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Freebies: मु्फ्त उपहारों के वादों पर SC में एक और याचिका दाखिल, राजनीतिक दल उपलब्ध कराएं सभी जानकारियां
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Fri, 19 Aug 2022 09:48 PM IST
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सार
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया और वकील अश्विनी दुबे के माध्यम से शुक्रवार को शीर्ष अदालत में अतिरिक्त जानकारी दी है।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : social media
विस्तार
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में तर्कहीन सौगातों का विरोध करने वाली एक जनहित याचिका का दायर की गई। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादों या नीतियों के आर्थिक प्रभाव आकलन और लाभार्थियों की अपेक्षित संख्या के बारे में चुनाव आयोग को जानकारी देने के लिए निर्देशित किया जा सकता है। शीर्ष अदालत चुनावों के दौरान घोषित किए जाने वाले मुफ्त उपहारों के मुद्दे पर एक विशेषज्ञ पैनल बनाने पर विचार कर रही है। उसने इस मुद्दे पर केंद्र, चुनाव आयोग, वित्त आयोग और नीति आयोग सहित सभी हितधारकों से सुझाव मांगे हैं और जनहित याचिका पर 22 अगस्त को सुनवाई होगी।
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याचिका में मांग, राजनीतिक दल प्रस्तुत करें जानकारी
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया और वकील अश्विनी दुबे के माध्यम से शुक्रवार को शीर्ष अदालत में अतिरिक्त जानकारी देते हुए कहा कि पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को मुफ्त या कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित चुनावी वादों पर प्रासंगिक जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहा जाए। उपाध्याय ने कहा, इसमें कोई विवाद नहीं है कि राजनीतिक दल लोगों के कल्याण के लिए योजनाओं की घोषणा कर सकते हैं। हालांकि, आवश्यक है कि मतदाताओं को अपने चुनावी घोषणा पत्र में राजनीतिक दलों द्वारा घोषित योजनाओं के वित्तीय और प्रभाव के बारे में सामग्री की जानकारी होनी चाहिए।
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उन्होंने कहा कि भारत का चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को उनके द्वारा किए गए चुनावी वादों के संबंध में लाभार्थियों की अपेक्षित संख्या और सरकारी खजाने पर वित्तीय प्रभाव का विवरण देने का निर्देश दे सकता है। उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसलों का भी जिक्र किया जिसमें उसने निर्देश दिया था कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए एक फॉर्म को भरना होगा जिसमें उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण होगा।
बुधवार को सीजेआई ने यह पाया कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक जनादेश को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता है और "मुफ्त रेवड़ी" (freebie) शब्द को वास्तविक कल्याणकारी उपायों के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। इससे पहले जनहित याचिका याचिकाकर्ता ने कई राज्यों की गंभीर आर्थिक स्थिति पर कुछ आंकड़े उपलब्ध कराए थे।