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संचार साथी एप: निजता का सवाल और कुछ अनुत्तरित प्रश्न
अमर उजाला
Published by: लव गौर
Updated Thu, 04 Dec 2025 06:36 AM IST
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संचार साथी एप
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विस्तार
मोबाइल निर्माताओं को भारत के लिए बनने वाले स्मार्टफोन में संचार साथी एप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के आदेश पर छिड़े विवाद के बाद सरकार ने पहले इसके अनिवार्य न होने और फिर अपना फैसला वापस लेते हुए एप के प्री-इंस्टॉलेशन के जरूरी न होने की घोषणा कर सभी तरह के विवादों को विराम देने की कोशिश की है।उल्लेखनीय है कि संचार मंत्रालय ने 28 नवंबर के अपने शुरुआती आदेश में सभी स्मार्टफोन विनिर्माताओं और आयातकों के लिए नए फोन पर सरकार द्वारा संचालित साइबर सुरक्षा एप संचार साथी को प्री-इंस्टॉल करना और पुराने फोन में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिये इंस्टॉल करना जरूरी बताया था। विपक्ष के जासूसी एप के आरोपों के बीच गूगल और एपल जैसी कंपनियां भी लोगों की निजता और सिस्टम की सुरक्षा के नाम पर सरकार के इस आदेश के विरोध में जाती दिख रही थीं।
सवाल उठता है कि इसकी क्या गारंटी है कि इन निजी कंपनियों के मोबाइल फोनों में जो पहले से इंस्टॉल एप होते हैं, उनमें उपभोक्ता की निजी जानकारियां सुरक्षित होती हैं। इसके अतिरिक्त, ऑनलाइन दुनिया में जब व्यक्ति सब्जी-फल से लेकर हर तरह की खरीदारी के लिए मोबाइल एप पर निर्भर है, तब उपभोक्ता को भी शायद याद न आता हो कि उसने अपनी निजी जानकारियां कहां-कहां साझा की हैं। इस स्थिति में उसकी निजता व सुरक्षा की जिम्मेदारी और भी जरूरी हो जाती है। यह तब तो और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, जब पिछले चार वर्षों में साइबर धोखाधड़ी के मामलों में करीब 900 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने भी 2017 के केएस पुट्टास्वामी मामले में अपने फैसले में एकमत से निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी थी। इस परिदृश्य में एक सही मंशा के साथ सरकार ने हर व्यक्ति की निजता की रक्षा और ऑनलाइन ठगी से उसके बचाव के लिए 2023 में संचार साथी पोर्टल और इस वर्ष की शुरुआत में इसका एप भी जारी किया।
इस एप की मदद से अब तक सात लाख से अधिक गुमशुदा फोन मिले हैं और करीब 40 लाख से अधिक फर्जी कनेक्शन बंद किए गए हैं। इतने कम समय में 1.4 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं का इसे डाउनलोड कर लेना इसकी जरूरत और लोकप्रियता की कहानी को ही दर्शाता है। बहरहाल, सरकार ने आदेश भले ही वापस ले लिया हो, पर यह जरूर कहा जा सकता है कि तेजी से ऑनलाइन हो रही दुनिया में डिजिटल सुरक्षा व नागरिकों की निजता का व्यापक प्रश्न अब भी अनुत्तरित ही है।