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Rohtak News: स्वावलंबन की चाय में आत्मनिर्भरता की मिठास, शिव शक्ति स्वयं सहायता समूह से जुड़ी गीता व सावित्री
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02...नगर निगम कार्यालय परिसर में कैंटीन पर चाय बनातीं गीता व सावित्री। संवाद
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संवाद न्यूज एजेंसी
रोहतक। चाय केवल मुंह ही मीठा नहीं करती है बल्कि यह जीवन में रोजगार का मिठास भी घोल रही है। इसी का उदाहरण शहर की गीता व सावित्री पेश कर रही हैं। शहर के नगर निगम भवन परिसर में कैंटीन चला रहीं ये महिलाएं स्वावलंबन की चाय में आत्मनिर्भरता की मिठास घोल रही हैं।
शहरी निकाय विभाग की ओर से स्वयं सहायता समूह भी बनाया हुआ है। ये महिलाएं शिव शक्ति स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं। उनका कहना है कि पहले वे बेरोजगार थीं लेकिन अब उनको शाम तक भी चाय का काम मिलता है। सावित्री व गीता बताती हैं कि करीब छह महीने से वे नगर निगम कार्यालय परिसर में चाय की दुकान चला रही हैं।
सावित्री दो जबकि गीता चार क्लास तक पढ़ी हैं। वे दोनों आठ साल पहले स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थीं। वे बताती हैं कि शुरुआत में चाय पीने वालों की अलग-अलग पसंद सुनकर हैरानी भी होती थी। कोई ज्यादा मीठी चाय बनाने को कहता तो कोई कोई कम मीठी। कोई ज्यादा पत्ती वाली तो कोई कम पत्ती वाली चाय मांगता।
हालांकि, कुछ दिनों बाद उनको समझ आ गया कि लोग अलग-अलग तरह की चाय पीना पसंद करती हैं। दोनों महिलाएं शहर की न्यू राजेंद्र कॉलोनी से हैं और प्रति माह छह हजार रुपये तक की आमदनी कर रहीं हैं।
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रोहतक। चाय केवल मुंह ही मीठा नहीं करती है बल्कि यह जीवन में रोजगार का मिठास भी घोल रही है। इसी का उदाहरण शहर की गीता व सावित्री पेश कर रही हैं। शहर के नगर निगम भवन परिसर में कैंटीन चला रहीं ये महिलाएं स्वावलंबन की चाय में आत्मनिर्भरता की मिठास घोल रही हैं।
शहरी निकाय विभाग की ओर से स्वयं सहायता समूह भी बनाया हुआ है। ये महिलाएं शिव शक्ति स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं। उनका कहना है कि पहले वे बेरोजगार थीं लेकिन अब उनको शाम तक भी चाय का काम मिलता है। सावित्री व गीता बताती हैं कि करीब छह महीने से वे नगर निगम कार्यालय परिसर में चाय की दुकान चला रही हैं।
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सावित्री दो जबकि गीता चार क्लास तक पढ़ी हैं। वे दोनों आठ साल पहले स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थीं। वे बताती हैं कि शुरुआत में चाय पीने वालों की अलग-अलग पसंद सुनकर हैरानी भी होती थी। कोई ज्यादा मीठी चाय बनाने को कहता तो कोई कोई कम मीठी। कोई ज्यादा पत्ती वाली तो कोई कम पत्ती वाली चाय मांगता।
हालांकि, कुछ दिनों बाद उनको समझ आ गया कि लोग अलग-अलग तरह की चाय पीना पसंद करती हैं। दोनों महिलाएं शहर की न्यू राजेंद्र कॉलोनी से हैं और प्रति माह छह हजार रुपये तक की आमदनी कर रहीं हैं।