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पड़ोस: पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और बांग्लादेश में कट्टरपंथी उन्माद, भारत से अतिरिक्त सतर्कता की मांग
अमर उजाला
Published by: लव गौर
Updated Mon, 22 Dec 2025 07:04 AM IST
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इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को सरकारी उपहारों की बिक्री से जुड़े भ्रष्टाचार के तोशाखाना-2 मामले में 17-17 वर्ष की सजा और भारी जुर्माने का फैसला सुनाया जाना पाकिस्तान की घरेलू राजनीति का महज एक और घटनाक्रम नहीं है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब पाकिस्तान पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक बदहाली और संस्थागत टकराव से गुजर रहा है। इसी के समांतर बांग्लादेश भी छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद राजनीतिक हिंसा, अनिश्चित चुनावी माहौल और कट्टरपंथी तत्वों की बढ़ती सक्रियता के दौर से गुजर रहा है।भारत की दृष्टि से देखें, तो उसके दोनों प्रमुख पड़ोसी देशों में बढ़ती अस्थिरता न केवल अवांछनीय है, बल्कि क्षेत्रीय शांति और विकास के लिए भी गंभीर चुनौती है। इमरान खान का मामला पाकिस्तान में सत्ता, न्यायपालिका और सेना के जटिल रिश्तों को एक बार फिर उजागर करता है। दरअसल, 2018 में, जब इमरान खान सत्ता में आए, तो आधिकारिक यात्राओं के दौरान उन्हें करोड़ों रुपये के उपहार मिले। इमरान खान पर यह आरोप लगा कि उन्होंने तोशाखाना में उपहार जमा तो कराए, फिर उन्हें सस्ते दाम पर खरीद लिए और इस प्रक्रिया में कानूनों में मनचाहे बदलाव भी किए।
गौरतलब है कि फिलहाल इमरान पर सौ से भी ज्यादा मामले दर्ज हैं और वह अगस्त, 2023 से जेल में बंद हैं। दरअसल, पाकिस्तानी पूर्व प्रधानमंत्री के साथ अप्रैल, 2022 में सत्ता से बेदखल होने के बाद जो कुछ हो रहा है, उससे यही संकेत मिलता है कि देश में राजनीति सड़कों से अधिक अदालतों में लड़ी जा रही है। भारत के लिए यह स्थिति इसलिए अधिक चिंताजनक है, क्योंकि इतिहास गवाह है कि राजनीतिक अस्थिरता के दौर में पाकिस्तान की सत्ता संरचना अक्सर गैर-लोकतांत्रिक ताकतों के हाथों मजबूत होने लगती है, जो पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख आसिम मुनीर के उभार की शक्ल में दिख भी रहा है। ऐसे समय में, भारत-विरोधी बयानबाजी, नियंत्रण रेखा पर तनाव और आतंकी समूहों को मौन समर्थन जैसी प्रवृत्तियां तेज होने लगती हैं।
दूसरी ओर, बांग्लादेश में जिस तरह से कट्टरपंथ हावी हो रहा है और पाकिस्तान से उसकी नजदीकी बढ़ रही है, वह भी भारत के लिए चिंता का विषय है। ‘पड़ोस पहले’ भारत की विदेश नीति का आधार है, लेकिन इसकी पूर्वशर्त है कि पड़ोस पहले स्थिर भी हो। दक्षिण एशिया पहले ही आर्थिक एकीकरण और क्षेत्रीय सहयोग के मामले में दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में शामिल है, ऐसे में पाकिस्तान और बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता विकास के बचे-खुचे अवसरों को भी खत्म कर सकती है। भारत पड़ोसियों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, पर उसे अपनी सुरक्षा, आर्थिक हितों और कूटनीतिक प्राथमिकताओं के प्रति सतर्क रहना होगा।