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लोकसभा चुनाव: दल कोई भी हो सभी को रास आता है परिवारवाद, देखिए यूपी में कैसे फला-फूला नेताओं का परिवार

महेंद्र तिवारी, अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: रोहित मिश्र Updated Sun, 31 Mar 2024 11:15 AM IST
सार

परिवारवाद हर पार्टी में है। नेता किसी भी दल का हो उसने अपने परिवार को ही आगे बढ़ाया है। कई तो पार्टियां ऐसी हैं जहां एक के बाद एक परिवार का व्यक्ति पार्टी का मुखिया होता है। इस विशेष रिपोर्ट में देखिए कैसे नेताओं का परिवार आगे बढ़ा।
 

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UP Lok Sabha Election 2024 Top Leaders and Family Members in Politics Scenarios Azam Khan to Rajnath Singh
हर पार्टी में परिवारवाद - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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ये चमक-ये दमक-फुलवन मा महक...सब कुछ सरकार तुम्हई से है...। सियासत की दुनिया में दस्तक देने वाले कई सियासतदानों के लिए चुनाव भर जनार्दन (भगवान) की तरह नजर आने वाली जनता सफलता मिलते ही पीछे छूट जाती है और परिवार प्रथम हो जाता है। चमक, दमक और फुलवन की महक संकुचित होकर समाज से ज्यादा परिवार तक सीमित हो जाती है। मसीहा हो या फिर माफिया सबकी चाहत पॉवर और सरकार नजर आने लगती है, जिसके सहारे वे परिवार को बढ़ा सकें और अपनी शक्ति का विस्तार कर सकें। यूपी की सियासत में कई ऐसे सियासतदां उभरे जिन्होंने समाजसेवा, सिद्धांत और मूल्य जैसे तमाम आदर्शवादी विचारों की बात की लेकिन अंत में परिवार को ही चुना। नेतागिरी हो या माफियागिरी, जहां जरूरत पड़ी परिवार को ही सुरक्षित करने में लगे रहे। यूपी की सियासत में ऐसे ढेरों किस्से भरे पड़े हैं। खास बात ये है कि सत्ता व विपक्ष के परिवारवाद की परिभाषा भी अलग-अलग देखने को मिल रही है।

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सत्ताधारी भाजपा के नेता परिववारवाद पर हमला बोलना शुरू करते हैं तो विपक्षी नेता भाजपा से उसके कई नेताओं के परिवारवाद गिनाने लगते हैं। भाजपा की ओर से परिवारवादी पार्टियां कहकर संगठन और सरकार के शीर्ष पदों पर एक ही परिवार को विरासत मिलने का उदाहरण देकर हमला बोला जाता है। तो विपक्षी भाजपा के कई नेताओं के परिवार में सांसद-विधायक-प्रमुख या जिला पंचायतअध्यक्ष गिनाकर हमला बोलने लगते हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी ऐसे परिवारोंकी धूम मची हुई है। एक ही परिवार से एक साथ कई लोगों को टिकट देने से परहेज के उल्लेखनीय प्रयास के बावजूद भाजपा भी पूरी तरह से परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रहीहै। इसी तरह मुख्य विपक्षी पार्टियां परिवारवाद की कीमत चुकाती साफ दिख रही हैं। लेकिन, अपना परिवार मोह छोड़ नहीं पा रही हैं।
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परिवारवाद पर हमले बढ़े तो बड़े दलों की चुनौतियां बढ़ी
भाजपा परिवारवाद के नाम पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को सीधा निशानाबनाती आई है। 2014 से इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा हमला बोला जा रहा है। भाजपा का आरोप है कि सपा में मुलायम सिंह यादव खानदान और कांग्रेस में गांधी परिवार सत्ता से संगठन तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काबिज रहता है। भाजपा नेता इन्हें परिवारवादी पार्टियां कहते आए हैं। चुनावों में इसका असर भी हुआ। 

सपा: 2014 में सिर्फ परिवार के लोग जीते, 2019 में परिवार के भी हारे 

UP Lok Sabha Election 2024 Top Leaders and Family Members in Politics Scenarios Azam Khan to Rajnath Singh
शिवपाल सिंह के साथ अखिलेश यादव व डिंपल यादव। - फोटो : amar ujala
2014 के चुनाव में सपा अपने परिवार तक सीमित हो गई। सिर्फ परिवार के सदस्यमुलायम सिंह यादव (दो सीट पर), अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव और डिंपल यादव ही जीत पाए थे।  2019 में हमला और बढ़ा तो सिर्फ मुलायम सिंह यादव औरअखिलेश यादव ही जीत पाए। परिवार के कई सदस्यों को हार का सामना करना पड़ाथा। इसके बावजूद पार्टी 2024 के चुनाव में परिवार मोह से मुक्त नहीं होपाई। इस चुनाव में भी परिवार से डिंपल यादव (पत्नी-मैनपुरी), शिवपाल सिंहयादव (चाचा-बदायूं), धर्मेंद्र यादव (चचेरे भाई-आजमगढ़) और अक्षय यादव(चचेरे भाई-फिरोजाबाद) से मैदान में हैं। अखिलेश यादव यह चुनाव फिलहाललड़ने से बचते नजर आ रहे हैं। 

सपा का परिवारवाद: अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष, डिंपल यादव सांसद व प्रत्याशी, प्रो. रामगोपाल यादव राज्यसभा सांसद, शिवपाल सिंह यादव विधायक व प्रत्याशी,धर्मेंद्र यादव प्रत्याशी, अक्षय यादव प्रत्याशी।

कांग्रेस: परिवार ही मैदान से बाहर!

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी व सोनिया गांधी। - फोटो : amar ujala

पिछले चुनाव तक यूपी की रायबरेली सीट से सोनिया गांधी और अमेठी सीट से राहुल गांधी उम्मीदवार हुआ करते थे। पिछला चुनाव राहुल गांधी राष्ट्रीयअध्यक्ष रहते हुए हार गए थे। कांग्रेस से सिर्फ सोनिया ही जीती थीं। सोनिया गांधी ने इस चुनाव में रायबरेली से न उतरने का एलान कर दिया है। वह राज्यसभा के जरिए सांसद बन गई हैं। इसके बाद से ही यूपी कांग्रेस के नेता पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से रायबरेली और राहुल गांधी से अमेठी से चुनाव लड़ने की दरख्वास्त करते आ रहे हैं। अंदरखाने चर्चा है कि भाजपा की व्यूह रचना से जीत के प्रति आशंकित राहुल और प्रियंका यूपी से चुनाव के लिए मन नहीं बना पा रहे हैं। अंतिम फैसला अटका है। ऐसेमें इन सीटों पर अभी तक प्रत्याशियों का एलान नहीं हो पाया है। दशकों बाद कांग्रेस के गांधी परिवार की यूपी के मैदान से बाहर होने की नौबत नजर आ रही है।

बसपा: मायावती भी परिवार से दूर नहीं जा पाईं

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मायावती व आकाश आनंद। - फोटो : amar ujala

बसपा सुप्रीमो मायावती वर्षों से यह बात दुहराती नजर आ रही थीं कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी परिवार से नहीं होगा। मगर, परिवारवाद के आरोपों को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को अपने बाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी है। हालांकि, इस चुनाव में मायावती के परिवार से किसी के मैदान में आने के फिलहाल संकेत नहीं हैं। सभी मिलकर चुनाव में आधार बढ़ाने में लगे हुए हैं।

लेकिन छोटे दलों की पौ बारह, खूब उठा रहे फायदा

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जयंत चौधरी के साथ अजीत सिंह। फाइल फोटो। - फोटो : Amar Ujala (File Photo)

सुभासपा: प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने सुभासपा बना रखी है। राजभर समाज के नेता राजभर खुद पार्टी के अध्यक्ष हैं। लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन हुआ है। राजभर को लोकसभा की एकमात्र घोसी सीट गठबंधन में मिली है। राजभर ने पहला मौका अपने बेटे डा.अरविंद राजभर को प्रत्याशी बनाकर दिया है। दूसरे बेटे अरुण राजभर को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव व मुख्य प्रवक्ता बना रखा है।

सुभासपा का परिवारवाद- ओम प्रकाश राजभर-अरविंद राजभर-अरुण राजभर

अपना दल-एस: भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल की मुखिया केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल हैं। कुर्मी समाज की नेता हैं और समाज में तेजी से आधार बढ़ाया है। लेकिन, केंद्र के बाद राज्य सरकार की कैबिनेट में हिस्सेदारी की नौबत आई तो पति आशीष पटेल को कैबिनेट का ओहदा दिलाया।

अपना दल एस का परिवारवाद- अनुप्रिया पटेल-आशीष पटेल

अपना दल (कमेरावादी): अपना दल के नेता स्वर्गीय सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने अपना दल कमेरावादी बना रखा है। कृष्णा पटेल को अवसर मिला तो सबसे पहले बड़ी बेटी पल्लवी पटेल को आगे किया। सपा से गठबंधन कर पल्लवी विधायक बनने में सफल रहीं। 

राष्ट्रीय लोकदल: किसानों की लड़ाई लड़ने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का परिवार पश्चिम यूपी का सबसे रसूख वाला सियासी परिवार माना जाता है। जाट समाज में इस परिवार की अच्छी स्वीकार्यता है, लिहाजा हर दल पश्चिम का समीकरण साधने के लिए इसका साथ लेने को लालायित करता रहता है। चौधरी चरण सिंह के बाद चौधरी अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर इसे आगे बढ़ाया। अजित सिंह के निधन के बाद से चौधरी जयंत सिंह पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं। रालोद एनडीए के साथ है।

निषाद पार्टी: प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद दल के मुखिया हैं। राजग में शामिल हैं। राज्य सरकार में शामिल होने का मौका मिला तो सबसे पहले स्वयं मंत्री बने। बेटों को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी होते हुए भाजपा के सिंबल पर टिकट स्वीकार किया। बड़े बेटे प्रवीण निषाद को सांसद (संतकबीरनगर) और छोटे बेटे सरवन निषाद को विधायक (चौरीचौरा) बनवाने में सफल रहे हैं। एक अन्य सीट के लिए दबाव बनाए हुए हैं।

वे नेता जिनके परिवार खूब आगे बढ़े

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राजनाथ सिंह-पंकज सिंह - फोटो : Amar Ujala
कल्याण सिंह : पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भाजपा के दिग्गज नेताओं मेंरहे। सिंह के बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया एटा से सांसद हैं। इस बारफिर प्रत्याशी बनाया गया है। राजू भैया के बेटे संदीप सिंह राज्य सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री हैं। राजू भैया की पत्नी प्रेमलता वर्मा भी विधायक रही हैं।

हसन परिवार- पश्चिम की चर्चित कैराना सीट पर हसन परिवार का सियासी रसूख जगजाहिर है। सपा नेता मुनव्वर हसन खुद सांसद रहे हैं। उनकी पत्नी तबस्सुम हसन बसपा की सांसद रहीं। बेटा नाहिद हसन कैराना से विधायक है। इस चुनाव में परिवार से एक नए सदस्य के रूप में इकरा हसन की सियासत में एंट्री हुई है। इकरा मुनव्वर हसन की बेटी हैं। वह सपा की लोकसभा प्रत्याशी हैं।

आजम परिवार: पूर्व मंत्री आजम खां विधायक व सांसद रहे। उनकी पत्नी तजीन फात्मा विधायक व राज्यसभा सांसद रहीं हैं। बेटा अब्दुल्ला आजम भी विधायक बना। इस बार जेल में हैं और चुनाव मैदान से बाहर हैं।

हरिशंकर तिवारी: गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी का भी लंबे समय तक दबदबा रहा। हरिशंकर खुद विधायक और मंत्री रहे। बड़ा बेटा भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी सांसद व छोटा बेटा विनय शंकर तिवारी विधायक बना। 

मुख्तार परिवार: पूर्वांचल में माफिया मुख्तार अंसारी के सियासी रसूख की चर्चा खूब होती रहीहै। उसकी मृत्यु के बाद तमाम किस्से सामने आ रहे हैं। इस परिवार की समृद्धसियासी विरासत रही है। परिवार में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देशभक्त सैनिक और उपराष्ट्रपति तक रहे हैं। लेकिन, मुख्तार के सियासत में कदम रखने के बाद परिवार की छवि बदल गई। इस परिवार में अभी भी दो विधायक और सांसद हैं। 

मुख्तार का परिवारवाद- मुख्तार अंसारी पूर्व विधायक-अफजाल अंसारी, सांसद(भाई)-अब्बास अंसारी, विधायक (बेटा), सुहेब उर्फ मन्नू अंसारी, विधायक(भतीजा- पूर्व विधायक सिगबतुल्ला अंसारी का बेटा)

बृजेश परिवार: पूर्वांचल के एक अन्य चर्चित माफिया बृजेश सिंह की सियासी पकड़ जगजाहिर है। इस परिवार में उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह भाजपा के एमएलसी रहे। लेकिन बृजेश के सियासत में आने के बाद परिवार की छवि बदल गई। उसकी छवि मुख्तार अंसारी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में हुई। इस परिवार में भी कई लोगों ने  सियासी सफलता हासिल की है।

बृजेश का परिवारवाद: बृजेश सिंह पूर्व एमएलसी, अन्नपूर्णा सिंह (पत्नी) एमएलसी व सुशील सिंह विधायक (भतीजा)।

ब्रजभूषण परिवार: अवध में ब्रजभूषण शरण सिंह की सियासी ताकत किसी से छिपी नहीं है। गोंडा, बलरामपुर (पूर्व संसदीय क्षेत्र) व कैसरगंज मिलाकर वह छह बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। जेल में रहते हुए पत्नी केतकी सिंह को सांसद बनवाने में सफलता हासिल की। वह संगठन व पार्टी पर निर्भर नहीं रहते। पार्टी के समानांतर उनका अपना प्रबंधन रहता है। भाजपा के साथ वह सपा से भी सांसद रहे हैं। महिला पहलवानों के शोषण से जुड़े आरोपों के बाद पहली बार उन्हें टिकट के लाले पड़े हैं। बेटा प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर से सांसद हैं।

स्वामी प्रसाद परिवार: पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य परिवार को आगे बढ़ाने की महत्वकांक्षा में बसपा व भाजपा के बाद सपा की भी यात्रा कर चुके हैं। बेटी संघमित्रा मौर्य व बेटे उत्कर्ष को आगे बढ़ाने में लगे रहे।भाजपा में रहते हुए बेटी संघमित्रा को बदायूं से टिकट दिलाया और वह सांसद बनी। बेटे को बसपा में रहते हुए विधायक का टिकट दिलाया लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इस बार बेटी का बदायूं से टिकट कट गया और वह सपा छोड़कर अपनी पार्टी बना चुके हैं।

राजनाथ सिंह: केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पार्टी के दिग्गज नेता और लखनऊ से सांसद हैं। एक बार फिर लखनऊ से प्रत्याशी हैं। उनके बड़े बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं।

कौशल किशोर: केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर मोहनलालगंज से सांसद हैं। पत्नीजयदेवी मलिहाबाद से विधायक हैं। पार्टी ने कौशल किशोर को फिर प्रत्याशी बनाया है।

रितेश पांडेय- बसपा के अंबेडकरनगर सांसद रितेश पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं। भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया है। रितेश के पिता राकेश पांडेय पूर्व सांसद रहे हैं और मौजूदा विधायक हैं।

कीर्तिवर्धन सिंह- गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह मनकापुर राजघराने के उत्तराधिकारी हैं। सिंह के पिता कुंवर आनंद सिंह पूर्व में सांसद, विधायक और मंत्री रहे हैं।

बहराइच: पिता 75 पार किए तो बेटे को टिकट
अक्षयवर लाल गोड़ बहराइच से भाजपा के सांसद हैं। 75 साल पार कर चुके हैं। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अक्षयवर लाल का टिकट काट दिया। लेकिन,बहराइच का नया प्रत्याशी अक्षयवर लाल गौड़ के बेटे आनंद गोड़ को ही बनाया है। कहा जा रहा है कि संगठन्निष्ठ होने का इनाम उन्हें मिला है।
 

यहां परिवारवाद पर अंकुश

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मेनका गांधी-वरुण गांधी - फोटो : Amar Ujala
वर्तमान में मेनका गांधी सुल्तानपुर और वरुण गांधी पीलीभीत से भाजपा सांसदहैं। भाजपा ने इस बार मेनका को तो टिकट दिया लेकिन वरुण का टिकट काट दिया। बताया जा रहा है कि गांधी परिवार पीलीभीत सीट नहीं छोड़ना चाहता था और दो में से एक को टिकट मिलने की दशा में वरुण को प्राथमिकता देने का आग्रह था। मगर, पार्टी ने संयम को तवज्जो देते हुए मां को टिकट दिया और अनुशासन पर नरमी न दिखाते हुए वरुण का टिकट काट दिया।
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