Pulwama Saffron: दोहरी मुसीबत झेल रहे किसान, साही उजाड़ रहे केसर के खेत
पुलवामा के पांपोर और आसपास के इलाकों में केसर किसान जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ साही के हमलों से दोहरी मुसीबत झेल रहे हैं। साही रात में केसर के कंद खोदकर नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे उत्पादन और किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
विस्तार
दक्षिण कश्मीर में पुलवामा के पांपोर और आसपास के इलाकों में केसर की खेती करने वाले किसान दोहरी मुसीबत में हैं। जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे इन किसानों के सामने अब साही एक नई और बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। ये जीव जमीन खोदकर केसर के कंदों को बर्बाद कर रहे हैं। अगर तुरंत उपाय नहीं किए गए तो लगातार गिर रहे केसर के उत्पादन में और कमी आ सकती है।
पांपोर, कोनिबल, दुसूर, लेथपोरा और आसपास के गांवों के किसानों ने बताया कि साही लगभग हर रात खेतों से केसर के कंद खोदकर खा जाते हैं। इससे उम्मीदें टूट रही हैं। किसानों ने कहा कि केसर एक बहुत ही संवेदनशील फसल है। बागों के विपरीत किसानों के पास इसे जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बहुत कम विकल्प हैं। किसानों ने कहा, साही हमारे जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं। अगर इस समस्या पर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में इन खेतों में केसर का एक भी कंद नहीं बचेगा।
फसल के लिए दिसंबर से मार्च तक समय अहम
किसानों के अनुसार साही दिसंबर से मार्च के बीच खास तौर पर सक्रिय रहते हैं। यह अवधि कंदों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। साही कंद खोदकर खा जाते हैं। कई वजहों से कश्मीर में केसर का प्रोडक्शन पहले से ही कम हो रहा है। खेती का क्षेत्रफल कम होना, जलवायु परिवर्तन, समय पर सिंचाई की कमी और अच्छी क्वालिटी के कंदों की कमी शामिल है।
टेक्निकल एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों से ली जाए सलाह
किसानों ने बताया कि कुछ साल पहले स्कॉस्ट-कश्मीर द्वारा दिए गए एक रिपेलेंट स्प्रे से कुछ समय के लिए राहत मिली थी लेकिन इसका असर अधिक समय तक नहीं रहा। किसानों ने कहा कि हम एक्सपर्ट नहीं हैं। सरकार को टेक्निकल एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों से सलाह लेनी चाहिए जो हमें साही से होने वाले नुकसान को रोकने के असरदार और टिकाऊ तरीकों के बारे में गाइड कर सकें। अब तक कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं दिया गया है।
किसान बोले
पांपोर के किसान अब्दुल मजीद ने कहा, जलवायु परिवर्तन ने पहले ही फसल चक्र को बिगाड़ दिया है। अनियमित बारिश, गर्म सर्दियां और लंबे समय तक सूखे से केसर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जो कुछ बचा है उसे साही बर्बाद कर रहे हैं। जब कोई कंद खराब हो जाता है तो उसमें फूल नहीं आते। इसका सीधा मतलब है शून्य उत्पादन और हमारी आजीविका पर सीधा असर।
पांपोर के ही किसान बशीर अहमद ने कहा, बागवानों के लिए पेड़ के तनों को ढकने या बाड़ लगाने जैसे तरीके हैं लेकिन केसर के लिए ऐसे कोई समाधान नहीं हैं। हम रोशनी, हॉर्न और शोर का इस्तेमाल करके साही को भगाने की कोशिश करते हैं लेकिन पूरी रात जागना संभव नहीं है। ये जानवर बार-बार वापस आ जाते हैं।