{"_id":"6930dc4c29d098e1b407db2c","slug":"putin-india-visit-an-uncertain-world-a-reliable-partner-and-a-policy-of-strategic-autonomy-2025-12-04","type":"story","status":"publish","title_hn":"पुतिन की भारत यात्रा: अनिश्चित दुनिया, भरोसेमंद साथी और सामरिक स्वायत्तता की नीति","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
पुतिन की भारत यात्रा: अनिश्चित दुनिया, भरोसेमंद साथी और सामरिक स्वायत्तता की नीति
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
विज्ञापन
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें
व्लादिमीर पुतिन।
- फोटो :
एएनआई (फाइल)
विस्तार
भारत-रूस के बीच होने वाला 23वां वार्षिक शिखर सम्मेलन आज से शुरू हो रहा है, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। इस शिखर सम्मेलन का माहौल तो चार दिन पहले ही विदेश मंत्री एस जयशंकर की इस टिप्पणी से बन गया था कि वर्तमान अनिश्चित दुनिया में राजनीति काफी तेजी से अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ती दिख रही है। अंग्रेजी में की गई इस टिप्पणी में उनका स्पष्ट इशारा अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर था, पर उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘यह कोई मजाक नहीं है।’ ट्रंप की वजह से टैरिफ युद्ध से परेशान भारत अपने हितों की रक्षा के लिए आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने का पक्का इरादा कर चुका है।इस शिखर सम्मेलन के लिए जो एजेंडा तैयार किया गया है, वह बहुत बड़ा है। हालांकि, मुख्य ध्यान रक्षा मुद्दों पर होगा, लेकिन कुछ भी नाटकीय होने की उम्मीद नहीं है। भारतीय रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने हाल ही में कहा कि वे (रूसी) अच्छे और बुरे, दोनों मौसम में हमारे दोस्त रहे हैं, और हम उनके साथ अपना रक्षा सहयोग जल्द बंद नहीं करने वाले हैं। लेकिन भारत सामरिक स्वायत्तता की नीति का पालन करता है।
यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देश लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत करना चाहते हैं। उम्मीद है कि भारत राजनीतिक, रक्षा, परमाणु और उच्च तकनीक सहयोग को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जो ऐतिहासिक रूप से द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती देते रहे हैं। वैश्विक तनाव से जूझ रही दुनिया में ये बहुत जरूरी हो गए हैं। परस्पर लाभ वाले क्षेत्र पर काम करने के लिए काफी तैयारी की गई है। लेकिन आपसी तौर पर भी, दोनों पक्षों को सावधान रहना होगा, ताकि वे अपने साथियों को नाराज न करें।
रूस ने मिसाइल, हवाई रक्षा और भारी बख्तरबंद में अपना दबदबा बनाए रखा है, लेकिन उसके ज्यादातर नए बड़े सौदे फ्रांस, इस्राइल, यूरोपीय संघ या घरेलू उत्पादन से हुए हैं। अमेरिका ने भी जोरदार तरीके से भारत को तकनीक बेची है, जिसमें सबसे नया पिछले महीने एफएमजी-148 जैवलिन एंटी-टैंक मिसाइल और एम982ए1 एक्सकैलिबर सटीक-निर्देशित तोपखाने के गोले के सौदे हैं, जिनकी कीमत 9.3 करोड़ डॉलर है।
हालांकि, रूस एक मुख्य आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, लेकिन रूसी आयात में भारत का हिस्सा कम हो गया है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, यह एक दशक पहले के 76 फीसदी से घटकर 2020-24 में 36 फीसदी हो गया है। भारत राजनीतिक स्तर पर सावधानी से और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। सबसे ऊपर एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम है, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान असरदार साबित हुआ था। जरूरी पांच रेजिमेंट में से, वह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ 2027-28 तक एक या दो खरीद सकता है।
भारतीय अधिकारियों ने बताया है कि सुखोई-57 कॉम्बैट जेट्स पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। जब तक विश्वसनीयता और कीमत में सुधार नहीं होता, तब तक यह बातचीत जारी रहेगी और दूसरे आपूर्तिकर्ताओं पर भी विचार किया जाएगा। स्पेयर-पार्ट्स की आपूर्ति पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। निम्नलिखित क्षेत्रों में मौजूदा सहयोग को और गहरा करने के लिए संयुक्त उत्पादन को बढ़ाना फायदेमंद हो सकता है-ब्रह्मोस के और संस्करण, हेलिकॉप्टर सह-उत्पादन की संभावित वापसी, और रूसी यूएवी या एयर-डिफेंस सबसिस्टम विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी। राजनीतिक तौर पर, इससे भारत-अमेरिका के बीच लगातार चल रहे टकराव पर काबू पाया जा सकेगा।
कुल मिलाकर, दोनों पक्षों का मकसद प्रगति की समीक्षा करना और ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ के लिए एक रोडमैप बनाना है। रक्षा सहयोग में कोई बड़ी बढ़ोतरी नहीं होगी। भारत रूस और पश्चिम, दोनों के साथ संबंध बनाए रखेगा। रूस के लिए इस सौदे का मतलब है एक बड़े आयातक (भारत) को बनाए रखना, एक स्थिर रक्षा निर्यात मार्ग और पश्चिमी अलगाव के बावजूद भूराजनीतिक अहमियत बनाए रखना। पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद, भारत रूस के तेल आयात पर निर्भर है, भले ही यह कम हो गया हो।
बदलती वैश्विक ऊर्जा गतिशीलता और यूक्रेन युद्ध के दुर्लभ, लेकिन मुमकिन अंत के बीच रूस अब भी भारत को एक स्थिर आयातक के तौर पर बनाए रखने की उम्मीद कर सकता है। असैन्य परमाणु सहयोग पर भी चर्चा हो सकती है-यह एक ऐसा विषय है, जिस पर अक्सर भारत-रूस शिखर सम्मेलन में कम ही बात होती है। व्यापार, वित्त और व्यवसाय पर दोनों पक्ष उम्मीद करते हैं कि वे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने और शायद व्यापार-वित्त एवं भुगतान प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए समझौते पर सहमत होंगे-कुछ हद तक रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध और वैश्विक वित्तीय अनिश्चितताओं की वजह से।
कुल मिलाकर, यह दौरा वैश्विक प्रतिबंध और यूक्रेन युद्ध की वजह से आई रुकावटों के बाद भारत-रूस सामरिक सहयोग को फिर से मजबूत करने का काम कर सकता है। रक्षा, ऊर्जा और व्यापार सहयोग बातचीत के केंद्र में बने रहेंगे, लेकिन बड़े अनुबंध के बजाय धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाले तरीके से। भारत की विदेश नीति के लिए इस सम्मेलन की सफलता ‘सामरिक स्वायत्तता’ के विचार को मजबूत करेगी, यानी अमेरिका या नए साझेदारों के साथ रिश्तों को कमजोर किए बिना रूस के साथ गहरे रिश्ते बनाए रखना।
पुतिन के दौरे ने बेवजह दुनिया भर का ध्यान खींचा है। दौरे से पहले ग्लोबल मीडिया रिपोर्ट्स पर बीबीसी के सर्वे में भारत के लिए ‘चिंताएं’ दिखीं, जो ‘चेतावनी’ ज्यादा थीं। छद्म युद्ध, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का गलत इस्तेमाल, व्यापार और वाणिज्य को हथियार बनाना और यहां तक कि जलवायु परिवर्तन एवं आप्रवासन के मुद्दों के चलते दुनिया मुश्किल जगह बन गई है। तारीफ करना तो दूर, करीब या दूर का कोई दोस्त या दुश्मन भारत और रूस पर हमला कर सकता है। इसलिए, दोनों का हाथ में हाथ डालकर चलना खतरनाक हो सकता है। द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें राजनीतिक झटकों, बहिष्कार और प्रतिबंधों से सावधान रहने की जरूरत है। edit@amarujala.com