सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल: दहशत फैलाने के लिए आतंकवादी संगठन बदल रहे रणनीति, साफ छवि वाले युवाओं को बना रहे मोहरा
जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों ने अब बिना आपराधिक या अलगाववादी इतिहास वाले साफ छवि युवाओं को मोहरा बनाकर भर्ती करना शुरू किया है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार यह रणनीति पिछले दो दशक के आतंकवादी पैटर्न से पूरी तरह अलग है।
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जम्मू-कश्मीर के शांत माहाैल को बिगाड़ने और सुरक्षाबलों की नजरों से बचने के लिए आतंकी संगठनों ने नया षड्यंत्र रचा है। दहशत और धमाके के लिए अब ऐसे युवाओं को माेहरा बनाया जा रहा है जिनका अलगाववादियों से कोई संबंध या आपराधिक इतिहास नहीं है।
सुरक्षाबलों ही नहीं बल्कि खुफिया एजेंसियों के लिए भी ये साजिश नई चुनाैती बनकर उभरी है। सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल में अब तक की गिरफ्तारियों और इनसे पूछताछ के आधार पर ये एक अलग तरह का पैटर्न सामने आया है।
एक अधिकारी ने कहा कि डॉ. आदिल राथर, उसके भाई डॉ. मुजफ्फर राथर और डॉ. मुजम्मिल गनई जैसे आरोपियों का कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड या राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता नहीं है। इन कट्टरपंथी युवकों के परिवार के सदस्यों का भी किसी अलगाववादी या आतंकवादी संगठन से कोई पुराना संबंध नहीं है। यहां तक कि दिल्ली विस्फोट मामले में कार चला रहे डॉ. उमर नबी का भी कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं था। उसका परिवार भी इस मामले में बेदाग रहा है।
भरोसे की आड़ में छिपा रहा सफेदपोश आतंकी माॅड्यूल सुरक्षा से जुड़े सूत्रों ने इस माॅड्यूल के पीछे जम्मू-कश्मीर में या सीमा पार पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी सरगनाओं की एक सोची-समझी चाल बताया है। एक अधिकारी ने कहा, किसी के लिए भी यह सोचना अकल्पनीय होगा कि डॉक्टरों का एक समूह आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होगा। इसी भरोसे की आड़ में सफेदपोश आतंकी माॅड्यूल अपना चेहरा छिपाए रहा।
दो दशक पहले से अलग है ये आतंकी साजिश
अधिकारियों के अनुसार संगठनों का यह षड्यंत्र दो दशक पहले देश विरोधी गतिविधियों से बिल्कुल अलग है। 2000 की शुरुआत से लेकर 2020 तक आतंकी भर्ती में ऐसे युवाओं को प्राथमिकता दी जाती थी जो पहले से ही किसी न किसी तरह से आतंकवाद से जुड़े होते थे।