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महारास आत्मा-परमात्मा के मिलन का दिव्य प्रतीक : आचार्य अरुण
संवाद न्यूज एजेंसी, बिलासपुर
Updated Mon, 15 Dec 2025 11:57 PM IST
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सिल्ह में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में उपस्थित श्रद्धालु। स्रोत: जागरूक पाठक।
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सिल्ह में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का छठा दिन
संवाद न्यूज एजेंसी
घुमारवीं (बिलासपुर)। उपमंडल घुमारवीं के सिल्ह गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथा व्यास आचार्य अरुण मोदगिल ने भगवान श्री कृष्ण की दिव्य बाल लीलाओं का भावपूर्ण वर्णन करते हुए श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
उन्होंने सरल एवं प्रभावशाली शब्दों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के माध्यम से भक्ति, प्रेम और समर्पण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि महारास केवल एक लीला नहीं, बल्कि जीवात्मा और परमात्मा के मिलन का दिव्य प्रतीक है। महारास में उन्हीं गोपियों को प्रवेश प्राप्त हुआ, जिनके वस्त्र चीरहरण की लीला के माध्यम से भगवान ने उनके हृदय में व्याप्त माया रूपी अज्ञान की आवरण को दूर किया था। जब तक मनुष्य के हृदय में अहंकार, माया और अज्ञान का पर्दा रहता है, तब तक परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं होती। उन्होंने कहा कि वस्त्र चीरहरण की लीला का भावार्थ यह है कि भगवान अपने भक्तों के भीतर छिपे हुए विकारों और अज्ञान को दूर कर उन्हें निर्मल बनाते हैं। जब गोपियों का हृदय पूर्ण रूप से शुद्ध हो गया, तभी उन्हें महारास में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह लीला हमें सिखाती है कि प्रभु की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपने मन को पूर्ण रूप से निर्मल और पवित्र बनाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य सच्चे मन से भक्ति करें, अपने भीतर की बुराइयों को त्याग दे और निष्काम भाव से भगवान का स्मरण करे, तो प्रभु स्वयं अपने भक्त के जीवन में प्रकट होते हैं। महारास प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण का सर्वोच्च स्वरूप है, जिसमें जीवात्मा अपने समस्त बंधनों को तोड़कर परमात्मा से एकाकार हो जाती है। आयोजक समिति ने श्रद्धालुओं से आगामी दिनों में भी अधिक संख्या में पहुंचकर कथा का लाभ उठाने का आह्वान किया।
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घुमारवीं (बिलासपुर)। उपमंडल घुमारवीं के सिल्ह गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथा व्यास आचार्य अरुण मोदगिल ने भगवान श्री कृष्ण की दिव्य बाल लीलाओं का भावपूर्ण वर्णन करते हुए श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
उन्होंने सरल एवं प्रभावशाली शब्दों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के माध्यम से भक्ति, प्रेम और समर्पण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि महारास केवल एक लीला नहीं, बल्कि जीवात्मा और परमात्मा के मिलन का दिव्य प्रतीक है। महारास में उन्हीं गोपियों को प्रवेश प्राप्त हुआ, जिनके वस्त्र चीरहरण की लीला के माध्यम से भगवान ने उनके हृदय में व्याप्त माया रूपी अज्ञान की आवरण को दूर किया था। जब तक मनुष्य के हृदय में अहंकार, माया और अज्ञान का पर्दा रहता है, तब तक परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं होती। उन्होंने कहा कि वस्त्र चीरहरण की लीला का भावार्थ यह है कि भगवान अपने भक्तों के भीतर छिपे हुए विकारों और अज्ञान को दूर कर उन्हें निर्मल बनाते हैं। जब गोपियों का हृदय पूर्ण रूप से शुद्ध हो गया, तभी उन्हें महारास में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह लीला हमें सिखाती है कि प्रभु की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपने मन को पूर्ण रूप से निर्मल और पवित्र बनाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य सच्चे मन से भक्ति करें, अपने भीतर की बुराइयों को त्याग दे और निष्काम भाव से भगवान का स्मरण करे, तो प्रभु स्वयं अपने भक्त के जीवन में प्रकट होते हैं। महारास प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण का सर्वोच्च स्वरूप है, जिसमें जीवात्मा अपने समस्त बंधनों को तोड़कर परमात्मा से एकाकार हो जाती है। आयोजक समिति ने श्रद्धालुओं से आगामी दिनों में भी अधिक संख्या में पहुंचकर कथा का लाभ उठाने का आह्वान किया।
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