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बुजुर्ग होना धैर्य का अभ्यास है: प्रेम कोई चमकदार प्रदर्शन नहीं, एक ऐसा दिल, जो टूटकर भी कोमल रहा और...
सुसान मून
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Fri, 05 Dec 2025 05:45 AM IST
सार
बुजुर्ग दिल कभी थकता नहीं, बल्कि और सजग हो जाता है। एक ऐसा दिल, जो टूटकर भी कोमल रहा, और कोमल रहकर भी मजबूत बना। वह जानता है कि प्रेम कोई चमकदार प्रदर्शन नहीं, बल्कि धैर्य का अभ्यास है।
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सांकेतिक तस्वीर।
- फोटो : Freepik.com
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विस्तार
मुझे खीज होती है, जब लोग यह कहते हैं कि भले ही तुम वृद्ध हो जाओ, मगर दिल से जवान बने रहो! इस वाक्य के पीछे छिपी वह सांस्कृतिक सोच परेशान करती है, जो मान लेती है कि बुजुर्ग होना किसी तरह की कमी है। मैं पूछना चाहूंगी कि दिल से बुजुर्ग होना आखिर क्यों बुरा माना जाए? क्यों ऐसे दिलों को कमतर समझा जाए, जिन्होंने उम्र के साथ प्रेम को और गहराई से समझा है? क्या प्रेम करने की क्षमता उम्र के साथ घटती है, या वह और गहन, और धैर्य से लबालब हो जाती है?
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क्या आप उन दिलों से प्रेम नहीं पाना चाहेंगे, जिन्होंने वर्षों की बदलती ऋतुओं को देखा है, फिर भी प्रेम को चुनना नहीं छोड़ा? हम यह क्यों भूल जाते हैं कि बुजुर्ग दिल थकता नहीं, बल्कि और सजग हो जाता है। वह जानता है कि जल्दबाजी में किए गए वादे कितने नाजुक होते हैं, और धीरे-धीरे बनते विश्वास ही सबसे मजबूत नींव बनते हैं।
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बहुत-से लोग सोचते हैं कि उम्र बढ़ने से जीवन की चमक कम हो जाती है, जबकि सच यह है कि चमक बाहर से भीतर उतर जाती है। जब मैं ‘बुजुर्ग होने’ के विचार पर ठहरती हूं, तो मुझे उसमें एक अद्भुत स्वतंत्रता दिखाई पड़ती है- वह है बार-बार खुद को साबित करने की बेचैनी से मुक्ति और दूसरों की उम्मीदों के बोझ से आजादी।
यह वह उम्र है, जहां आप लोगों से बदलने की चाह नहीं रखते, बल्कि उन्हें उनके अपने रूप में खिलने देते हैं। बुजुर्ग जानते हैं कि दुनिया को बिना चोट पहुंचाए व बिना दबाव दिए कैसे संभालना है। वे शांति का अर्थ जानते हैं, क्योंकि उन्होंने जीवन के शोर से गुजरकर उसे पाया है। उनके भीतर एक धीमी, गहरी, स्थिर रोशनी जलती रहती है।
मैं अक्सर सोचती हूं कि दिल से बुजुर्ग होना कितना सुंदर है! वह एक ऐसा दिल है, जो जानता है कि प्रेम कोई चमकदार प्रदर्शन नहीं, बल्कि धैर्य का अभ्यास है। एक ऐसा दिल, जो टूटकर भी कोमल रहा, और कोमल रहकर भी मजबूत बना।