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अराजकता: यह कैसा नया बांग्लादेश, भारत के लिए सतर्क रहने का समय

रहीस सिंह, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार Published by: लव गौर Updated Mon, 22 Dec 2025 07:11 AM IST
सार
यूनुस का ‘नया बांग्लादेश’ अराजकता का पर्याय बन गया है। जमात-ए-इस्लामी केंद्रीय भूमिका में आ चुकी है और छात्र संगठनों, धार्मिक नेटवर्कों तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिये भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ रही है। 85 वर्ष का एक बूढ़ा आदमी सत्ता की भूख लिए एक जटिल भूमिका में दिख रहा है।
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What kind of new Bangladesh is this? It's time for India to be vigilant
मोहम्मद युनूस, बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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बीते 19 दिसंबर को बांग्लादेश में भड़की हिंसा के बीच अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की तरफ से सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर की गई अपील की कुछ बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली यह कि हम हिंसा, धमकियों, आगजनी और संपत्तियों के विनाश के सभी कृत्यों की कड़ी निंदा करते हैं। दूसरी, यह हमारे राष्ट्र के इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण है-हम एक ऐतिहासिक लोकतांत्रिक संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं। तीसरी, आगामी चुनाव और जनमत संग्रह केवल राजनीतिक अभ्यास नहीं हैं, बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय वचन हैं। और अंतिम-नए बांग्लादेश में ऐसी हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है।


प्रश्न यह उठता है कि क्या मोहम्मद यूनुस वास्तव में हिंसा और घृणा के खिलाफ हैं। यदि हां, तो हसीना के शासन के बाद बांग्लादेश निरंतर हिंसा और अराजकता की चपेट में क्यों है? उनके इस ‘नए बांग्लादेश’ में कट्टरपंथी उभारों के स्वागत और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन की भूमिका का सच क्या है? क्या वे बांग्लादेश को फिर से उसी दौर में नहीं ले जाना चाह रहे हैं, जब वह बांग्लादेश गायब हो, जिसकी भावना 1971 के मुक्ति संग्राम में निहित थी? यह सवाल भी अहम है कि क्या जुलाई-अगस्त 2024 में ढाका की सड़कों पर जो आवाजें सुनाई दी थीं, वे सिर्फ छात्रों की ही थीं।


अब तो लगता है कि कहानी की शुरुआत जुलाई में और अंत ढाका की विशेष अदालत के उस फैसले के साथ नहीं हुआ था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पदच्युत किया गया या उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, बल्कि कहानी अभी बाकी है। यह बांग्लादेश को कहां ले जाएगी, नहीं पता। फिलहाल बांग्लादेश में उस आग में झुलस रहा है, जो शेख हसीना के विरोधी उस्मान हादी की हत्या के बाद लगी है। लगता कि छात्रों को चेहरा बनाकर या उनके बीच अपने लोगों को शामिल कर बांग्लादेश के कट्टरपंथी गैर-मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं। यह उस बांग्लादेश को खत्म करने की साजिश है, जिसके लिए शेख मुजीबुर रहमान पहले इस्लामाबाद से लड़े और फिर अपना बलिदान दिया।

उस्मान हादी की मौत पर अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार संसद में कह रहे हैं कि-‘...... हादी, हम आपको विदाई देने नहीं आए हैं। आप हमारे दिलों में बसे हैं और हमेशा के लिए, जब तक बांग्लादेश अस्तित्व में रहेगा, आप सभी बांग्लादेशियों के दिलों में रहेंगे। इसे कोई नहीं मिटा सकता।’ लेकिन सच यह नहीं है, सच यह है कि बांग्लादेश का अस्तित्व वह स्वयं मिटा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि यूनुस सरकार ने दंगाइयों को कुछ समय के लिए ‘फ्री हैंड’ दिया था।

दरअसल, मोहम्मद यूनुस 12 फरवरी को होने वाले चुनाव को टालना चाहते हैं। अभी वहां अवामी लीग पर प्रतिबंध है, लेकिन बीएनपी नेता तारिक रहमान 25 दिसंबर को लंदन से ढाका लौट रहे हैं। रहमान अपनी पार्टी के लिए कोई आधार न बना पाएं, इसलिए जरूरी है कि बांग्लादेश अराजकता की आग में झुलसे। चूंकि कट्टरपंथी जमात को यूनुस का समर्थन हासिल है, इसलिए अवामी लीग और बीएनपी के हाशिये पर जाने के बाद चुनाव होते हैं, तो जमात की बड़ी जीत हो सकती है और मोहम्मद यूनुस राष्ट्रपति बन सकते हैं। असल खेल शायद इसी गणित में छिपा है।

जो भी हो, मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश को अराजकता के नए दौर में झोंक दिया है। मीडिया के जरिये आई कुछ तस्वीरें बताती हैं कि अराजक भीड़ ने कैसे एक युवक को नंगा कर फांसी पर लटका दिया। बांग्लादेश के सबसे बड़े अखबार द डेली स्टार के ऑफिस में आग लगा दी। प्रथोम आलो अखबार का दफ्तर फूंक दिया। सांस्कृतिक संगठन छायानोट भवन पर हमला किया.....आदि। आखिर कहां है सरकार?  

इस अराजकता के बीच वहां की सरकार और कट्टरपंथी उस्मान हादी के हत्यारों को भारत की तरफ खिसका देने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के खिलाफ लगातार बयान आ रहे हैं। बीते 17 दिसंबर को नेशनल सिटीजन पार्टी के चीफ ऑर्गेनाइजर (सदर्न रीजन) हसनत अब्दुल्ला ने चेतावनी के लहजे में कहा था-‘अगर बांग्लादेश को अस्थिर किया गया, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग कर दिया जाएगा।’ उस्मान हादी ने भी कुछ दिन पहले ग्रेटर बांग्लादेश का एक नक्शा साझा किया था, जिसमें कुछ भारतीय इलाके शामिल थे। ऐसी भारत विरोधी हरकतों में मोहम्मद यूनुस की भूमिका कुछ ज्यादा ही जटिल दिखाई देती है, क्योंकि वह कट्टरपंथ के सहारे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाह रहे हैं। यह उन्हें एक अलग तरह की वैधता प्रदान करता है।

उनका पाकिस्तान और बीजिंग की ओर झुकाव भी इसी पटकथा का हिस्सा है। वैसे पाकिस्तान के जनरल मुनीर का इस समय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर खासा प्रभाव देखा जा सकता है। रक्षा और खुफिया विभाग के 11 प्रतिनिधिमंडलों का पाकिस्तान से बांग्लादेश जाना, इसकी गवाही देते हैं। मोहम्मद यूनुस और जमात-ए-इस्लामी इस्लामाबाद को ढाका तक लाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। शेख हसीना के रहते पाकिस्तान को यह मौका कभी नहीं मिल पाता। वह बीजिंग और ढाका के बीच संतुलन बनाकर नई दिल्ली के साथ आगे बढ़ रही थीं, लेकिन इस्लामाबाद को हमेशा दूर रखा। अंतरिम सरकार ने वे सारे समीकरण बदल दिए हैं।

अभी कुछ माह पहले मोहम्मद यूनुस चीन गए थे। उनकी उस यात्रा के बाद से चीन द्वारा ‘चिकन नेक’ (सिलिगुड़ी कॉरिडोर) के करीब बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में एक एयरफील्ड बनाने की योजना की चर्चा चल पड़ी। ध्यान रहे कि लालमोनिरहाट ‘चिकन नेक’ से सटा हुआ क्षेत्र है। यही नहीं, बांग्लादेश की वायुसेना के कुछ अधिकारियों की पाकिस्तान में जेएफ-17 विमानों के प्रशिक्षण संबंधी खबरें भी आ रही हैं, जो चीन और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से विकसित किए हैं। संभवतः इन्हें लालमोनिरहाट में तैनात किया जाना है।

बहरहाल मोहम्मद यूनुस का ‘नया बांग्लादेश’ अराजकता का पर्याय बनता दिख रहा है, जिसमें भीड़ की हिंसा का निशाना धर्मविशेष और वर्ग विशेष है। जमात-ए-इस्लामी केंद्रीय भूमिका में आ चुकी है और छात्र संगठनों, धार्मिक नेटवर्कों तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिये भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ रही है। और 85 वर्ष का एक बूढ़ा आदमी सत्ता की भूख लिए न केवल यह सब कुछ देख रहा है, बल्कि एक जटिल भूमिका में दिख रहा है। अब वहां अराजकता का शिकार देश है, कुछ ऐक्टर हैं और कुछ नॉन एक्टर, षड्यंत्र हैं, हिंसा है और सत्ता के लिए बेसब्र महत्वाकांक्षाएं। अब देखना यह है कि ढाका किधर जाएगा? edit@amarujala.com  
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