{"_id":"6926124c65ce4c2acd0388dd","slug":"a-ray-of-hope-gave-up-addiction-and-embraced-life-karnal-news-c-18-agr1041-787727-2025-11-26","type":"story","status":"publish","title_hn":"Karnal News: उम्मीद की किरण... नशा छोड़कर अपना ली जिंदगी","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Karnal News: उम्मीद की किरण... नशा छोड़कर अपना ली जिंदगी
संवाद न्यूज एजेंसी, करनाल
Updated Wed, 26 Nov 2025 02:02 AM IST
विज्ञापन
विज्ञापन
संवाद न्यूज एजेंसी
करनाल। जिले में नशे की गिरफ्त बढ़ती जा रही है। इसी बीच ऐसी कहानियां भी सामने आई हैं जो नशा छोड़ने के बाद जिंदगी जीने की उम्मीद तक जगाती हैं। पिछले पांच साल में जहां करीब तीन हजार लोग नशे की चपेट में आए, वहीं दो हजार से ज्यादा लोगों ने नशा छोड़कर नई जिंदगी की शुरुआत भी की है। इन्हीं में शामिल विक्की और बिट्टू। विक्की 8-10 साल शराब आदी रहे। बिट्टू को करीब 14 साल तक अफीम की लत रही। दोनों अब इस दलदल से निकल चुके हैं।
जिला नागरिक अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र में विक्की और बिट्टू के समान कई प्रेरणा और साहस देने वाली 2000 से ज्यादा कहानियां हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जिले में पिछले कुछ वर्षों में नशे को लेकर जागरूकता कैंप, पुलिस-प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई और सोशल मीडिया पर चल रही मुहिम ने लोगों को इलाज की ओर प्रेरित किया है। चिकित्सकों का कहना है कि नशा मुक्ति की सबसे बड़ी कुंजी है समय पर काउंसिलिंग, परिवार का साथ और निरंतर निगरानी। लगातार काउंसिलिंग और मरीज की खुद के नियंत्रण से भी ये संभव हो पाता है। जितने भी मरीज आते हैं उन्हें उनके नशा लेने की अवधि, शारीरिक स्थिति के अनुसार उपचार दिया जाता है। कोई अगर पांच या दस साल से नशा कर रहा है तो उपचार दो साल भी चल सकता है। इसके साथ ही अगर मरीज सहयोग करे तो जल्द भी ठीक हो सकता है।
- 8 या 10 घंटे पहले तक नशा नहीं करने पर किया जाता है भर्ती
डीडीसी हर्ष ने बताया कि मरीज को भर्ती करने की प्रक्रिया के दौरान यह देखा जाता है कि उसने 8 या 10 घंटे पहले तक कोई नशा न किया हो। पहले काउंसिलिंग की जाती है। कितना और कौन सा नशा करता था, की जानकारी ली जाती है। ये सब जानने के बाद उसके कुछ टेस्ट किए जाते हैं और भर्ती कर लिया जाता है। इन दिनों 3 से 4 मरीज भर्ती हैं। इलाज के दौरान काउंसिलिंग के लिए आने से लेकर नशा मुक्ति केंद्र की तीसरी मंजिल तक जाने तक एक साथी साथ भी भेजा जाता है ताकि बीच में उन्हें कोई नशा न पकड़ा दे या वह खुद नशा लेने न चले जाएं।
सप्ताह से शराब से पूरी तरह दूर
46 वर्षीय विक्की ने बताया कि पिछले 8-10 साल से शराब की लत थी। हालत यह हो चुकी थी कि घर-परिवार टूटने की कगार पर आ गया था। वह अपनी जिंदगी पर से नियंत्रण चुके थे। जब हालात बिल्कुल बिगड़ गए तो जिला नागरिक अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में भर्ती हुए। काउंसिलिंग के लिए मनोरोग ओपीडी में रेफर किया गया। उसके बाद उपचार शुरू हुआ। काउंसिलिंग और मेडिकल थेरेपी की मदद से धीरे-धीरे शराब से दूरी बनानी शुरू की। अब शराब से पूरी तरह दूर हैं। बोले, जरूरी है कि नशा करने से पहले परिवार के बारे में सोचें।
2011 से ले रहे थे अफीम
36 वर्षीय बिट्टू ने वर्ष 2011 में अफीम का नशा शुरू किया। दोस्तों के साथ कहीं घूमने गए तो उनके साथ अफीम का सेवन करते। दोस्तों ने कहा कि एक-दो बार लेने से कुछ नहीं होगा लेकिन धीरे-धीरे लत लग गई। छोड़ने का प्रयास किया तो बेचैनी, दिल की धड़कन बढ़ना, दर्द जैसी तकलीफें होतीं। नशा धीरे-धीरे उसकी मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों को नुकसान पहुंचाने लगा। फेसबुक पर नशा मुक्ति केंद्र का प्रचार देख उपचार के लिए परिवारजन लेकर आए। खुद को केंद्र में भर्ती करवाने का फैसला किया। इलाज के कुछ महीनों बाद अफीम से पूरी तरह दूरी बना ली। वे लोगों से यही कहते हैं कि युवा या अन्य कोई भी हो दोस्तों के बहकावे में या खुद भी किसी भी प्रकार का नशा न करें। इससे केवल जिंदगी खराब होती है।
वर्ष नशा छोड़ा
2020-21 77
2021-22 313
2022-23 500
2023-24 1,045
2024-25 अब तक 900 पार
-- -- -- -- --
जिले में नशा करने वालों की संख्या भले बढ़ी हो लेकिन उससे ज्यादा लोग अब इलाज की ओर आ रहे हैं। यह बदलाव उम्मीद जगाता है। नशे से जूझ रहे लोगों के लिए ये कहानियां प्रेरणा हैं कि चाहे नशे की जड़ें कितनी भी गहरी क्यों न हो जाएं, वापस लौटने का रास्ता हमेशा मौजूद है। नशा मुक्ति केंद्र में पूरा उपचार देकर ही मरीज को भेजा जाता है। जब तक उनकी मनोवृत्ति बदल न जाए और पूरी तरह नशा नहीं छोड़ते इलाज जारी रहता है। - डॉ. सौभाग्य कौशिक, मनोरोग विशेषज्ञ, जिला नागरिक अस्पताल
Trending Videos
करनाल। जिले में नशे की गिरफ्त बढ़ती जा रही है। इसी बीच ऐसी कहानियां भी सामने आई हैं जो नशा छोड़ने के बाद जिंदगी जीने की उम्मीद तक जगाती हैं। पिछले पांच साल में जहां करीब तीन हजार लोग नशे की चपेट में आए, वहीं दो हजार से ज्यादा लोगों ने नशा छोड़कर नई जिंदगी की शुरुआत भी की है। इन्हीं में शामिल विक्की और बिट्टू। विक्की 8-10 साल शराब आदी रहे। बिट्टू को करीब 14 साल तक अफीम की लत रही। दोनों अब इस दलदल से निकल चुके हैं।
जिला नागरिक अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र में विक्की और बिट्टू के समान कई प्रेरणा और साहस देने वाली 2000 से ज्यादा कहानियां हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जिले में पिछले कुछ वर्षों में नशे को लेकर जागरूकता कैंप, पुलिस-प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई और सोशल मीडिया पर चल रही मुहिम ने लोगों को इलाज की ओर प्रेरित किया है। चिकित्सकों का कहना है कि नशा मुक्ति की सबसे बड़ी कुंजी है समय पर काउंसिलिंग, परिवार का साथ और निरंतर निगरानी। लगातार काउंसिलिंग और मरीज की खुद के नियंत्रण से भी ये संभव हो पाता है। जितने भी मरीज आते हैं उन्हें उनके नशा लेने की अवधि, शारीरिक स्थिति के अनुसार उपचार दिया जाता है। कोई अगर पांच या दस साल से नशा कर रहा है तो उपचार दो साल भी चल सकता है। इसके साथ ही अगर मरीज सहयोग करे तो जल्द भी ठीक हो सकता है।
विज्ञापन
विज्ञापन
- 8 या 10 घंटे पहले तक नशा नहीं करने पर किया जाता है भर्ती
डीडीसी हर्ष ने बताया कि मरीज को भर्ती करने की प्रक्रिया के दौरान यह देखा जाता है कि उसने 8 या 10 घंटे पहले तक कोई नशा न किया हो। पहले काउंसिलिंग की जाती है। कितना और कौन सा नशा करता था, की जानकारी ली जाती है। ये सब जानने के बाद उसके कुछ टेस्ट किए जाते हैं और भर्ती कर लिया जाता है। इन दिनों 3 से 4 मरीज भर्ती हैं। इलाज के दौरान काउंसिलिंग के लिए आने से लेकर नशा मुक्ति केंद्र की तीसरी मंजिल तक जाने तक एक साथी साथ भी भेजा जाता है ताकि बीच में उन्हें कोई नशा न पकड़ा दे या वह खुद नशा लेने न चले जाएं।
सप्ताह से शराब से पूरी तरह दूर
46 वर्षीय विक्की ने बताया कि पिछले 8-10 साल से शराब की लत थी। हालत यह हो चुकी थी कि घर-परिवार टूटने की कगार पर आ गया था। वह अपनी जिंदगी पर से नियंत्रण चुके थे। जब हालात बिल्कुल बिगड़ गए तो जिला नागरिक अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में भर्ती हुए। काउंसिलिंग के लिए मनोरोग ओपीडी में रेफर किया गया। उसके बाद उपचार शुरू हुआ। काउंसिलिंग और मेडिकल थेरेपी की मदद से धीरे-धीरे शराब से दूरी बनानी शुरू की। अब शराब से पूरी तरह दूर हैं। बोले, जरूरी है कि नशा करने से पहले परिवार के बारे में सोचें।
2011 से ले रहे थे अफीम
36 वर्षीय बिट्टू ने वर्ष 2011 में अफीम का नशा शुरू किया। दोस्तों के साथ कहीं घूमने गए तो उनके साथ अफीम का सेवन करते। दोस्तों ने कहा कि एक-दो बार लेने से कुछ नहीं होगा लेकिन धीरे-धीरे लत लग गई। छोड़ने का प्रयास किया तो बेचैनी, दिल की धड़कन बढ़ना, दर्द जैसी तकलीफें होतीं। नशा धीरे-धीरे उसकी मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों को नुकसान पहुंचाने लगा। फेसबुक पर नशा मुक्ति केंद्र का प्रचार देख उपचार के लिए परिवारजन लेकर आए। खुद को केंद्र में भर्ती करवाने का फैसला किया। इलाज के कुछ महीनों बाद अफीम से पूरी तरह दूरी बना ली। वे लोगों से यही कहते हैं कि युवा या अन्य कोई भी हो दोस्तों के बहकावे में या खुद भी किसी भी प्रकार का नशा न करें। इससे केवल जिंदगी खराब होती है।
वर्ष नशा छोड़ा
2020-21 77
2021-22 313
2022-23 500
2023-24 1,045
2024-25 अब तक 900 पार
जिले में नशा करने वालों की संख्या भले बढ़ी हो लेकिन उससे ज्यादा लोग अब इलाज की ओर आ रहे हैं। यह बदलाव उम्मीद जगाता है। नशे से जूझ रहे लोगों के लिए ये कहानियां प्रेरणा हैं कि चाहे नशे की जड़ें कितनी भी गहरी क्यों न हो जाएं, वापस लौटने का रास्ता हमेशा मौजूद है। नशा मुक्ति केंद्र में पूरा उपचार देकर ही मरीज को भेजा जाता है। जब तक उनकी मनोवृत्ति बदल न जाए और पूरी तरह नशा नहीं छोड़ते इलाज जारी रहता है। - डॉ. सौभाग्य कौशिक, मनोरोग विशेषज्ञ, जिला नागरिक अस्पताल