबके के कुछ वोटरों को तृणमूल कांग्रेस से काटने की है। पार्टी वहां इस तबके के असरदार चेहरे वाले उपेक्षित नेताओं की पहचान करने में जुटी है ताकि अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन के लिए उनको निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतारा जा सके।
हालांकि इससे पहले भी पार्टी राज्य में यह रणनीति अपना चुकी है और कुछ इलाको में उसे इसका सियासी फायदा भी मिला है।
किस करवट बैठेगा ऊंट?
पार्टी की निगाह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के अलावा फुरफुरा शरीफ के पीरजादा की पार्टी आईसीएफ पर भी है। यह पार्टियां अल्पसंख्यक वोटरों के सहारे ही मैदान में उतरती रही हैं। भगवा पार्टी अगले साल ऐसे दलों और नेताओं को परदे के पीछे से व्यापक समर्थन देने पर विचार कर रही है।
पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देने के लिए अगले साल चुनाव के दौरान नागरिकता अधिनियम को भी अपना हथियार बनाने का फैसला किया है। इसके लिए पार्टी के तमाम नेताओं को बड़े पैमाने पर लोगों को इसके लिए आवेदन कराने का निर्देश दिया गया है। पूजा की छुट्टियां खत्म होने के बाद ही यह अभियान जोर पकड़ेगा।
दूसरी ओर, वह दुर्गा पूजा को भी सियासी हथियार बनाने का प्रयास कर रही है। इसी रणनीति के तहत इस त्योहार के यूनेस्को के अमूर्त विरासत की सूची में शामिल होने के चार साल बाद प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम की ताजा कड़ी में इसका श्रेय लेने की कोशिश की है। इस मुद्दे पर विवाद पैदा हो गया है। तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के इस दावे को निराधार करार दिया है। उसका कहना है कि इस मामले में केंद्र की भूमिका डाकिए की थी।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा शायद पिछले दो चुनावों की गलतियों से सबक लेकर समय रहते अगले चुनाव की तैयारी में जुट गई है।
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ घोष का कहना है कि पार्टी हर बार यहां सत्ता हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंकती रही है। लेकिन वह कामयाबी से कोसों दूर है। इसी वजह से अबकी उसने तृणमूल कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाने की योजना बनाई है। इसके साथ ही उसने वामपंथी दलों और कांग्रेस के वोटरों से भी तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए भाजपा का समर्थन करने की अपील की है।
वरिष्ठ पत्रकार शिखा मुखर्जी कहती हैं कि भाजपा अब तक धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे ही चुनाव जीतने की रणनीति पर चल रही थी। लेकिन इससे खास फायदा नहीं होते देख कर उसने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है और बंगाल के आम लोगों का समर्थन हासिल करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। क्या उसे अगले चुनाव में इसका फायदा मिलेगा? विश्लेषकों का कहना है कि इस सवाल का जवाब तो चुनावी नतीजों से ही मिलेगा।
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