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Lancet Study: ना ठीक से खाते हैं ना सोते हैं और लाइफ स्टाइल भी है खराब तो आप पर मंडरा रहा मौत का खतरा

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Tue, 14 Oct 2025 12:34 PM IST
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सार

  •  भारत में हर साल लगभग 63% मौतें नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज की वजह से होती हैं, जिनमें से करीब 30% लोग 40 साल से कम उम्र के होते हैं।
  • साल 2023 तक भारत में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) से होने वाली मौतें, संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मौतों को पीछे छोड़ चुकी हैं। 

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नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज के कारण मौत का खतरा - फोटो : Amarujala.com
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विस्तार
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लाइफस्टाइल और खान-पान में गड़बड़ी के चलते वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ा है। भारतीय आबादी पर भी इसका गंभीर असर देखा जा रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में अब बीमारियों का परिदृश्य काफी बदल गया है। दो दशकों पहले तक जहां संक्रामक रोग जैसे टाइफाइड, मलेरिया या टीबी के कारण सबसे ज्यादा मौतें होती थीं, वहीं अब नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज देश में मौत का बड़ा कारण बन चुकी हैं। 



हालिया शोध बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग 63% मौतें नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज की वजह से होती हैं, जिनमें से करीब 30% लोग 40 साल से कम उम्र के होते हैं। असंतुलित जीवनशैली, जंक फूड्स, तनाव, नींद की कमी और शारीरिक निष्क्रियता ने इसके खतरे को काफी बढ़ा दिया है। पहले जहां ये बीमारियां 50-60 साल की उम्र में होती थीं, आज वो 30 से कम उम्र के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। 

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नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज का बढ़ता खतरा - फोटो : Freepik.com

नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज का खतरा

नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) ऐसी बीमारियां हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलतीं। ये अक्सर जीवनशैली, आनुवंशिकता या पर्यावरणीय कारकों के कारण होती हैं। इनमें कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और क्रॉनिक श्वसन रोग जैसी बीमारियां शामिल हैं। ये रोग धीरे-धीरे विकसित होतीं हैं और इनके लिए लंबे समय तक उपचार और देखभाल की आवश्यकता होती है। 

बर्लिन में आयोजित विश्व स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में द लैंसेट द्वारा जारी की गई  ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) रिपोर्ट एक बड़े बदलाव का खुलासा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 तक भारत में गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) से होने वाली मौतें, संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मौतों को पीछे छोड़ चुकी हैं।

देश में हृदय रोग, दीर्घकालिक फेफड़ों की बीमारी और स्ट्रोक की दर बढ़ रही है, ये मौतों का प्रमुख कारण भी हैं जिसको लेकर सभी लोगों को अलर्ट रहने की आवश्यकता है।

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क्रॉनिक बीमारियों का बढ़ता जोखिम - फोटो : Freepik.com

शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने बढ़ा दिया खतरा

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा, शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने लोगों की आदतों को बदल दिया है। धूम्रपान-शराब और देर रात तक जागने की आदतें शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रही हैं, जिसे एनसीडी का प्रमुख कारण माना जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि लाइफस्टाइल में बदलाव नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में भारत में इन बीमारियों का बोझ और भी ज्यादा हो सकता है। 

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हृदय रोग और हार्ट अटैक का खतरा - फोटो : Adobe Stock Images

अध्ययन में क्या बातें सामने आईं?

अध्ययन में पाया गया कि साल 2023 तक इस्केमिक हृदय रोग मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन गया, जिसकी आयु-मानकीकृत मृत्यु दर (ASMR) 127.82 प्रति लाख थी। इसके बाद क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडि) 99.25 और स्ट्रोक 92.88 का स्थान था। जबकि 1990 में डायरिया से संबंधी बीमारियां 300.53 एएसएमआर के साथ सबसे आगे थीं। 2021 में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला कोविड-19 अब 20वें स्थान पर आ गया है।

वैश्विक स्तर पर, गैर-संचारी रोग अब लगभग दो-तिहाई मौतों का कारण बनते हैं, यह पैटर्न भारत में भी दिखाई देता है। 

देश की समग्र मृत्यु दर 1990 में प्रति लाख 1,513 से घटकर साल 2023 में 871 रह गई है, इसके साथ लाइफ एक्सपेक्टेंसी 58.5 वर्ष से बढ़कर 71.6 वर्ष हो गई। बावजूद इसके साल 2010 से 2019 के बीच, भारत में गैर-संचारी रोगों से होने वाली मौतों में वृद्धि जारी रही। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इसका जोखिम अधिक देखा गया है।

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कम उम्र से ही सेहत पर ध्यान देते रहना जरूरी - फोटो : Freepik.com

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। पहले की तुलना में लोग अब लंबे समय तक जीवित तो रह रहे हैं, हालांकि अब भारत में हेल्दी एजिंग की तरफ ध्यान देने और गैर संचारी रोगों पर काबू पाना जरूरी हो गया है।

क्रॉनिक बीमारियों के कारण होने वाली मौत के खतरे को कम करने और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए हृदय रोग, मधुमेह और स्ट्रोक का शीघ्र निदान जरूरी है। इसके अलावा कम उम्र से ही  आहार, शारीरिक गतिविधि और धूम्रपान छोड़ने जैसी स्थितियों को लेकर लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। 

रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि अब लंबा जीवन जीना कठिन नहीं है, मुश्किल काम है हेल्दी एजिंग। नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज से बचाव के लिए कम उम्र से ही प्रयास करते रहना जरूरी है।



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स्रोत
Global Burden of Disease


अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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