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बिहार के महाकांड: किसी का गला रेता, कहीं छाती काटी, कोई गोलियों से भूना गया; आधी रात को ऐसे चला था खूनी खेल

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Tue, 04 Nov 2025 08:24 AM IST
सार

बिहार चुनाव से जुड़ी हमारी खास पेशकश ‘बिहार के महाकांड’ सीरीज के चौथे भाग में आज इसी लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की कहानी। लक्ष्मणपुर बाथे में हुए नरसंहार की पृष्ठभूमि क्या रही थी? रणवीर सेना ने किस तरह इस हत्याकांड की साजिश रची? कैसे बथानी टोला नरसंहार की तरह ही लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार में भी अदालत का फैसला पीड़ितों को राहत नहीं दिला पाया? आइये जानते हैं...

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Bihar ke Mahakand Laxmanpur Bathe Massacre Case 1997 Patna High Court Verdict Ranvir Sena CPI ML Jehanabad
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बिहार के बतन बीघा में 1 दिसंबर 1997 की रात दहशत की रात साबित हुई। वजह थी मगध प्रमंडल के जिले जहानाबाद में दो गांवों- लक्ष्मणपुर-बाथे में हुआ नरसंहार, जिसमें 58 लोगों की जान चली गई थी। यह घटना कितनी निर्ममता से अंजाम दी गई थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हत्यारों ने आधी रात को गहरी नींद में सोए लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना में कातिलों ने महिलाओं और बच्चों तक को नहीं छोड़ा था। इसे बिहार के सबसे बड़े नरसंहारों में माना जाता है। हालांकि, 2013 में जब पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला दिया तो इस पूरे मामले में कोई दोषी ही नहीं मिला। यानी यह पूरा केस ऐसा था, जैसे नरसंहार तो हुआ, पर किसी भी पकड़े गए आरोपी ने उसे अंजाम नहीं दिया।  
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बिहार चुनाव से जुड़ी हमारी खास पेशकश ‘बिहार के महाकांड’ सीरीज के चौथे भाग में आज इसी लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की कहानी। 

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कैसे बेलछी और बथानी टोला नरसंहार से जुड़ा है लक्ष्मणपुर बाथे का हत्याकांड?
बिहार में 1970 के मध्य तक मजदूरों ने जमींदारों और जमीन पर कब्जा करने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। इसके चलते एक खूनी संघर्ष की शुरुआत हुई। इसी कड़ी में यह नरसंहार भी शामिल था। अरविंद सिन्हा और इंदु सिन्हा के इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में दिए गए एक लेख के मुताबिक, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) का सिर्फ एक ही एजेंडा था। उच्च जातियों के संगठनों की तरफ से की जा रही हिंसा का बदला लेना। एमसीसी ने कई मौकों पर अपना आतंक दिखाया भी और 1987 में पहले औरंगाबाद के डालेचक-बघौरा गांव में 54 राजपूतों के हत्याकांड को अंजाम दिया। वहीं, इसके बाद 1992 में गया के बाड़ा गांव में 42 भूमिहारों का नरसंहार कर दिया। 1997 के लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार को इस घटना का प्रतिशोध माना जाता है।
 

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) इस पूरे घटनाक्रम के पीछे एक और वजह बताता है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, लक्ष्मणपुर-बाथे में भूमिहारों जाति के लोगों की बहुलता थी। यहां के कुछ दबंग भूमिहार 50 एकड़ के क्षेत्र में फैली गांव की उस जमीन को कब्जाना चाहते थे, जो कि भूमिहीन मजदूरों के लिए तय की गई थी। जब मजदूरों को इस बात का पता चला तो उन्होंने नक्सल संगठन- एमसीसी का साथ लेने की ठानी और भूमिहारों के खिलाफ हथियार उठाने तक के लिए तैयार हो गए। बताया जाता है कि क्षेत्र के अधिकारियों को इस तनाव की जानकारी थी। हालांकि, इससे पहले कि वे कुछ कदम उठाते, उच्च जातियों के संगठन- रणवीर सेना ने लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार को अंजाम दे दिया।   

बेला भाटिया के लेख- मसैकर ऑन द बैंक्स ऑफ सोन में कहा गया है कि रणवीर सेना के बाथे को निशाना बनाने की एक वजह यह थी कि यह गांव भाकपा-माले लिबरेशन और उसकी पार्टी एकता का गढ़ बनता जा रहा था।

लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार की तैयारी कैसे हुई?
30 नवंबर 1997 को रणवीर सेना की एक बैठक हुई। दावा किया जाता है कि यह बैठक लक्ष्मणपुर-बाथे के करीब ही कामता नाम के गांव में रखी गई। इस बैठक में रणवीर सेना के लोगों के साथ-साथ कामता और लक्ष्मणपुर बाथे के लोग भी पहुंचे थे। इसके अलावा आसपास के गांव- बेलसर, चंदा, सोहसा, खरसा, कोयल, भूपत, बसंतपुर और परशुरामपुर की उच्च जातियों के लोग भी इस बैठक में शामिल हुए। भाकपा-माले और भाकपा-माले (लिबरेशन) के कार्यकर्ताओं को इसकी भनक लग गई। हालांकि, तब प्रशासन ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। 

जिन लोगों को बर्बरता से मारा गया, उनमें 19 पुरुष, 27 महिलाएं और 10 बच्चे शामिल थे। इनमें एक नवजात बच्चा भी था। वहीं, आठ महिलाएं गर्भवती थीं। इसके अलावा कुछ महिलाओं की छाती को काट दिया गया था। जिन लोगों को उस एक रात में मारा गया, उनमें 33 दलित थे। वहीं, कुछ अति-पिछड़ा वर्ग से थे। कुछ पिछड़ी जातियों से आने वाले कोइरी भी इस हत्याकांड का शिकार हुए।

अदालतों में इस मामले पर क्या हुआ?
6 दिसंबर 1997 तक लक्ष्मणपुर-बाथे में स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया। पुलिस ने इस दौरान गांवों में कई बार छापेमारी की। इस मामले में तब तक पांच संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें चार लोग राजपूत जाति से आते थे, जबकि एक व्यक्ति- बलेश्वर सिंह भूमिहार थे। वहीं, सोन नदी के पार साहर, जहां से रणवीर सेना के लोग आए थे, वहां कुल 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई। मामले में खोपिड़ा गांव से ब्रह्मेश्वर सिंह 'मुखिया' और कांग्रेस नेता कमल कांत शर्मा के नाम उठने की भी चर्चा हुई थी। हालांकि, इन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था। 

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के फैसले में एक और दिलचस्प बात जुड़ी है। दरअसल, 9 अक्तूबर 2013 को जिस दिन मामले का फैसला हुआ, उसी दिन सचिन तेंदुलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना आखिरी मैच खेल रहे थे। ऐसे में हाईकोर्ट का फैसला सचिन के सन्यांस की खबरों के आगे दब गया। पटना हाईकोर्ट के निर्णय को लेकर लेफ्ट संगठनों ने पूरे बिहार में बंद का एलान किया। वाम दलों का आरोप था कि लक्ष्मणपुर-बाथे में जो फैसला आया है, उससे यह संकेत जाता है कि उस दिन गांव में लोग तो मारे गए, लेकिन उन्हें मारने वाला कोई नहीं था।
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