{"_id":"6945a7b4233a159c7703f4fe","slug":"a-saga-of-bravery-was-written-in-blood-on-the-snow-in-kargil-an-honor-ceremony-on-victory-day-by-the-indian-veteran-organization-haryana-hisar-news-c-21-hsr1020-773849-2025-12-20","type":"story","status":"publish","title_hn":"Hisar News: कारगिल में बर्फ पर लहू से लिख दी शौर्य गाथा, इंडियन वेटरन ऑर्गेनाइजेशन हरियाणा की ओर से विजय दिवस पर सम्मान समारोह","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Hisar News: कारगिल में बर्फ पर लहू से लिख दी शौर्य गाथा, इंडियन वेटरन ऑर्गेनाइजेशन हरियाणा की ओर से विजय दिवस पर सम्मान समारोह
विज्ञापन
हिसार के सातरोड स्थित स्वर्ण जयंती पार्क में विजय दिवस कार्यक्रम में इंडियन वेटनर आर्गेनाइजेशन
विज्ञापन
हिसार। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर भारतीय सैनिकों ने जिस अदम्य साहस और बलिदान की अमिट गाथा लिखी, उसकी गूंज विजय दिवस पर सातरोड स्थित स्वर्ण जयंती पार्क में भी सुनाई दी। इंडियन वेटरन ऑर्गेनाइजेशन हरियाणा की ओर से विजय दिवस के उपलक्ष्य में शुक्रवार को आयोजित सम्मान समारोह में वीर नारियों, शहीद आश्रितों और पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के दौरान जब मंच से शौर्य गाथाएं सुनाई गईं तो सभागार भारत माता, वंदे मातरम और भारतीय सेना जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा।
समारोह में कारगिल युद्ध के दौरान अपना पैर गंवाने वाले पूर्व सैनिक अमरनाथ, कारगिल योद्धा कर्ण बूरा सहित कई वीर सैनिकों और सामाजिक संस्थाओं को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने कहा कि कारगिल का युद्ध केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए दिए गए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है, जिसने देश की एकता और संप्रभुता को और मजबूत किया।
गांव घिराय निवासी कारगिल योद्धा कर्ण बूरा ने अपने पिता शहीद हवलदार महाबीर सिंह की वीरता की गाथा साझा करते हुए बताया कि वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में उनके पिता सी कंपनी की 8 नंबर प्लाटून में सेक्शन कमांडर थे। उन्हें 16,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिंपल-2 चोटी पर कब्जा करने का जिम्मा सौंपा गया था।
उन्होंने बताया कि खड़ी चट्टानों, दुश्मन के तोपखाने, मोर्टार और छोटे हथियारों से हो रही भीषण फायरिंग के बावजूद हवलदार महाबीर सिंह ने अपने सेक्शन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। लक्ष्य के निकट पहुंचने पर उन्होंने दुश्मन के चार बंकर देखे। अपने सेक्शन के दो जवानों के साथ रेंगते हुए आगे बढ़े और दो हथगोले फेंककर बंकर ध्वस्त कर दिए, जिससे दो दुश्मन सैनिक मारे गए।
इसके बाद जब वह दूसरे बंकर की ओर बढ़े, तभी दुश्मन के तोपखाने का गोला लग गया। घायल होने के बावजूद वह निष्प्राण होने तक आगे बढ़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। कर्ण बूरा ने भावुक स्वर में बताया कि वह स्वयं 18 जाट रेजिमेंट में कारगिल मोर्चे पर तैनात थे और वहीं उन्हें अपने पिता की शहादत की सूचना मिली थी।
16 दिसंबर को नहीं हो सका कार्यक्रम: इंडियन वेटरन आर्गेनाइजेशन हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष चरण सिंह मलिक ने कहा कि यह कार्यक्रम 1965 और 1971 के युद्धों में शहीद हुए वीर जवानों के परिवारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इस वर्ष 55वां विजय दिवस मनाया जा रहा है। कुछ तकनीकी कारणों से संगठन 16 दिसंबर को कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सका, लेकिन शहीदों के सम्मान में इसे पूरे श्रद्धा भाव से मनाया गया। इस अवसर पर वीर नारियों और पूर्व सैनिकों ने केक काटकर भारतीय सेना की जीत का जश्न मनाया। कार्यक्रम में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रमेश कुमार, जींद से अमरनाथ, जोनल हेड राजबीर सिंह, झज्जर जिला प्रधान सुरेंद्र यादव, हांसी उपाध्यक्ष जयबीर सिंह, जिला अध्यक्ष विनोद कुमार, रोहतक अध्यक्ष जय सिंह तोमर, रोहतक जिला उपाध्यक्ष राजेश कुमार माैजूद रहे।
Trending Videos
समारोह में कारगिल युद्ध के दौरान अपना पैर गंवाने वाले पूर्व सैनिक अमरनाथ, कारगिल योद्धा कर्ण बूरा सहित कई वीर सैनिकों और सामाजिक संस्थाओं को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने कहा कि कारगिल का युद्ध केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए दिए गए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है, जिसने देश की एकता और संप्रभुता को और मजबूत किया।
विज्ञापन
विज्ञापन
गांव घिराय निवासी कारगिल योद्धा कर्ण बूरा ने अपने पिता शहीद हवलदार महाबीर सिंह की वीरता की गाथा साझा करते हुए बताया कि वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में उनके पिता सी कंपनी की 8 नंबर प्लाटून में सेक्शन कमांडर थे। उन्हें 16,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिंपल-2 चोटी पर कब्जा करने का जिम्मा सौंपा गया था।
उन्होंने बताया कि खड़ी चट्टानों, दुश्मन के तोपखाने, मोर्टार और छोटे हथियारों से हो रही भीषण फायरिंग के बावजूद हवलदार महाबीर सिंह ने अपने सेक्शन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। लक्ष्य के निकट पहुंचने पर उन्होंने दुश्मन के चार बंकर देखे। अपने सेक्शन के दो जवानों के साथ रेंगते हुए आगे बढ़े और दो हथगोले फेंककर बंकर ध्वस्त कर दिए, जिससे दो दुश्मन सैनिक मारे गए।
इसके बाद जब वह दूसरे बंकर की ओर बढ़े, तभी दुश्मन के तोपखाने का गोला लग गया। घायल होने के बावजूद वह निष्प्राण होने तक आगे बढ़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। कर्ण बूरा ने भावुक स्वर में बताया कि वह स्वयं 18 जाट रेजिमेंट में कारगिल मोर्चे पर तैनात थे और वहीं उन्हें अपने पिता की शहादत की सूचना मिली थी।
16 दिसंबर को नहीं हो सका कार्यक्रम: इंडियन वेटरन आर्गेनाइजेशन हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष चरण सिंह मलिक ने कहा कि यह कार्यक्रम 1965 और 1971 के युद्धों में शहीद हुए वीर जवानों के परिवारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इस वर्ष 55वां विजय दिवस मनाया जा रहा है। कुछ तकनीकी कारणों से संगठन 16 दिसंबर को कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सका, लेकिन शहीदों के सम्मान में इसे पूरे श्रद्धा भाव से मनाया गया। इस अवसर पर वीर नारियों और पूर्व सैनिकों ने केक काटकर भारतीय सेना की जीत का जश्न मनाया। कार्यक्रम में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रमेश कुमार, जींद से अमरनाथ, जोनल हेड राजबीर सिंह, झज्जर जिला प्रधान सुरेंद्र यादव, हांसी उपाध्यक्ष जयबीर सिंह, जिला अध्यक्ष विनोद कुमार, रोहतक अध्यक्ष जय सिंह तोमर, रोहतक जिला उपाध्यक्ष राजेश कुमार माैजूद रहे।