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UP: खुद को बचाने के लिए पुलिस वालों ने खूब किए खेल... दूसरी बार में हुए बेनकाब, झूठे मामले में जेल गए लालता

अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ Published by: ishwar ashish Updated Fri, 05 Dec 2025 12:29 PM IST
सार

चार बेगुनाहों को फर्जी केस में फंसाने की मामले की जांच पीड़ित पक्ष की शिकायत पर एंटी करप्शन विभाग को ट्रांसफर हुई थी। जांच में पुलिसकर्मियों की कारस्तानी सामने आई।

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UP: Police officers played a lot of tricks to save themselves... exposed for the second time
आरोपी इंस्पेक्टर प्रह्लाद, दरोगा संतोष कुमार यादव, दिनेश कुमार सिंह और राजेश सिंह। - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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चार बेगुनाहों को फर्जी केस में फंसाने वाले आरोपी पुलिसकर्मियों ने खुद को बचाने के लिए खूब खेल किया था। पहली बार जब विवेचना एंटी करप्शन विभाग को ट्रांसफर हुई तो जुगाड़ लगाकर वापस कृष्णानगर थाने ट्रांसफर करवा ली थी। पीड़ित पक्ष ने शासन में शिकायत की तब दोबारा विवेचना एंटी करप्शन को सौंपी गई, जिसके बाद आरोपी बेनकाब हुए।

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पीड़ित लालता सिंह ने बताया कि जब केस दर्ज होने की जानकारी हुई तो पत्नी रंजना सिंह ने डीजीपी मुख्यालय स्थित लोक शिकायत प्रकोष्ठ में शिकायत की थी। शिकायत में उन्होंने बताया कि पुलिस ने झूठा केस लिखकर उनके पति व बेटों को आरोपी बनाया है। दावा किया कि पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के पास से जी बिल फर्जी दिखाया है, यह बिल असली है। शिकायत के बाद बंधरा थाने में दर्ज चोरी के मामले की विवेचना एंटी करप्शन को दे दी गई। एंटी करप्शन की विवेचना में फर्जी केस की परतें खुलने लगीं।
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इस बीच आरोपियों ने जुगाड़ से जांच को एंटी करप्शन से वापस कृष्णानगर थाने ट्रांसफर करवा लिया था। कृष्णानगर पुलिस ने भी वर्ष 2022 में लालता सिंह व कल्लू गुप्ता को गिरफ्तार कर जेल भेजा और केस में चार्जशीट लगा दी। तब रंजना ने शासन स्तर पर शिकायत की। शासन ने केस एक बार फिर एंटी करप्शन के पास ट्रांसफर किया। इस बार आरोपी पुलिसकर्मियों का जुगाड़ नहीं चला और उन पर कार्रवाई की गई है।

बड़ा सवाल... आखिर किसके साथ मिलकर किया खेल ?
एंटी करप्शन की अब तक की जांच और एफआईआर से साफ है कि पुलिस वालों ने जानबूझकर फर्जी केस दर्ज किया था। अब तक ये सामने नहीं आया कि उसकी वजह क्या थी? एंटी करप्शन के जांच अधिकारी ने भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। पीड़ित की आशंका है कि चूंकि वह राजनीति से जुड़ा हुआ है, इसलिए किसी विरोधी ने पुलिस वालों के साथ मिलकर उसको फंसाया। एक पहलू ये भी हो सकता है कि किसी अन्य मामले में आरोपी पुलिस वालों ने डील कर उन्हें फंसाया हो। मुख्य साजिशकर्ता का बेनकाब होना बाकी है। पुलिस को उसका सुराग मिल चुका है।

20 दिन जेल में रहना पड़ा, पांच वर्ष तक लड़ी लड़ाई

पीड़ित लालता सिंह व उनके अन्य साथी चोरी के झूठे मामले में 20 दिन तक जेल में रहे। जमानत कराकर जेल से बाहर आए। इसके बाद उन्होंने और उनकी पत्नी ने झूठे केस के खिलाफ शिकायत की और पैरवी शुरू की। पांच वर्ष तक लंबी लड़ाई लड़ी। तब जाकर उनको न्याय मिला है। उनका कहना है कि जब तक आरोपी पुलिस वालों को सजा नहीं मिल जाती, पूरा न्याय नहीं होगा।

लालता सिंह बताते हैं कि 20 दिन उन्होंने रो-रोकर जेल में समय गुजारा। जमानत पर बाहर आने के बाद आरोपी उनके बेटों की गिरफ्तारी का दबाव बनाने लगे। जांच शुरू हुई तो झूठ सामने आने लगा। उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ गांव में लड़ाई-झगड़े के पहले से कुछ छोटे केस दर्ज थे। पुराने मामलों को आधार बनाते हुए बंथरा पुलिस ने उनकी हिस्ट्रीशीट भी खोल दी थी। अब वह हिस्ट्रीशीट को निरस्त करने के प्रयास में लगे हैं।

इन धाराओं में दर्ज हुआ केस.. इतनी है सजा

आरोपी पुलिसकर्मियों पर आईपीसी की धारा 193 (झूठे साक्ष्य गढ़ना, सजा-सात वर्ष) और 201 (साक्ष्य से छेड़छाड़, सजा-सात वर्ष), 120बी (साजिश रचना, सजा-अपराध के आधार पर), 211 (झूठा आरोप लगाकर नुकसान पहुंचाना, सजा-सात वर्ष) 166 (लोक सेवक द्वारा जानबूझकर कानून का उल्लंघन करना, सजा-एक वर्ष) और 167 (लोक सेवक द्वारा फर्जी साध्य बनाना, सजा-तीन वर्ष) के तहत में केस दर्ज किया गया है। चूंकि मामला बोएनएस लागू होने के पहले का है इसलिए आईपीसी में केस दर्ज किया गया है।

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