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साकेत की धरती से पीएम मोदी ने दिए कई संदेश, राम के सहारे सारे समीकरण संवारे

अखिलेश वाजपेयी, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Thu, 06 Aug 2020 04:20 AM IST
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PM Modi gave many messages from the land of Saket
भूमिपूजन अनुष्ठान में पीएम मोदी... - फोटो : अमर उजाला
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श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के शुभारंभ पर अयोध्या पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साकेत की धरती से देश व दुनिया को कई संदेश व संकेत दिए। सबमें राम, सबके राम, इस्लामी देश इंडोनेशिया से लेकर नेपाल व श्रीलंका तक राम का उल्लेखकर अपनी सरकार की मंशा व सरोकारों को विस्तार दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाया, लेकिन मोदी ने ‘सियापति रामचंद्र की जय’ का घोष किया। 

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शायद यह घोष उनकी उसी भावना का प्रतीक था कि यह मंदिर सबका है। राम सबके हैं। उन्होंने कई बार मां जानकी और मां सीता की महानता का उल्लेख किया तो ऐसा लगा कि वे जय श्रीराम का घोष करके किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते। साथ ही वह नारी शक्ति के महत्व को भी लोगों को समझाना चाहते हैं।
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सरयू तट पर आस्था की लहरों में सराबोर पीएम मोदी विगत छह वर्षों में अयोध्या व मंदिर को लेकर उठे सवालों और आरोपों का जवाब देने के मूड में दिखे। अयोध्या न आने, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, तिथि नहीं बताएंगे’ और ‘रामलाल टाट में राम के सहारे सत्ता पाने वाले ठाठ में’ जैसे तीखे हमलों का अपने ही अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने ‘रामकाज कीन्हें बिनु मोहिं कहा बिश्राम’ कहकर यही बताने की कोशिश की कि इन छह वर्षों में शांत व चैन से नहीं बैठे थे। राम मंदिर के संकल्प को साकार करने के साधन जुटा रहे थे।

चीन को संदेश...भय बिनु होई न प्रीत
प्रधानमंत्री ने ‘राफेल’ का नाम तो नहीं लिया, लेकिन रामचरित मानस की चौपाई ‘बिनु भय होय न प्रीति’ का उल्लेख करके यह बता दिया कि हमारा देश जितना ताकतवर होगा, उतनी ही शांति रहेगी। देश की सामरिक और विदेश नीति को उचित साबित किया। साथ ही संकेतों में यह भी बताने का प्रयास किया कि चीन हो या पाकिस्तान भारत न झुकेगा, न रुकेगा और न अपने निर्णयों से हटेगा।

विरोधियों को नसीहत
सियापति राम चंद्र की जय से शुरू कर इसी जयकार पर अपनी बात समाप्त करने वाले प्रधानमंत्री ने राम के सरोकारों का हवाला देते हुए मंदिर निर्माण की शुरुआत को वैश्विक खुशी व इच्छापूर्ति से जोड़कर विरोधियों का मुंह बंद करने की कोशिश की। मंदिर आंदोलन को आजादी के आंदोलन से जोड़कर और आजादी के दौरान प्राणोत्सर्ग करने वालों की राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों से तुलना कर उन्होंने विरोधियों का यह संदेश भी दे दिया कि उनकी आलोचनाओं से वह संकल्प तथा इरादे बदलने वाले नहीं है। तभी तो शायद उन्होंने बिना नाम लिए सोमनाथ और श्रीराम जन्मभूमि स्थल की तरफ  संकेत करते हुए यह भी कहा कि इमारतें नष्ट हो गईं। आस्तित्व मिटाने का भी प्रयास हुआ  लेकिन राम हमारे मन में बसे रहे।

हिंदुत्व की व्यापकता
उन्होंने सभी देशों और भारत के राज्यों में अलग-अलग पंथों के बीच राम के स्वरूप और चर्चित अलग-अलग रामायणों के उल्लेख के साथ राम की व्यापकता समझाकर तथा छत्रपति शिवाजी, सुहेलदेव, गुरु गोविंद सिंह से लेकर गिलहरी, केवट, निषाद और वानरों का उल्लेख कर राम को समाज के सभी वर्गों से जोड़कर सामाजिक समरसता के समीकरण भी साधने की कोशिश की। जिस तरह आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी का हर जाति व वर्ग ने सहयोग किया था उसी तरह राममंदिर आंदोलन की सफलता भी हर जाति व वर्ग की है, यह कहकर सामाजिक समरसता की भावनाओं तक विस्तार देकर हिंदुत्व की व्यापकता को भी सामने रखने की कोशिश की।

शब्दों के सहारे सामर्थ्य व संपन्नता के संकेत

प्रधानमंत्री ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर स्थल पर भूमि पूजन और मंदिर निर्माण के क्षण को तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक तथा राममंदिर आंदोलन को अर्पण और तर्पण, संघर्ष व साधना का प्रतिफल बताते हुए मोदी ने एक तरह से उन लोगों को जवाब देने की भी कोशिश की जो अयोध्या आंदोलन की आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने बार-बार यह संदेश देने की कोशिश की कि वह रामजन्मभूमि आंदोलन को पूरी तरह उचित मानते हैं।

मोदी ने महात्मा गांधी के रामराज्य की अवधारणा का उल्लेख करते हुए भगवान राम को परिवर्तन और आधुनिकता का पक्षधर बताया। उन्हें समय के अनुसार निर्णय करने वाला बताते हुए एक तरह से यह संदेश दिया कि राम को बंधी-बधाई छवि में देखना ठीक नहीं है। राम के रास्ते पर चलना है तो परिवर्तनों को स्वीकार करना होगा। इसी सिलसिले में उन्होंने अयोध्या से देश को आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प की बात कहते हुए शाश्वत आस्था के साथ-साथ मंदिर को राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बताकर खुद को रामकाज से जोड़ा। साथ ही मंदिर निर्माण से अयोध्या क्षेत्र का अर्थतंत्र बदलने, अवसर बढ़ने पर जोर देते हुए राष्ट्र को जोड़ने का उपक्रम बताया।

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