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UP: निर्देशक मधुर भंडारकर बोले- मनोरंजन के साथ कंटेंट न हो तो फिर फिल्म कैसी..? सच दिखाना आसान नहीं
संवाद न्यूज एजेंसी, गोरखपुर
Published by: रोहित सिंह
Updated Sat, 20 Dec 2025 05:56 PM IST
सार
फिल्म निर्माता और निर्देशक मधुर भंडारकर ने कहा कि मनोरंजन के साथ कंटेट अगर न हो तो फिर फ़िल्म कैसी ? सच दिखाना आसान नहीं होता। सत्ता, पेज थ्री, कॉरपोरेट और ट्रैफिक सिग्नल, फैशन पर तो फ़िल्म इंडस्ट्री ने कुछ खास नहीं कहा पर जब हीरोइन बनाई तो उन्हें हज़म नहीं हुआ और मेरी आलोचना होने लगी।
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विस्तार
गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल का शुभारंभ शनिवार को हुआ। पहले दिन उद्घाटन सत्र के बाद फिल्म निर्माता और निर्देशक मधुर भंडारकर गुफ्तगू कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि मध्यमवर्गीय परिवार से निकलने वाले लोग फिल्मों में अपने शौक के दम पर ही आगे बढ़ते हैं।
फिल्ममेकिंग में फ़िल्म के क्राफ्ट पर काम करना सबसे ज़रूरी है और उसके उद्देश्य पर ध्यान देना ज़रूरी है। मैंने संघर्ष के दिनों में तेरह चौदह वर्ष की उम्र में घर घर वीडियो कैसेट का व्यवसाय किया। मैं हर किस्म की सिनेमा देखता था और उसका विश्लेषण किया करता था। यहीं से मुझे फिल्ममेकर बनने की प्रेरणा मिली।
आर्थिक समस्याओं के कारण और पारिवारिक अपेक्षाओं के कारण मुझे मस्कट भी जाना पड़ा। फ़िल्म लाइन में काफी अनिश्चितता है। मैने लगभग साढ़े तीन से चार साल राम गोपाल वर्मा को असिस्ट क़िया। रंगीला बनने के बाद मेरे करियर में गति आई। मेरी अपनी पहली मूवी त्रिशक्ति फ्लॉप रही और मुझे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
मुझे अलग अलग लोगों ने सलाह दिया पर मैने हिम्मत नहीं हारी। चांदनी बार में ज़माने के लिहाज से थोड़े बहुत बदलाव शामिल किया। चांदनी बार ने समाज की लीक से हटकर कहानी दिखलाई। मुझे अपेक्षा नहीं थी पर लोगों ने शानदार रिस्पॉन्स दिया और लोगों ने मुझे सर आंखों पर बिठाया। बार बालाओं के प्रति लोगों की संवेदना को इस फ़िल्म ने झकझोर दिया।
मनोरंजन के साथ कंटेट अगर न हो तो फिर फ़िल्म कैसी ? सच दिखाना आसान नहीं होता। सत्ता, पेज थ्री, कॉरपोरेट और ट्रैफिक सिग्नल, फैशन पर तो फ़िल्म इंडस्ट्री ने कुछ खास नहीं कहा पर जब हीरोइन बनाई तो उन्हें हज़म नहीं हुआ और मेरी आलोचना होने लगी। मैं शुगर कोटिंग करके कुछ भी दिखलाने के खिलाफ था।
सच दिखाने के लिए डार्क साइड को यथावत दिखाना बड़ी चुनौती थी। आज भी सिनेमा में हीरो और हीरोइन के बीच बड़ा बुनियादी अंतर है जो हीरोसेंट्रिक मानसिकता से ग्रस्त है। मेरी फिल्में सत्तर प्रतिशत रियलिटी और तीस फीसदी ड्रैमेटिक होती हैं। मैं रिस्क लेने में विश्वास करता हूँ।
बड़ा नाम या बड़ा स्टारडम मुझे बहुत प्रभावित नहीं करता। सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है पर बॉलीवुड में सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। फैशन और हीरोइन एक तरफ लोगों को इंस्पायर भी करती है पर वो लोगों को चुनौतियों से सावधान भी करती हैं। एक दर्शक फ़िल्म को मनोरंजन के उद्देश्य से देखने जाता है।
मैं फ़िल्म को क्रिएटिविटी और कॉमर्शियल सक्सेस के बीच में बैलेंस रखता हूँ। आपका आत्मविश्वास ही आपको किसी भी क्षेत्र में टिकाए रखता है और जो दिल में हो वही करना चाहिए। टूटना और निराश होना प्रक्रिया का एक भाग है। मेरे दर्शक बहुत व्यापक हैं।
मुझे उनके बीच जाकर फिल्मों के लिए रिसर्च करना बहुत पसंद है। मेरी आने वाली फिल्म वाइफ़ भी पत्नियों के संघर्ष और मनोस्थिति को दर्शाती है। पति के स्टारडम का उनकी पत्नी पर क्या असर पड़ता है ये देखना रोचक होगा। मैं एक्टिंग तो नहीं करता पर मैं लोगों से बेस्ट परफॉर्मेंस निकलवा सकता हूँ।
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फिल्ममेकिंग में फ़िल्म के क्राफ्ट पर काम करना सबसे ज़रूरी है और उसके उद्देश्य पर ध्यान देना ज़रूरी है। मैंने संघर्ष के दिनों में तेरह चौदह वर्ष की उम्र में घर घर वीडियो कैसेट का व्यवसाय किया। मैं हर किस्म की सिनेमा देखता था और उसका विश्लेषण किया करता था। यहीं से मुझे फिल्ममेकर बनने की प्रेरणा मिली।
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आर्थिक समस्याओं के कारण और पारिवारिक अपेक्षाओं के कारण मुझे मस्कट भी जाना पड़ा। फ़िल्म लाइन में काफी अनिश्चितता है। मैने लगभग साढ़े तीन से चार साल राम गोपाल वर्मा को असिस्ट क़िया। रंगीला बनने के बाद मेरे करियर में गति आई। मेरी अपनी पहली मूवी त्रिशक्ति फ्लॉप रही और मुझे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
मुझे अलग अलग लोगों ने सलाह दिया पर मैने हिम्मत नहीं हारी। चांदनी बार में ज़माने के लिहाज से थोड़े बहुत बदलाव शामिल किया। चांदनी बार ने समाज की लीक से हटकर कहानी दिखलाई। मुझे अपेक्षा नहीं थी पर लोगों ने शानदार रिस्पॉन्स दिया और लोगों ने मुझे सर आंखों पर बिठाया। बार बालाओं के प्रति लोगों की संवेदना को इस फ़िल्म ने झकझोर दिया।
मनोरंजन के साथ कंटेट अगर न हो तो फिर फ़िल्म कैसी ? सच दिखाना आसान नहीं होता। सत्ता, पेज थ्री, कॉरपोरेट और ट्रैफिक सिग्नल, फैशन पर तो फ़िल्म इंडस्ट्री ने कुछ खास नहीं कहा पर जब हीरोइन बनाई तो उन्हें हज़म नहीं हुआ और मेरी आलोचना होने लगी। मैं शुगर कोटिंग करके कुछ भी दिखलाने के खिलाफ था।
सच दिखाने के लिए डार्क साइड को यथावत दिखाना बड़ी चुनौती थी। आज भी सिनेमा में हीरो और हीरोइन के बीच बड़ा बुनियादी अंतर है जो हीरोसेंट्रिक मानसिकता से ग्रस्त है। मेरी फिल्में सत्तर प्रतिशत रियलिटी और तीस फीसदी ड्रैमेटिक होती हैं। मैं रिस्क लेने में विश्वास करता हूँ।
बड़ा नाम या बड़ा स्टारडम मुझे बहुत प्रभावित नहीं करता। सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है पर बॉलीवुड में सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। फैशन और हीरोइन एक तरफ लोगों को इंस्पायर भी करती है पर वो लोगों को चुनौतियों से सावधान भी करती हैं। एक दर्शक फ़िल्म को मनोरंजन के उद्देश्य से देखने जाता है।
मैं फ़िल्म को क्रिएटिविटी और कॉमर्शियल सक्सेस के बीच में बैलेंस रखता हूँ। आपका आत्मविश्वास ही आपको किसी भी क्षेत्र में टिकाए रखता है और जो दिल में हो वही करना चाहिए। टूटना और निराश होना प्रक्रिया का एक भाग है। मेरे दर्शक बहुत व्यापक हैं।
मुझे उनके बीच जाकर फिल्मों के लिए रिसर्च करना बहुत पसंद है। मेरी आने वाली फिल्म वाइफ़ भी पत्नियों के संघर्ष और मनोस्थिति को दर्शाती है। पति के स्टारडम का उनकी पत्नी पर क्या असर पड़ता है ये देखना रोचक होगा। मैं एक्टिंग तो नहीं करता पर मैं लोगों से बेस्ट परफॉर्मेंस निकलवा सकता हूँ।
