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UP News: मादक पदार्थ और असलहों के तस्कर आतंकी गतिविधियों में शामिल, प्रतिबंधित संगठन नाम व स्वरूप बदलकर सक्रिय

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: भूपेन्द्र सिंह Updated Mon, 29 Dec 2025 02:58 PM IST
सार

एडीजी एसटीएफ ने पुलिस मंथन में आतंकवाद विरोधी अभियान, मादक पदार्थ व अन्य संगठित अपराध को लेकर प्रजेंटेशन दिया। इसमें कई अमह पहलूओं का जिक्र किया। आतंकवाद पर कार्रवाई की योजना भी साझा की।

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Drug and arms smugglers involved in terrorist activities banned org active by changing their name and form
आतंकवाद (सांकेतिक) - फोटो : FreePik
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आतंकवाद के स्वरूप में तेजी से बदलाव आ रहा है। अब मादक पदार्थों और अवैध असलहों की तस्करी करने वाले अपराधी भी आतंकी गतिविधियों से जुड़ रहे हैं। इसे आतंकवाद का हाइब्रिड मॉडल माना जा रहा है। इसमें आतंकवाद, संगठित अपराध और नार्को नेटवर्क का गठजोड़ शामिल है। ऐसे अहम इनपुट खुफिया एजेंसियों को मिले हैं। राजधानी लखनऊ में पुलिस मंथन कार्यक्रम में आतंकवाद विरोधी अभियान, मादक पदार्थों और संगठित अपराध पर विशेष प्रस्तुतीकरण दिया गया।

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एडीजी एसटीएफ अमिताभ यश ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि कई प्रतिबंधित संगठन अपने नाम और स्वरूप बदलकर सक्रिय हैं। सिमी, वाहदत-ए-इस्लामी, आईवाईएफ और पीएफआई जैसे संगठन अलग-अलग रूपों में सामने आए हैं, जबकि पीएफआई का राजनीतिक रूप एसडीपीआई के तौर पर सामने आया है। 
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इसके अलावा महिला विंग्स के रूप में जमात-उल-मोमिनात और इस्लाम की मुजाहिद बेटियां जैसे संगठन भी सक्रिय बताए गए। आतंकवाद के पीछे भूराजनैतिक कारणों पर भी प्रकाश डाला गया, जिनमें पाकिस्तान, आतंकी ढांचे का पुनर्गठन, नए लॉन्च पैड, बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता, भारत विरोधी तत्वों का उभार और नेपाल शामिल हैं।

बताया कि आतंकी हमलों का स्वरूप भी बदल चुका है। पहले सैन्य ठिकाने निशाने पर होते थे, लेकिन अब नागरिक, धार्मिक स्थल और संवेदनशील स्थान ज्यादा टारगेट बन रहे हैं। आतंक अब सीमित दायरे से निकलकर वैश्विक रूप ले चुका है। छद्म गतिविधियों जैसे हनी ट्रैप, धर्मांतरण, शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों के दुरुपयोग के जरिए आतंक फैलाया जा रहा है।

तकनीक आधारित आतंकवाद में साइबर टेरर, क्रिप्टोकरेंसी, गेमिंग ऐप्स के जरिए गोपनीय संवाद, जटिल वित्तीय लेन-देन और एनजीओ व क्राउड फंडिंग के दुरुपयोग की आशंकाएं जताई गईं। इससे निपटने के लिए प्रारंभिक कट्टरपंथीकरण की पहचान, सोशल मीडिया मॉनिटरिंग, बीट पुलिसिंग, एजेंसियों के बीच समन्वय, सर्विलांस और डी-रेडिकलाइजेशन पर जोर दिया गया।

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