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Lucknow : बर्क ने की मायावती की तारीफ तो मुसलिम सियासत में मची खलबली, वोटबैंक की तिकड़म

चंद्रभान यादव, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Wed, 18 Jan 2023 06:26 AM IST
सार

मुसलमान सपा के कोर वोटबैंक माने जाते हैं। पर, बसपा और भाजपा इस वोटबैंक में सेंधमारी की लगातार कोशिश कर रही हैं। बसपा दो कदम आगे चल रही है। इस बीच सपा सांसद डॉ. बर्क ने एक बयान में बसपा सुप्रीमो मायावती को मुसलमानों का हितैषी करार देकर हलचल मचा दी है।

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Lucknow: Burke praises Mayawati, creates waves in Muslim politics
शफीकुर रहमान बर्क (फाइल फोटो)
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विस्तार
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विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले सपा सांसद डॉ. शफीकुर रहमान बर्क ने बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ की है। इससे प्रदेश की मुसलिम राजनीति में खलबली मच गई है। मुसलमान सपा के कोर वोटबैंक माने जाते हैं। पर, बसपा और भाजपा इस वोटबैंक में सेंधमारी की लगातार कोशिश कर रही हैं।

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बसपा दो कदम आगे चल रही है। इस बीच सपा सांसद डॉ. बर्क ने एक बयान में बसपा सुप्रीमो मायावती को मुसलमानों का हितैषी करार देकर हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि देश को मायावती की जरूरत है। उन्होंने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया है।
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बर्क का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब मायावती ने एलान किया है कि वह अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। किसी से गठबंधन नहीं करेंगी। ऐसे में बर्क के बयान को सियासी तौर पर बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। उधर, सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि उन्हें बयान की जानकारी नहीं है। अगर बर्क ने कोई बयान दिया है तो वह उनका निजी मामला है। पर, सूत्रों का कहना है कि अंदरखाने बर्क नाराज चल रहे हैं। सपा ने उनकी जगह सांसद डॉ. एसटी हसन को लोकसभा में नेता सदन बनाया है।

डॉ. हसन पहली बार सांसद बने हैं और बर्क सियासी और उम्र के लिहाज से वरिष्ठ हैं। वह 2009 में बसपा से सांसद रहे और 2014 में सपा से लड़े तो हार गए। वर्ष 2019 में वह सपा से सांसद बने। अब उनकी उम्र करीब 92 साल हो चुकी है। वह कुंदरकी से अपने पौत्र को विधायक बना चुके हैं। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में सपा उन पर दांव लगाएगी, इस पर संशय है। ऐसे हालात में वह बसपा से भी अपने संबंध जिंदा रखना चाहते हैं।

बर्क के बयान के बाद लोगों की नजर उनके अगले कदम पर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर डॉ. बर्क हाथी पर सवार होते हैं तो यह मायावती के लिए बढ़त वाली बात होगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा को एक और बड़ा मुस्लिम चेहरा मिल जाएगा। बसपा मुसलमानों को साध कर जितनी मजबूत होगी, सपा को उतना ही नुकसान उठाना पड़ सकता है।

मुस्लिम सियासत के अहम किरदार सपा के संस्थापक सदस्य आजम खां चुप हैं। उपचुनाव में मिली पराजय के बाद सपा का कोई वरिष्ठ नेता उनसे मिलने भी नहीं गया। यहां तक कि आजम और अब्दुल्ला आजम भी पार्टी कार्यालय नहीं आए हैं।

उधर, कांग्रेस से बड़े अरमानों के साथ सपा में आए पूर्व विधायक इमरान मसूद भी बसपा में पहुंच चुके हैं। उन्हें चार मंडल के साथ उत्तराखंड का संयोजक बनाया गया है। पूर्वांचल में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली बसपा में वापसी कर आजमगढ़ उपचुनाव में सपा की हार के मुख्य कारण बन चुके हैं। बसपा लगातार मुस्लिम नेताओं को जोड़ने में जुटी है। 

बसपा की यह सक्रियता सपा के लिए खतरे की घंटी बन सकती है क्योंकि अभी तक सपा ने मुस्लिमों को जोड़े रखने के लिए कोई पुख्ता अभियान शुरू नहीं किया है। यहां तक कि संगठन का भी एलान नहीं हुआ है, जिसकी भागीदारी दिखाकर मुसलमानों को जोड़े रखा जा सके।

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