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UP: मौत नजर आई जिंदा होते हुए भी जिंदा होने के सबूत जुटाने में, अपनों की कारस्तानी... भावुक कर देने वाली कहानी
निखिल तिवारी, अमर उजाला, गोरखपुर
Published by: शाहरुख खान
Updated Sat, 20 Dec 2025 02:46 PM IST
सार
गोरखपुर के खोराबार थाना इलाके के छितौना गांव में जमीन के सौदे में चाचा को मृत बताकर जेल भिजवाने के मामले में पीड़ित रामकवल ने जेल से बाहर आने के बाद दर्द बयां किया है। उन्होंने कहा कि सही होने के बाद भी साबित नहीं कर पाया कि जिंदा हूं। आरोपी ने चाचा को जेल भिजवाने के लिए वरासत और आधार का जाल बुना था।
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gorakhpur fake death
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
गोरखपुर में मायाजाल रिश्तों के लिए जंजाल बनता जा रहा है। खोराबार थाना क्षेत्र के छितौना गांव में जमीन के सौदे में चाचा रामकवल को मृत बताकर जेल भिजवाने का मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। पता चला है कि रामकवल जब छोटा था तभी पिता विपत की मौत हो गई थी।
बाद में मां ने दूसरी शादी की और वह उनके साथ गजपुर गांव चले गए। छितौना में वरासत में रामकवल के पिता का नाम विपत दर्ज है। वहीं, गजपुर में जाने के बाद सारे दस्तावेज उनके सौतेले पिता रामकिशुन के नाम से बने हैं। इसी का फायदा उठाकर उनके भतीजे रामसरन ने उनका मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा दिया और उन्हें फर्जी रामकवल बताकर प्राथमिकी दर्ज करा दी।
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बाद में मां ने दूसरी शादी की और वह उनके साथ गजपुर गांव चले गए। छितौना में वरासत में रामकवल के पिता का नाम विपत दर्ज है। वहीं, गजपुर में जाने के बाद सारे दस्तावेज उनके सौतेले पिता रामकिशुन के नाम से बने हैं। इसी का फायदा उठाकर उनके भतीजे रामसरन ने उनका मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा दिया और उन्हें फर्जी रामकवल बताकर प्राथमिकी दर्ज करा दी।
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तीन महीने जेल में बीता कर बुधवार को रिहा हुए रामकवल की कहानी बड़ी उलझी हुई है। घटनाक्रम बताते हुए वह भावुक हो गए। बताया कि जब वह छह साल के थे तब उनके पिता पिता छितौना निवासी विपत निषाद का स्वर्गवास हो गया। उस समय बड़े भाई घुरऊ नौ साल और बड़ी बहन बेली सात वर्ष की थी।
उन्होंने बताया कि पिता की मौत के बाद रामकवल की मां बिहुला देवी की शादी गजपुर निवासी रामकिशुन से हुई। बड़ा बेटा घुरऊ खोराबार के छितौना गांव में ही अपने दादा-दादी के साथ रुक गया। वहीं, मां बिहुला शादी के बाद रामकवल और बेटी बेली को लेकर गजपुर अपने दूसरे ससुराल रहने लगी।
रामकवल जैसे-जैसे बड़े हुए, उनके दस्तावेजों पर मां के साथ सौतेले पिता रामकिशुन का नाम चढ़ता गया। आधार कार्ड, पैन कार्ड में पिता का नाम रामकिशुन है। वर्ष 1998 में मां बिहुला की मौत हो गई। वहीं, सौतेले पिता रामकिशुन की भी मौत वर्ष 2005 में मौत हो गई।
रामकवल की शादी नहीं हुई है। वह गजपुर में अपने सौतेले भाई रंगीलाल के परिवार के साथ रहते हैं। रामकवल ने बताया कि उनके बड़े भाई घुरऊ की मौत भी काफी पहले हो गई थी। इसी का लाभ उठाकर उनका भतीजा उनकी जमीन हड़पता चाहता था।
रामकवल ने बताया कि बड़े भाई घुरऊ की भी कुछ साल पहले मौत हो गई। इस दौरान भतीजे रामसरन का उनके पास आना जाना लगा रहता था। वर्ष 2024 में लकवे की शिकायत हुई तो उन्होंने खोराबार के छितौना गांव स्थित अपने मद की 28 डिसमिल जमीन गांव के एक व्यक्ति को एक लाख 20 हजार प्रति डिसमिल के रेट से बेची। उन्हें छह लाख 70 हजार रुपये पहले मिले थे।
बाकी रुपये खारिज-दाखिल के बाद मिलने थे। इस दौरान भतीजे रामसरन ने दस्तावेजों में उन्हें मृत दिखा प्राथमिकी दर्ज करा दी। खतौनी में रामकवल पुत्र विपत दर्ज है जो कि असली पिता हैं। जबकि आधार कार्ड में रामकवल पुत्र रामकिशुन है जो सौतेले पिता हैं। बस इन्हीं नाम के उलझन को आधार बनाते हुए भतीजे ने उन्हें गलत साबित करने की कोशिश की।
रामकवल ने जेल से बाहर आने के बाद बयां किया दर्द
अपनों की साजिश और सिस्टम की लापरवाही ने रामकवल को जिंदा रहते ही मृत बना दिया। सही-सलामत होने के बावजूद वह खुद को जिंदा साबित नहीं कर पाए और इसकी कीमत उन्हें तीन महीने से अधिक समय जेल में रहकर चुकानी पड़ी। कई बार लगा जेल में ही मर जाएंगे। रिहा होकर गजपुर स्थित घर लौटे रामकवल अब उन दिनों को याद भी नहीं करना चाहते। वह बस इतना ही कहते हैं-कड़ी कार्रवाई हो कि एक नजीर बने ताकि फिर किसी को इस तरह से जिंदा होने का सबूत न देना पड़े।
अपनों की साजिश और सिस्टम की लापरवाही ने रामकवल को जिंदा रहते ही मृत बना दिया। सही-सलामत होने के बावजूद वह खुद को जिंदा साबित नहीं कर पाए और इसकी कीमत उन्हें तीन महीने से अधिक समय जेल में रहकर चुकानी पड़ी। कई बार लगा जेल में ही मर जाएंगे। रिहा होकर गजपुर स्थित घर लौटे रामकवल अब उन दिनों को याद भी नहीं करना चाहते। वह बस इतना ही कहते हैं-कड़ी कार्रवाई हो कि एक नजीर बने ताकि फिर किसी को इस तरह से जिंदा होने का सबूत न देना पड़े।
शुक्रवार को बातचीत में रामकवल की आंखें भर आईं। उन्होंने बताया कि जिस परिवार के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी, वही उनके लिए सबसे बड़ा जख्म बन गया। वे बताते हैं- प्राथमिकी दर्ज होने के बाद उन्हें कुछ पता ही नहीं था। मैंने शादी नहीं की और सुनाई भी कम देता है। सौतेले भाई के परिवार के साथ रहता हूं। दो सितंबर को गगहा पुलिस आई और लेकर चली गई। मैं कागजात दिखाता रहा लेकिन किसी को भी भरोसा नहीं हुआ। मैं जिंदा था लेकिन इसे कोई स्वीकार नहीं कर रहा था।
उन्होंने बताया कि जेल में एक-एक दिन एक साल जैसा लग रहा था। मौत दिखने लगी थी। लगता था कि अब जेल में ही जिंदगी गुजर जाएगी या वहीं खत्म हो जाएंगे। जेल में रहने के दौरान कभी-कभी सोचता था कि यहां रहने से अच्छा था कि मर गए होते।
दरअसल, छितौना गांव की जमीन बिक्री से जुड़ा यह मामला सिस्टम की बड़ी चूक का उदाहरण बन गया। जमीन मालिक रामकवल पुत्र विपत की ओर से जमीन बेचे जाने के बाद उनके भतीजे रामसरन ने विवाद खड़ा किया।
रामसरन ने आरोप लगाया कि उसके चाचा रामकवल की पहले ही मौत हो चुकी है और किसी फर्जी व्यक्ति ने खुद को रामकवल बताकर जमीन बेच दी है। इसी आधार पर जमीन खरीदार, उसकी पत्नी और कथित विक्रेता के खिलाफ फर्जीवाड़े समेत गंभीर धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
जांच में पुलिस ने आधार कार्ड सहित कुछ दस्तावेजों में पिता के नाम के अंतर को आधार बनाकर मान लिया कि जमीन बेचने वाला व्यक्ति असली रामकवल नहीं है और चार्जशीट दाखिल कर दी। अदालत में पेश न होने पर गैर-जमानती वारंट जारी हुआ और 20 सितंबर को गगहा पुलिस ने रामकवल को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया।
बाद में बहन की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट ने डीएनए जांच कराई। रिपोर्ट में रामकवल का शिकायतकर्ता परिवार से रक्त संबंध सिद्ध हुआ। कोर्ट ने गिरफ्तारी को गैरकानूनी मानते हुए तत्काल रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश के अनुपालन में जेल प्रशासन ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर रामकवल को रिहा कर दिया।
बहन और भाई के अलावा कोई मिलने नहीं आया
रामकवल बताते हैं, जेल में तीन महीने बंद था पर सिर्फ बहन बेइली देवी और भाई रंगीलाल ही मिलने आए। बाकी रिश्तेदार झांकने तक नहीं आए। इस बात का जीवनभर मलाल रहेगा।
रामकवल बताते हैं, जेल में तीन महीने बंद था पर सिर्फ बहन बेइली देवी और भाई रंगीलाल ही मिलने आए। बाकी रिश्तेदार झांकने तक नहीं आए। इस बात का जीवनभर मलाल रहेगा।
