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Water Bankruptcy: क्या ईरान की जल-त्रासदी से सबक लेगा भारत?

Vinod Patahk विनोद पाठक
Updated Fri, 05 Dec 2025 02:16 PM IST
सार

विश्व बैंक लगातार चेतावनी देता रहा है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से भूजल खाली कर रहा है। दुनिया के कुल भूजल दोहन का 25 प्रतिशत अकेला भारत करता है।

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Water Bankruptcy Will India learn a lesson from Iran water tragedy
भारत की 60-70 प्रतिशत पेयजल व्यवस्था और लगभग 40 प्रतिशत सिंचाई भूजल पर टिकी है। - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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ईरान आज उस संकट से गुजर रहा है, जिसे विशेषज्ञ वॉटर बैंकरप्सी कहते हैं। राजधानी तेहरान में लोग मस्जिदों में एक महीने से सिर्फ पानी की दुआ कर रहे हैं। देश के बड़े बांध लगभग खाली हैं।

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नदियां सूख चुकी हैं और जमीन हर वर्ष 20-25 सेंटीमीटर धंस रही है। यह किसी प्राकृतिक आपदा का नहीं, बल्कि दशकों से चले आ रहे नीतिगत भूलों, गलत प्राथमिकताओं और जल-प्रबंधन की पूर्ण विफलता का परिणाम है।
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ईरान की त्रासदी केवल उसकी नहीं है, वह दुनिया के हर ऐसे देश के लिए दर्पण है, जो जल-संक्रमण, भूजल-अतिदोहन और अनियोजित शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। दुर्भाग्य से भारत इस सूची में सबसे ऊपर खड़ा है।

विश्व बैंक लगातार चेतावनी देता रहा है कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से भूजल खाली कर रहा है। दुनिया के कुल भूजल दोहन का 25 प्रतिशत अकेला भारत करता है।

एक ऐसा आंकड़ा जो किसी भी देश को बेचैन कर देना चाहिए, लेकिन व्यवहार में यह चिंता शायद ही कहीं दिखाई देती है। भारत की 60-70 प्रतिशत पेयजल व्यवस्था और लगभग 40 प्रतिशत सिंचाई भूजल पर टिकी है।

जल विज्ञानियों का मत साफ है, यह संरचना न तो टिकाऊ है और न ही सुरक्षित। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी कहती है कि भारत के 21 बड़े शहर वर्ष 2030 तक भूजल-विहीन हो सकते हैं।

दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद पहले ही उच्च जोखिम की श्रेणी में पहुंच चुके हैं। ईरान की तरह ही भारत ने भी शहरी विस्तार को पानी की उपलब्धता से ऊपर रखकर देखा है। शहर बढ़ते गए, पर जल-स्रोत स्थिर रहे या बदतर, घटते गए।

भारत की कृषि का स्वरूप भी जल-संकट की बड़ी वजह है। पंजाब और हरियाणा में धान, महाराष्ट्र में गन्ना और राजस्थान में कपास, ये फसलें उसी तरह जल-अनुकूल नहीं हैं, जैसे ईरान की सूखी जमीनें।

ईरान ने अपनी पारंपरिक ‘कनात प्रणाली’ को त्याग दिया और इंजीनियरिंग-प्रधान, वैज्ञानिक ज्ञान से दूर मॉडल अपनाया, जिसका परिणाम आज विनाश के रूप में है। भारत में भी हजारों वर्षों से पानी का जो स्थानीय ज्ञान था, जोहड़, बावड़ी, तालाब, वे तेजी से खत्म हुए।

अंतरराष्ट्रीय जल विशेषज्ञ लंबे समय से चेतावनी देते रहे हैं कि वर्षाजल का संरक्षण भारत में अत्यंत कम है। केवल 8-10 प्रतिशत। यह ठीक उसी तरह है, जैसे ईरान पानी में डूबकर भी प्यासा रहा।

भारत के स्वयंसेवी संगठन लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि देश के पारंपरिक जल-स्रोत खत्म हो रहे हैं। नदियां अपना प्राकृतिक बेस-फ्लो खो रही हैं और भूजल को असीमित संसाधन समझने की मानसिकता समाज में गहराई से बैठ चुकी है।

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का वाक्य विशेष रूप से चिंताजनक है, 'भारत जिस गति से भूजल खत्म कर रहा है, उसकी पूर्ति उतनी तेज़ी से कभी नहीं हो सकती।'

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और वर्ल्ड बैंक वाटर काउंसिल का आकलन भी ऐसा ही है। भारत की जल समस्या मौसम, आबादी या विकास का परिणाम भर नहीं, बल्कि जल प्रबंधन के प्रति उपेक्षा का परिणाम है।

दरअसल, ईरान का संकट सिर्फ कम बारिश से नहीं आया। वह इसलिए आया, क्योंकि देश ने जल-विज्ञान की अनदेखी की। स्थानीय ज्ञान को भुला दिया। नदियों और भूजल को इंजीनियरिंग के माध्यम से मजबूर करने की कोशिश की।

पानी को राजनीतिक एवं आर्थिक हितों का उपकरण बना दिया। यह वही गलतियां हैं, जिनकी ओर भारत के लिए भी लगातार चेतावनी दी जा रही है। भारत के पास एक लाभ यह है कि देश में जल आंदोलनों की शक्ति अभी भी जीवित है।

समाज में पर्यावरण चेतना बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में जल प्रबंधन को सुधारने के लिए साझेदारी कर रही हैं। यहीं भारत ईरान से अलग राह चुन सकता है, यदि चेतावनी को गंभीरता से लिया जाए।

भारत को जल सुरक्षा की दिशा में निर्णायक कदम उठाने होंगे। ईरान बताता है कि जल-संकट किसी देश को सिर्फ प्यासा नहीं बनाता, वह उसके गांवों को उजाड़ देता है, शहरों को अस्थिर करता है, सामाजिक तनाव बढ़ाता है, और अंततः अर्थव्यवस्था और शासन को हिला देता है।

ईरान की आंखों में आज जो भय है, वह भविष्य की वह तस्वीर है, जो किसी भी राष्ट्र को डरा सकती है। भारत के पास आज भी समय है, लेकिन यह समय अनंत नहीं। जल पृथ्वी पर सबसे सरल सत्य है या तो इसे बचाओ या इसके बिना जीने की तैयारी करो। भारत किस राह को चुनता है, यह आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तय करेगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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